Himachal News: चांशल से रूठी बर्फ, घाटी को विश्व मानचित्र पर लाने की फिसल रही योजना
रोहड़ू उपमंडल की प्रसिद्ध चांशल घाटी में करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर सड़क सुविधा मिलने के बाद सर्दियों में बर्फ नहीं पड़ने से पर्यटन और साहसिक खेलों पर विराम लगता जा रहा है। पढ़ें पूरी खबर...
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कुछ वर्षों से चांशल से बर्फ रूठ गई है, जिससे घाटी को विश्व मानचित्र पर लाने की योजना फिसलती नजर आ रही है। रोहड़ू उपमंडल की प्रसिद्ध चांशल घाटी को शीतकालीन साहसिक खेलों के लिए विश्व मानचित्र पर लाने की योजना थी, लेकिन मौसम के बदलाव और हिमपात की कमी के कारण इस योजना पर अब पानी फिरता नजर आ रहा है। करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर सड़क सुविधा मिलने के बाद सर्दियों में बर्फ नहीं पड़ने से पर्यटन और साहसिक खेलों पर विराम लगता जा रहा है। पहले सड़क की कमी के कारण योजना आगे नहीं बढ़ रही थी, अब बर्फ न पड़ने और मौसम के बदलाव ने योजना को रोक दिया है।
पहले चांशल घाटी में नवंबर के पहले सप्ताह से हिमपात शुरू हो जाता था। यानी मार्च तक कई क्रम में घाटी पर आठ से 15 फीट तक बर्फबारी वर्ष 2014 तक दर्ज की गई, लेकिन बीते चार साल से हिमपात का क्रम लगातार घटता जा रहा है। लंबे अरसे बाद इस साल चांशल में एक इंच बर्फ भी दिसंबर महीने में देखने को नहीं मिल रही। स्थानीय पर्यटन विभाग और विशेषज्ञों ने चांशल घाटी का साहसिक खेलों के लिए चयन उच्च गुणवत्ता वाले स्की ढलानों के चलते कई साल पहले किया था, जिसे संभावित रूप से एशिया के सबसे बड़े प्राकृतिक स्की स्लोप के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई थी।
चांशल घाटी को साहसिक खेलों के लिए विश्व मानचित्र पर लाने के लिए कई बार सर्वे हो चुका है। इसके लिए स्थानीय पर्यटन विभाग और विशेषज्ञों की टीम चांशल घाटी पहुंची। अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान मनाली और विभिन्न तकनीकी समूहों ने भी ढलानों का निरीक्षण भी किया। वर्ष 1998 में पहली बार चांशल घाटी का सर्वे किया था। इसके बाद 2003 में भी टीम ने सर्वे किया था। उस दौरान चांशल घाटी तक कोई सड़क नहीं थी। इस कारण योजना शुरू नहीं हो पाई थी। वर्ष 2018 में भी चांशल घाटी का सर्वे किया गया था।
अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग प्रतियोगिताओं की मेजबानी के कारण चांशल घाटी को गुलमर्ग, सोलंग आदि जैसे प्रसिद्ध स्की स्थलों के समकक्ष या उनसे बेहतर बनाने की योजना थी। प्रदेश के सभी मुख्यमंत्री चांशल को शीतकालीन खेलों के लिए विकसित करने की कई बार घोषणा भी कर चुके हैं। पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल में साल 2018 में चांशल घाटी में अंतरराष्ट्रीय स्नोबोर्ड चैंपियनशिप का आयोजन किया गया था। उस दौरान तत्कालीन मंत्री सुरेश भारद्वाज ने यहां पहुंचकर प्रतियोगिता का समापन किया था।
क्वार पंचायत के पूर्व प्रधान शंकर चौहान कहते हैं कि चांशल घाटी के पर्यटन के लिए विकसित होने से डोडरा-क्वार क्षेत्र में भी पर्यटन की उम्मीद जगी थी, लेकिन हिमपात कम होने से पर्यटन को बड़े स्तर पर विकसित करना संभव नहीं रहा।
क्वार निवासी कमल बताते हैं कि पहले नवंबर में ही चांशल घाटी में भारी हिमपात होता था, जिससे डोडरा-क्वार सड़क कई महीनों तक अवरुद्ध रहती थी। अब दिसंबर में भी हिमपात नहीं हो रहा है।
चिड़गांव निवासी छौहरा पंचायत समिति के पूर्व अध्यक्ष शमशेर सिंह ठाकुर बताते हैं कि हाल ही के वर्षों में हिमालय में बर्फ की आवृत्ति और स्थायित्व में बदलाव देखने को मिला है। इसका प्रत्यक्ष असर स्नो खेलों और स्कीइंग जैसी गतिविधियों पर पड़ना स्वभाविक है। यदि इस प्रकार हिमपात में कमी होती रही, तो शीतकालीन खेलों के लिए चांशल घाटी को विश्व मानचित्र पर उतारना संभव नहीं लग रहा। इससे न केवल खेल प्रेमी प्रभावित हुए हैं, बल्कि स्थानीय पर्यटन और आर्थिक गतिविधियां भी दबाव में हैं।
लढोट निवासी रामेश्वर का कहना है कि यदि बर्फ पर्याप्त मात्रा में नहीं रहती है, तो स्की, स्नोबोर्ड और अन्य शीतकालीन साहसिक खेल आयोजित नहीं हो सकते। इससे भविष्य में क्षेत्र की आर्थिकी को नुकसान होने वाला है। चांशल घाटी में साहसिक खेलों की संभावनाएं मानी जाती थीं, लेकिन बर्फ की कमी के कारण स्की और स्नोबोर्ड जैसे खेलों के विस्तार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। स्थानीय समुदाय, प्रशासन और खेल संगठनों को अब प्राकृतिक बदलावों के अनुकूल रणनीतियां बनानी होंगी, ताकि चांशल घाटी का खेल और पर्यटन क्षेत्र सक्रिय बन सके।