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Kangra News: समय से पहले दायर की चेक बाउंस की शिकायत, 17.40 लाख का दावा खारिज
संवाद न्यूज एजेंसी, कांगड़ा
Updated Wed, 24 Dec 2025 08:15 AM IST
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मंडी। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (एसीजेएम) कोर्ट नंबर-एक मंडी की अदालत ने चेक बाउंस से जुड़े एक पुराने मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने वैधानिक समय-सीमा का पालन न करने और शिकायत को समय से पहले दायर करने के आधार पर 17.40 लाख रुपये के दावे को खारिज कर दिया।
मामले के तथ्यों के अनुसार टकोली निवासी ज्ञान चंद ने वर्ष 2012 में कुल्लू निवासी चंद किशोर शर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। आरोप था कि आरोपी ने अपनी कानूनी देनदारी चुकाने के लिए 18 जून 2012 को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया कुल्लू शाखा का 17,40,000 रुपये का चेक जारी किया था।
जब यह चेक बैंक में लगाया गया तो 13 अगस्त 2012 को अपर्याप्त धनराशि, हस्ताक्षर में अंतर और खाता निष्क्रिय होने के कारण यह बाउंस हो गया। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उन्होंने 27 अगस्त 2012 को आरोपी को कानूनी नोटिस भेजा था। इसके बाद 15 सितंबर 2012 को कोर्ट में मामला दाखिल कर दिया गया। यहीं पर कानूनी चूक हो गई। अदालत में यह साबित नहीं हो सका कि नोटिस आरोपी को किस तारीख को मिला।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया। इन निर्णयों के अनुसार यदि नोटिस मिलने की तारीख स्पष्ट न हो तो उसे भेजने के 30 दिन बाद तामील माना जाता है। नोटिस मिलने के बाद आरोपी को भुगतान के लिए 15 दिन का समय देना कानूनी रूप से अनिवार्य है। इस प्रकार शिकायत कम से कम 45 दिन बाद ही दायर की जा सकती थी।
अदालत ने कहा कि यह शिकायत वैधानिक प्रतीक्षा अवधि पूरी होने से पहले ही जल्दबाजी में दायर की गई थी, इसलिए यह कानून की नजर में सुनवाई के योग्य नहीं है। इसी तकनीकी और कानूनी आधार पर अदालत ने शिकायत को खारिज कर दिया।
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मामले के तथ्यों के अनुसार टकोली निवासी ज्ञान चंद ने वर्ष 2012 में कुल्लू निवासी चंद किशोर शर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। आरोप था कि आरोपी ने अपनी कानूनी देनदारी चुकाने के लिए 18 जून 2012 को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया कुल्लू शाखा का 17,40,000 रुपये का चेक जारी किया था।
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जब यह चेक बैंक में लगाया गया तो 13 अगस्त 2012 को अपर्याप्त धनराशि, हस्ताक्षर में अंतर और खाता निष्क्रिय होने के कारण यह बाउंस हो गया। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उन्होंने 27 अगस्त 2012 को आरोपी को कानूनी नोटिस भेजा था। इसके बाद 15 सितंबर 2012 को कोर्ट में मामला दाखिल कर दिया गया। यहीं पर कानूनी चूक हो गई। अदालत में यह साबित नहीं हो सका कि नोटिस आरोपी को किस तारीख को मिला।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया। इन निर्णयों के अनुसार यदि नोटिस मिलने की तारीख स्पष्ट न हो तो उसे भेजने के 30 दिन बाद तामील माना जाता है। नोटिस मिलने के बाद आरोपी को भुगतान के लिए 15 दिन का समय देना कानूनी रूप से अनिवार्य है। इस प्रकार शिकायत कम से कम 45 दिन बाद ही दायर की जा सकती थी।
अदालत ने कहा कि यह शिकायत वैधानिक प्रतीक्षा अवधि पूरी होने से पहले ही जल्दबाजी में दायर की गई थी, इसलिए यह कानून की नजर में सुनवाई के योग्य नहीं है। इसी तकनीकी और कानूनी आधार पर अदालत ने शिकायत को खारिज कर दिया।