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Kangra News: कड़ी सुरक्षा को ठेंगा, बालिका आश्रम की दो नाबालिगों ने फिर दिया चकमा
संवाद न्यूज एजेंसी, कांगड़ा
Updated Thu, 25 Dec 2025 08:37 AM IST
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परागपुर (कांगड़ा)। बालिका आश्रम मूहीं (गरली) से दो नाबालिग लड़कियों के दोबारा भागने की घटना ने सुरक्षा व्यवस्था और बाल संरक्षण के दावों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। यह मामला महज एक चूक नहीं, बल्कि उस सिस्टम की नाकामी है जो बार-बार होने वाली ऐसी घटनाओं के बावजूद सबक सीखने को तैयार नहीं है।
जानकारी के अनुसार लड़कियों ने बेहद शातिर तरीके से वार्डन कुलदीप को चकमा दिया। मंगलवार दोपहर जब स्कूल से बच्चियां वापस लौट रही थीं तो इन दोनों ने भीड़ की ओट ली और मौका पाकर छिप गईं। आश्रम की कड़ी सुरक्षा और निगरानी के नियमों के बावजूद ये किशोरियां न केवल आश्रम की परिधि से बाहर निकलीं बल्कि सीधे शिमला तक जा पहुँचीं।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि ये लड़कियां पहले भी आश्रम से भाग चुकी हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें विशेष मानसिक परामर्श और कड़ी निगरानी में रखा जाना चाहिए था। मगर इस घटना ने साबित कर दिया है कि उनके व्यवहारिक सुधार के लिए किए जा रहे प्रशासनिक प्रयास केवल कागजों तक सीमित हैं।
अफसरों को खबर ही नहीं, विभागीय तालमेल का अभाव
हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद निदेशालय के उच्च अधिकारियों को बुधवार तक इसकी भनक तक नहीं थी। महिला एवं बाल विकास विभाग के अतिरिक्त निदेशक मोहन दत्त ने मामले पर अनभिज्ञता जताई, वहीं उपनिदेशक बाल संरक्षण सतनाम सिंह ने स्वीकार किया कि उन्हें सूचना देरी से मिली है। सवाल यह उठता है कि क्या विभाग ऐसी संवेदनशील घटनाओं को गंभीरता से ले रहा है?
जांच के घेरे में बालिका आश्रम का प्रबंधन
आश्रम की सुपरवाइजर रक्षा देवी ने कहा कि पुलिस टीम लड़कियों को लाने शिमला रवाना हो गई है। मगर आश्रम प्रबंधन अब जांच के घेरे में है। सवाल यह है कि यदि लड़कियां पहले से ही रिपीट ऑफेंडर (बार-बार भागने वाली) थीं तो उनके साथ तैनात स्टाफ की सतर्कता में इतनी बड़ी कमी कैसे रह गई।
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जानकारी के अनुसार लड़कियों ने बेहद शातिर तरीके से वार्डन कुलदीप को चकमा दिया। मंगलवार दोपहर जब स्कूल से बच्चियां वापस लौट रही थीं तो इन दोनों ने भीड़ की ओट ली और मौका पाकर छिप गईं। आश्रम की कड़ी सुरक्षा और निगरानी के नियमों के बावजूद ये किशोरियां न केवल आश्रम की परिधि से बाहर निकलीं बल्कि सीधे शिमला तक जा पहुँचीं।
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सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि ये लड़कियां पहले भी आश्रम से भाग चुकी हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें विशेष मानसिक परामर्श और कड़ी निगरानी में रखा जाना चाहिए था। मगर इस घटना ने साबित कर दिया है कि उनके व्यवहारिक सुधार के लिए किए जा रहे प्रशासनिक प्रयास केवल कागजों तक सीमित हैं।
अफसरों को खबर ही नहीं, विभागीय तालमेल का अभाव
हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद निदेशालय के उच्च अधिकारियों को बुधवार तक इसकी भनक तक नहीं थी। महिला एवं बाल विकास विभाग के अतिरिक्त निदेशक मोहन दत्त ने मामले पर अनभिज्ञता जताई, वहीं उपनिदेशक बाल संरक्षण सतनाम सिंह ने स्वीकार किया कि उन्हें सूचना देरी से मिली है। सवाल यह उठता है कि क्या विभाग ऐसी संवेदनशील घटनाओं को गंभीरता से ले रहा है?
जांच के घेरे में बालिका आश्रम का प्रबंधन
आश्रम की सुपरवाइजर रक्षा देवी ने कहा कि पुलिस टीम लड़कियों को लाने शिमला रवाना हो गई है। मगर आश्रम प्रबंधन अब जांच के घेरे में है। सवाल यह है कि यदि लड़कियां पहले से ही रिपीट ऑफेंडर (बार-बार भागने वाली) थीं तो उनके साथ तैनात स्टाफ की सतर्कता में इतनी बड़ी कमी कैसे रह गई।