Mandi Cloudburst : सिसक रही सराज घाटी... थुनाग का बदला भूगोल, न घर बची न जमीन; इतने गांव अब रहने लायक नहीं
जिला मंडी में सुराह, खुनागी, शरण, थुनाग, देजी, थुनाड़ी, रूशाड़, वैयोड़ और देयोल सहित लगभग एक दर्जन ऐसे गांव हैं, जो अब रहने के लायक नहीं रहे। पढ़ें पूरी खबर...

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आपदा के 35 दिन बाद भी सराज घाटी सहमी हुई है। सब तहस-नहस हो चुका है। बाढ़ तो गुजर गई, लेकिन घाटी में अब सिसकियों का सैलाब है। घर-जमीन और अपनों को खो चुके लोगों की आंखें 30 जून की रात को याद कर नम हो जाती हैं। आपदा के क्रूर पंजों ने 40 से 50 किलोमीटर के क्षेत्र में घाटी की सूरत बिगाड़ दी है। सुराह, खुनागी, शरण, थुनाग, देजी, थुनाड़ी, रूशाड़, वैयोड़ और देयोल सहित लगभग एक दर्जन ऐसे गांव हैं, जो अब रहने के लायक नहीं रहे हैं। जार-जार होते पहाड़ों को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित है। पहाड़ों और जमीन के लगातार खिसकने, सड़कों पर भूस्खलन, घरों और इमारतों के ढहने जैसी घटनाओं के लिए आखिर कसूरवार कौन है? इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए अमर उजाला मंडी के आपदाग्रस्त क्षेत्र में ग्राउंड जीरो पर पहुंचा और हालात देखे।

मंडी जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर है थुनाग क्षेत्र। यह कभी घराटों का गढ़ कहलाता था। खड्डों-नालों के किनारे 25 से ज्यादा घराट हुआ करते थे। आजीविका का आधार भी यही घराट थे। 1984-85 में थुनाग तहसील बन गई। विकास के साथ घर और बाजार का दायरा बढ़ने लगा। लिहाजा, लोगों ने यहां जमीन खरीदना शुरू किया। मांग बढ़ी तो घराट और कूहलों वाली जमीन तक बिक गई। लोगों ने इसी जमीन पर घर-दुकानें और आलीशान भवनों का निर्माण कर लिया। वक्त के साथ घराट और कूहलें इतिहास के पन्नों में कहीं खो गए। कई बरसातें आईं और गए लेकिन इतना नुकसान कभी नहीं हुआ। इस बार ज्यादा बारिश हुई तो पानी अपने पुराने रास्तों से भी आया। नालों के किनारे का निर्माण तहस-नहस हो गया।
प्रभावित मोती राम और सुंदर सिंह कहते हैं कि घराट न केवल आटा पीसने का साधन थे, बल्कि सामुदायिक जीवन का हिस्सा भी थे। पांडवशिला के रूप लाल ने दावा किया कि आपदा राहत मैनुअल में घराटों के लिए मुआवजा नहीं है। थुनाग के तहसीलदार रजत सेठी ने बताया कि पुरानी तहसील क्षेत्र में पहले घराट थे या नहीं, राजस्व रिकॉर्ड को देखने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
सराज क्षेत्र में भारी बारिश से बाखली नाल और देजी खड्ड में बाढ़ आई और जगह-जगह भूस्खलन भी हुआ। अनियोजित विकास, अवैज्ञानिक तरीके से सड़कों का निर्माण, मलबे का ढलानों पर अनुचित निपटान और नालों के किनारे बस्तियों का निर्माण इसका मुख्य कारण है। वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन ने अतिवृष्टि को बढ़ाया। प्राकृतिक वनों का विनाश, व्यावसायिक खेती और पेड़ों की कटाई से भूस्खलन के मामले बढ़े। मलबे के ढेर और नालों में रुकावट ने बाढ़ की तीव्रता को कई गुना बढ़ाया, जिससे भारी तबाही हुई। - गुमान सिंह, पर्यावरणविद एवं संयोजक हिमालय नीति अभियान