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NRC: 'बिहार में चुपचाप एनआरसी लागू कर रहा चुनाव आयोग', ओवैसी का विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा आरोप
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पटना
Published by: नितिन गौतम
Updated Sat, 28 Jun 2025 10:55 AM IST
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सार
ओवैसी ने लिखा कि अगर आपकी जन्मतिथि जुलाई 1987 से पहले की है तो आपको जन्म की तारीख और जन्मस्थान दिखाने वाले 11 में से एक दस्तावेज को भी दिखाना होगा।

असदुद्दीन ओवैसी
- फोटो : ANI
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विस्तार
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुपचाप एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) को लागू कर रहा है। ओवैसी ने चेतावनी दी कि चुनाव आयोग के इस कदम से कई भारतीय नागरिकों को उनके वोट देने के अधिकार से रोका जा सकता है। इससे जनता का चुनाव आयोग में विश्वास भी कम होगा।
ओवैसी बोले- गरीब जनता से ये क्रूर मजाक
एआईएमआईएम प्रमुख ने सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में लिखा कि अब हर नागरिक को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए दस्तावेजों के जरिए साबित करना होगा कि वह कब और कहां पैदा हुआ और साथ ही ये भी बताना होगा कि उनके माता-पिता कब और कहां पैदा हुए। ओवैसी ने लिखा कि 'अनुमान के अनुसार, केवल तीन चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं, ज्यादातर सरकारी कागजों में भारी गलतियां होती हैं। बाढ़ प्रभावित सीमांचल क्षेत्र के लोग सबसे गरीब हैं और वे मुश्किल से दिन में दो बार का खाना खा पाते हैं। ऐसे में उनसे ये उम्मीद रखना कि उनके पास अपने माता-पिता के दस्तावेज होंगे, यह एक क्रूर मजाक ही है।'
ये भी पढ़ें- Bihar Polls 2025 : क्या अटकेगा बिहार में मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण? तेजस्वी ने उठाए सवाल; आयोग की यह है तैयारी
'चुनाव आयोग पर भरोसा कमजोर होगा'
ओवैसी ने आशंका जताई कि इसके चलते बिहार में बड़ी संख्या में लोगों के नाम मतदाता सूची से कट जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1995 में ऐसी मनमानी प्रक्रियाओं पर सख्त सवाल उठाए थे। ओवैसी ने सवाल उठाया कि जब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, तब इस तरह की कवायद से लोगों का चुनाव आयोग पर भरोसा कमजोर हो जाएगा। ओवैसी ने लिखा कि अगर आपकी जन्मतिथि जुलाई 1987 से पहले की है तो आपको जन्म की तारीख और जन्मस्थान दिखाने वाले 11 में से एक दस्तावेज को भी दिखाना होगा।
एआईएमआईएम प्रमुख ने कहा कि 'अगर आपका जन्म 1987 से 2004 के बीच हुआ है तो आपको अपना जन्म प्रमाण दिखाने वाला एक दस्तावेज देना होगा और साथ ही माता-पिता में से किसी एक की जन्म तारीख और जन्म स्थान दिखाने वाला दस्तावेज भी पेश करना होगा। अगर माता या पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक नहीं है तो उन्हें पासपोर्ट और वीजा दिखाना होगा।' ओवैसी ने चुनाव आयोग की कवायद पर सवाल उठाते हुए लिखा कि 'आयोग एक महीने में घर-घर जाकर जानकारी लेना चाहता है, लेकिन जब चुनाव इतने करीब हैं और बिहार की आबादी बड़ी है तो इस प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से करना लगभग असंभव है। ओवैसी ने अपनी बात के पक्ष में लाल बाबू हुसैन केस का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो व्यक्ति पहले से मतदाता सूची में है, उसे उचित प्रक्रिया के बिना हटाया नहीं जा सकता।'
ये भी पढ़ें- सीट का समीकरण: यहां से कर्पूरी ठाकुर और उनके बेटे दोनों विधानसभा पहुंचे, ऐसा है समस्तीपुर सीट का चुनावी इतिहास

ओवैसी बोले- गरीब जनता से ये क्रूर मजाक
एआईएमआईएम प्रमुख ने सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में लिखा कि अब हर नागरिक को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए दस्तावेजों के जरिए साबित करना होगा कि वह कब और कहां पैदा हुआ और साथ ही ये भी बताना होगा कि उनके माता-पिता कब और कहां पैदा हुए। ओवैसी ने लिखा कि 'अनुमान के अनुसार, केवल तीन चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं, ज्यादातर सरकारी कागजों में भारी गलतियां होती हैं। बाढ़ प्रभावित सीमांचल क्षेत्र के लोग सबसे गरीब हैं और वे मुश्किल से दिन में दो बार का खाना खा पाते हैं। ऐसे में उनसे ये उम्मीद रखना कि उनके पास अपने माता-पिता के दस्तावेज होंगे, यह एक क्रूर मजाक ही है।'
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'चुनाव आयोग पर भरोसा कमजोर होगा'
ओवैसी ने आशंका जताई कि इसके चलते बिहार में बड़ी संख्या में लोगों के नाम मतदाता सूची से कट जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1995 में ऐसी मनमानी प्रक्रियाओं पर सख्त सवाल उठाए थे। ओवैसी ने सवाल उठाया कि जब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, तब इस तरह की कवायद से लोगों का चुनाव आयोग पर भरोसा कमजोर हो जाएगा। ओवैसी ने लिखा कि अगर आपकी जन्मतिथि जुलाई 1987 से पहले की है तो आपको जन्म की तारीख और जन्मस्थान दिखाने वाले 11 में से एक दस्तावेज को भी दिखाना होगा।
एआईएमआईएम प्रमुख ने कहा कि 'अगर आपका जन्म 1987 से 2004 के बीच हुआ है तो आपको अपना जन्म प्रमाण दिखाने वाला एक दस्तावेज देना होगा और साथ ही माता-पिता में से किसी एक की जन्म तारीख और जन्म स्थान दिखाने वाला दस्तावेज भी पेश करना होगा। अगर माता या पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक नहीं है तो उन्हें पासपोर्ट और वीजा दिखाना होगा।' ओवैसी ने चुनाव आयोग की कवायद पर सवाल उठाते हुए लिखा कि 'आयोग एक महीने में घर-घर जाकर जानकारी लेना चाहता है, लेकिन जब चुनाव इतने करीब हैं और बिहार की आबादी बड़ी है तो इस प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से करना लगभग असंभव है। ओवैसी ने अपनी बात के पक्ष में लाल बाबू हुसैन केस का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो व्यक्ति पहले से मतदाता सूची में है, उसे उचित प्रक्रिया के बिना हटाया नहीं जा सकता।'
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