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Vande Mataram: 'वंदे मातरम से नेहरू ने जानबूझकर मां दुर्गा के श्लोक हटाए'; फैजपुर अधिवेशन का जिक्र कर बोली BJP
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Fri, 07 Nov 2025 12:14 PM IST
सार
कांग्रेस और भाजपा की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता किसी से छिपी नहीं है। अब ताजा घटनाक्रम में भाजपा नेता सीआर केसवन ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का जिक्र कर वंदे मातरम को संक्षिप्त किए जाने का आरोप लगाया है। उन्होंने 1937 में महाराष्ट्र के फैजपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन का जिक्र कर ये दावा किया है। जानिए क्या है पूरा मामला
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भाजपा नेता सीआर केसवन ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर की टिप्पणी (फाइल)
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
वंदे मातरम से नेहरू ने जानबूझकर मां दुर्गा के श्लोक हटाए। ये दावा किया है भाजपा नेता सीआर केसवन ने। उन्होंने आज से 89 साल पहले महाराष्ट्र के फैजपुर में आयोजित इंडियन नेशनल कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन का जिक्र कर कहा कि जानबूझकर कांग्रेस पार्टी ने देश के राष्ट्रीय गीत- वंदे मातरम में बदलाव किए।
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1937 में देवी दुर्गा की स्तुति वाले छंद हटा दिए गए
बकौल केसवन, 1937 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वंदे मातरम से देवी दुर्गा की स्तुति वाले छंद हटा दिए गए। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने ये फैसला कुछ सांप्रदायिक समूहों को खुश करने के लिए लिया। एक्स पर उन्होंने इस संबंध में पोस्ट किया है। इससे वंदे मातरम के मूल स्वरूप और मकसद को लेकर नई बहस छिड़ने की आशंका है।
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सांप्रदायिक कारणों से देवी दुर्गा का आह्वान...
बकौल केसवन, कांग्रेस पार्टी ने वंदे मातरम के केवल पहले दो छंदों को स्वीकार किया। कथित सांप्रदायिक कारणों से देवी दुर्गा का आह्वान करने वाले बाद के छंदों को छोड़ दिया गया। भाजपा प्रवक्ता केसवन ने वंदे मातरम की तुलना वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित समारोह से की। बता दें की वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में पीएम मोदी की अध्यक्षता में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इस समारोह में वंदे मातरम के पूर्ण संस्करण का सामूहिक गायन भी किया गया।
नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस पार्टी ने अपने सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए...
इस समारोह का उल्लेख करते हुए भाजपा नेता केसवन ने कहा, 'हमारी युवा पीढ़ी के लिए यह जानना जरूरी है कि किस तरह नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस पार्टी ने अपने सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए 1937 के फैजपुर अधिवेशन में पार्टी के राष्ट्रीय गीत के रूप में केवल एक संक्षिप्त वंदे मातरम को अपनाया था। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वंदे मातरम के 150वें स्मरणोत्सव का उद्घाटन करेंगे। इसके बाद पूरे देश में गौरवशाली वंदे मातरम के पूर्ण संस्करण का सामूहिक गायन होगा।'
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देवी के प्रति भक्तिपूर्ण आह्वान को हटाकर 'ऐतिहासिक पाप और भूल'
उन्होंने एक्स पोस्ट में विस्तार से जारी बयान में लिखा, वंदे मातरम किसी विशेष धर्म या भाषा से संबंधित नहीं है, लेकिन उन्होंने कांग्रेस पर इसे धर्म से जोड़कर और देवी के प्रति भक्तिपूर्ण आह्वान को हटाकर 'ऐतिहासिक पाप और भूल' की है। केसवन ने आरोप लगाया कि नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने धार्मिक आधार का हवाला देते हुए जानबूझकर वंदे मातरम के उन छंदों को हटा दिया, जिनमें देवी मां दुर्गा की स्तुति की गई थी।
क्या पंडित नेहरू ने लिखा- गीत की पृष्ठभूमि मुसलमानों को 'चिढ़ा' सकती है?
भाजपा नेता केसवन ने दावा किया है कि 20 अक्तूबर, 1937 को नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कथित तौर पर लिखा था कि गीत की पृष्ठभूमि मुसलमानों को "चिढ़ा सकती है।" केसवन का दावा है कि नेताजी ने वंदे मातरम के पूर्ण और मूल संस्करण की पुरजोर वकालत की थी।
नेहरू पर वंदे मातरम को लेकर द्वेषपूर्ण टिप्पणी के आरोप
भाजपा प्रवक्ता केसवन ने कांग्रेस की वैचारिकी को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा, 1 सितंबर, 1937 को लिखे एक पत्र में नेहरू ने द्वेषपूर्ण ढंग से वंदे मातरम पर टिप्पणी की है। केसवन ने पत्र के जिन अंशों को रेखांकित किया है, उसमें नेहरू कथित तौर पर लिखते हैं, 'अगर कोई वंदे मातरम के शब्दों को देवी से संबंधित मानता है तो ऐसी मानसिकता बेतुकी है।'
सुभाषचंद्र बोस ने वंदे मातरम के पूर्ण और मूल संस्करण का समर्थन किया
केसवन के मुताबिक नेहरू ने व्यंग्यात्मक लहजे में यह भी कहा कि वंदे मातरम राष्ट्रीय गीत के रूप में उपयुक्त नहीं है, जबकि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने वंदे मातरम के पूर्ण और मूल संस्करण की पुरजोर वकालत की। 20 अक्तूबर, 1937 के पत्र का जिक्र कर भाजपा प्रवक्ता ने कहा, नेहरू ने नेताजी बोस को पत्र लिखकर दावा किया कि वंदे मातरम की पृष्ठभूमि मुसलमानों को परेशान कर सकती है। केसवन ने पत्र के जिन अंशों को साझा किया है इसमें पंडित नेहरू ने कथित तौर पर ये भी लिखा है कि वंदे मातरम में भाषा की कठिनाई भी है जो ज़्यादातर लोगों को समझ में नहीं आती। मैं इसे शब्दकोश की मदद के बिना नहीं समझ सकता।
कांग्रेस की विचारधारा और कार्यपद्धति को स्पष्ट की
वंदे मातरम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का जिक्र कर नेहरू ने लिखा, सांप्रदायिक सोच रखने वाले लोगों ने निहित स्वार्थों के कारण इसके खिलाफ आक्रोश और विरोध प्रकट किया है। हालांकि, विरोध पूरी तरह तथ्यहीन नहीं हैं और सांप्रदायिकता की ओर झुकाव रखने वाले लोग इससे प्रभावित हुए हैं। पंडित नेहरू ने कांग्रेस की विचारधारा और कार्यपद्धति को स्पष्ट करते हुए कहा, 'हम जो कुछ भी करते हैं, उसका मकसद सांप्रदायिकतावादियों की भावनाओं को भड़काना नहीं, बल्कि वास्तविक शिकायतों का समाधान करना है।'
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प्रधानमंत्री ने भी कांग्रेस की आलोचना की
केसवन के इस बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कांग्रेस पार्टी को आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा, 'आजादी की लड़ाई में 'वंदे मातरम्' की भावना ने पूरे राष्ट्र को आलोकित किया, लेकिन दुर्भाग्य से 1937 में इसकी आत्मा का एक हिस्सा, 'वंदे मातरम्' के महत्वपूर्ण पदों को अलग कर दिया गया। 'वंदे मातरम्' को खंडित किया गया, उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए। 'वंदे मातरम्' के इसी विभाजन ने देश के विभाजन के बीज भी बोए... आज की पीढ़ी के लिए यह जानना जरूरी है कि यह अन्याय क्यों हुआ, क्योंकि वही विभाजनकारी सोच आज भी देश के लिए चुनौती बनी हुई है।'
क्या है वंदे मातरम का इतिहास
गौरतलब है कि भारत का राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' पश्चिम बंगाल के प्रख्यात साहित्यकार बंकिम चंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास 'आनंदमठ' से लिया गया है। इसे राष्ट्रीय एकता और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत का प्रतीक माना गया। हालांकि, एक पक्ष का दावा यह भी है कि कुछ मुसलमानों ने इस गीत को हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाला बताकर आपत्ति भी दर्ज कराई। देश की आजादी के करीब 10 साल पहले 1937 में आयोजित कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन में जब इसे गाया गया तो केवल पहले दो छंदों का इस्तेमाल हुआ। कांग्रेस को इस बात की चिंता थी कि गीत में देवी दुर्गा का संदर्भ होने के कारण इसका बहिष्कार किया जा सकता है।