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Anil Chauhan: सीडीएस चौहान बोले- युद्ध में जीत ही अंतिम लक्ष्य, सांत्वना पुरस्कार जैसी कोई जगह नहीं होती
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: राहुल कुमार
Updated Tue, 11 Nov 2025 11:33 PM IST
सार
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने मंगलवार को कहा कि किसी भी संघर्ष की स्थिति में भारत को अपनी तकनीकी विशेषज्ञता और श्रेष्ठता बनाए रखनी होगी, क्योंकि युद्ध में रनर-अप या सांत्वना पुरस्कार जैसी कोई जगह नहीं होती।
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जनरल अनिल चौहान, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ
- फोटो : ANI
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विस्तार
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने मंगलवार को इस बात पर जोर दिया कि देश के पास संघर्ष में अपने दुश्मनों की रक्षा करने और उन पर विजय पाने के लिए "तकनीकी विशेषज्ञता और श्रेष्ठता" होनी चाहिए, क्योंकि क्योंकि युद्ध में रनर-अप या सांत्वना पुरस्कार जैसी कोई जगह नहीं होती।
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चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (एमपी-आईडीएसए) द्वारा आयोजित ‘दिल्ली रक्षा संवाद’ में रक्षा क्षेत्र में आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग के विषय पर बोल रहे थे। दिल्ली रक्षा संवाद सम्मेलन 2025 में बोलते हुए उन्होंने कहा, मौलिक सत्य अपरिवर्तित रहता है; युद्ध हमेशा जीत के बारे में ही होता है, चाहे आप भूगोल का इस्तेमाल करें या तकनीक का। हमारी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि जब संघर्ष हो, जैसा कि अनिवार्य रूप से होगा, तो हमारे पास अपने देश की रक्षा करने और विजय पाने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और श्रेष्ठता हो।
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सीडीएस ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर आधुनिक युद्ध का एक प्रभावशाली उदाहरण है, जहां सटीक हमला करने की क्षमता, नेटवर्क-केंद्रित ऑपरेशन, डिजिटल इंटेलिजेंस और मल्टी-डोमेन रणनीति को एक सीमित समय-सीमा के भीतर प्रभावी ढंग से उपयोग में लाया गया। यह गतिज और गैर-गतिज युद्ध का एक मिश्रित रूप था, जो नेटवर्क और डिजिटल रूप से एक ही तस्वीर के साथ जुड़ा हुआ था। उन्होंने आगे कहा, यह सही मायने में बहु-क्षेत्रीय था, यह सामरिक, परिचालन और रणनीतिक युद्ध का एक साथ संगम था... और सब कुछ एक सीमित समय सीमा में, बहुत तेज गति से हो रहा था।
जनरल चौहान ने अपने संबोधन की शुरुआत ऐतिहासिक युद्धों, बैटल ऑफ मैराथन (490 ईसा पूर्व), वाटरलू और गैलीपोली अभियान के उदाहरणों से की। उन्होंने कहा, युद्ध में कोई उपविजेता नहीं होता। केवल विजेता ही इतिहास लिखते हैं। यही कठोर सच्चाई सैन्य नेतृत्व को सदियों से प्रेरित करती रही है कि वे अपने शत्रुओं पर हर संभव बढ़त हासिल करें।
पहले युद्ध की रणनीति भूगोल पर आधारित होती थी
उन्होंने कहा कि पहले युद्ध की रणनीति मुख्य रूप से भूगोल पर आधारित होती थी, लेकिन अब तकनीक भूगोल से अधिक निर्णायक भूमिका निभा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि अंतरिक्ष अब केवल समर्थन क्षेत्र नहीं रहा, बल्कि निर्णायक युद्धक्षेत्र बन गया है। उन्होंने कहा, आज तकनीक के विकास ने अंतरिक्ष को ऐसा क्षेत्र बना दिया है, जिसे अब संरक्षित, नियंत्रित और प्रतिद्वंद्वी से छीनने योग्य बनाया जा सकता है। यह सम्मेलन मनोज पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (एमपी-आईडीएसए) की ओर से आयोजित किया गया था। जनरल चौहान ने कहा कि किसी भी संघर्ष में दांव हमेशा ऊंचे होते हैं, क्योंकि “राष्ट्र का अस्तित्व और भविष्य युद्ध के परिणाम पर निर्भर करता है।
रणनीतिक स्वायत्तता के लिए सॉफ्टवेयर का स्वदेशी होना ज़रूरी-राजनाथ
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि रक्षा क्षेत्र में प्रयुक्त तकनीकों में हार्डवेयर के साथ सॉफ्टवेयर भी स्वदेशी होना चाहिए। सच्ची रणनीतिक स्वायत्तता तभी आएगी जब हमारा कोड हमारे हार्डवेयर जितना ही स्वदेशी होगा। उन्होंने कहा कि डिजिटल संप्रभुता के लिए रक्षा उपकरणों को चलाने वाले एल्गोरिदम, डेटा और चिप्स पर भी नियंत्रण होना चाहिए।
रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि आधुनिक रक्षा तैयारियां अब सुरक्षित डेटा आर्किटेक्चर या एन्क्रिप्टेड नेटवर्क जैसी अदृश्य तकनीकों पर आधारित हैं। यह तकनीकें भले ही किसी मिसाइल, विमान या युद्धपोत की तरह लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं करतीं, लेकिन इन्हीं पर यह निर्भर करता है कि सही उपकरण सही समय पर पहुंच रहे हैं या नहीं। सभी प्रणालियां एक दूसरे से बाधारहित संवाद कर रही हैं या नहीं।