सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   India News ›   Increased industrial water consumption threatens freshwater resources

चिंताजनक: उद्योगों में बढ़ी जल खपत, मीठे जल संसाधनों पर संकट

अमर उजाला नेटवर्क Published by: लव गौर Updated Fri, 28 Nov 2025 06:35 AM IST
सार

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि तत्काल सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो औद्योगिक विस्तार जल-संकट को अभूतपूर्व स्तर तक पहुंचा देगा विशेषकर उन देशों में जो पहले से ही जल-किल्लत से जूझ रहे हैं।

विज्ञापन
Increased industrial water consumption threatens freshwater resources
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : सोशल मीडिया
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

वैश्विक औद्योगिक उत्पादन की बढ़ती प्यास यानी तेजी से बढ़ती जल-खपत दुनिया के सीमित मीठे जल संसाधनों पर गंभीर दबाव डाल रही है। स्टील, सीमेंट, प्लास्टिक, रबर, कागज और एल्यूमिनियम जैसी सामग्रियों के उत्पादन में खर्च होने वाला वाटर-फुटप्रिंट 1995 के मुकाबले 2021 तक दोगुना हो चुका है और नया अध्ययन चेतावनी देता है कि 2050 तक यही जल-खपत 179% तक बढ़ सकती है।
Trending Videos


विशेषज्ञों का कहना है कि यदि तत्काल सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो औद्योगिक विस्तार जल-संकट को अभूतपूर्व स्तर तक पहुंचा देगा विशेषकर उन देशों में जो पहले से ही जल-किल्लत से जूझ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक 1995 से 2021 के बीच स्टील, सीमेंट, प्लास्टिक, रबर और अन्य निर्माण सामग्रियों के प्रोडक्शन में इस्तेमाल होने वाला साफ पानी 2,510 करोड़ से बढ़कर 5,070 करोड़ घनमीटर पर पहुंच गया है। इन सामग्रियों की वैश्विक जल- खपत हिस्सेदारी भी 2.8 से बढ़कर 4.7% हो गई है।
विज्ञापन
विज्ञापन


यह संकेत है कि औद्योगिक विकास जल संसाधनों पर तेजी से कब्जा बढ़ा रहा है। सबसे तेज वृद्धि पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया और ओशिनिया में दर्ज हुई, जहां वाटर-फुटप्रिंट में 267% का उछाल देखा गया। वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि हम वर्तमान में एंथ्रोपोसीन यानी मानव-प्रधान युग में जी रहे हैं जहां धरती के प्राकृतिक संसाधन बेहद तेजी से दोहन का शिकार हो रहे हैं। कृषि साफ पानी की सबसे बड़ी उपभोक्ता है, लेकिन हाल के दशकों में उद्योगों की जल-प्यास तेजी से बढ़ी है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं विशेषकर दक्षिण एशिया में यह वृद्धि सबसे अधिक है, जहां पहले से ही जल-कमी गंभीर चुनौती बनी हुई है।

2050 तक हालात और बिगड़ेंगे
अध्ययन ने भविष्य के हालात को लेकर गंभीर पूर्वानुमान पेश किया है। यदि मौजूदा रफ्तार जारी रही तो 2050 तक औद्योगिक सामग्रियों का वाटर-फुटप्रिंट 2021 के मुकाबले 179% बढ़ सकता है। साफ पानी की वैश्विक खपत में इंडस्ट्रियल सामग्री का हिस्सा 9% तक पहुंच सकता है। शोधकर्ताओं ने भारत, तुर्की और कजाखस्तान जैसे देशों को संभावित हॉटस्पॉट बताया है, जहां उत्पादन प्रक्रियाओं में पानी की दक्षता बढ़ाए बिना जल-टकराव और संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है।

ये भी पढ़ें: चिंताजनक: आनुवांशिक विविधता नहीं बढ़ी तो खतरे में बाघों की आबादी, तेजी से फैल रहा दुर्लभ काली धारियों वाला जीन

तत्काल ठोस कदम उठाने की जरूरत
रिपोर्ट के अनुसार जल-संकट कम करने के लिए सिर्फ पानी बचाना ही नहीं, बल्कि उत्पादन प्रक्रियाओं को नए सिरे से डिजाइन करना जरूरी है। अध्ययन में सुझाए गए कदमों में जल-बचत तकनीकों को बढ़ावा देना, उद्योगों के लिए पानी दक्षता मानक, पानी बचाने वाली प्रक्रियाओं पर सब्सिडी और टैक्स छूट के साथ ही पानी-आधारित जोखिम को आर्थिक नीति में शामिल करना शामिल है। शोधकर्ताओं ने चेताया है कि जल-प्रबंधन को नजरअंदाज करना न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि उद्योगों की आर्थिक स्थिरता के लिए भी बड़ा खतरा साबित होगा।
 
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News apps, iOS Hindi News apps और Amarujala Hindi News apps अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed