Healthcare: तेजी से बढ़ रहा स्वास्थ्य सेवाओं का डिजिटलाइजेशन, इलाज की सलाह लेने-देने में अभी भी बहुत पीछे
Health Digitalization: नैटहेल्थ की बुधवार को जारी इस रिपोर्ट के अनुसार 40 फीसदी लोग मानते हैं कि डिजिटलीकरण से स्वास्थ्य सेवाएं ज्यादा महंगी हो जाती हैं, यही कारण है कि वे स्वास्थ्य सेवाओं को दूसरे माध्यमों से प्राप्त करना बेहतर समझते हैं...


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देश में स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटलाइजेशन तेजी से बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 74 फीसदी लोगों को विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं के डिजिटल होने की जानकारी है। लगभग 67 फीसदी लोगों ने पिछले एक साल में किसी न किसी स्वास्थ्य सेवा का डिजिटल फॉर्म में उपयोग किया है। स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटलीकरण आंकड़े रखने और अस्पतालों के द्वारा मरीजों की विभिन्न जांच रिपोर्ट/बिल बनाने जैसी सहयोगी सेवाओं में ही ज्यादा हो रहा है, लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों या चिकित्सकों से ऑनलाइन परामर्श लेने जैसे मूल स्वास्थ्य सेवा लेने के मामले में यह आंकड़ा अभी भी काफी कम (34 फीसदी) है।
नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल की उपस्थिति में जारी रिपोर्ट (पाथवेज टू एडॉप्शन ऑफ हेल्थ इन इंडिया) के अनुसार डिजिटलाइजेशन शहरी क्षेत्र के बड़े निजी अस्पतालों या सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में ही ज्यादा है। मझोले-छोटे अस्पताल और ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटलीकरण अभी भी काफी पीछे हैं। कोरोना काल में जारी किए गए कोविन एप, ई-संजीवनी सेवा और आभा आईडी के मामले में डिजिटलीकरण 90 फीसदी या इससे ज्यादा तक पहुंच चुका है।
नैटहेल्थ की बुधवार को जारी इस रिपोर्ट के अनुसार 40 फीसदी लोग मानते हैं कि डिजिटलीकरण से स्वास्थ्य सेवाएं ज्यादा महंगी हो जाती हैं, यही कारण है कि वे स्वास्थ्य सेवाओं को दूसरे माध्यमों से प्राप्त करना बेहतर समझते हैं। जबकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि स्वास्थ्य सेवाओं के डिजिटल होने से लोगों को सस्ती सेवाएं मिलती हैं, लेकिन ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य सुविधा पहुंचा पाने के कारण यह तरीका स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करा रही एजेंसी-अस्पतालों के लिए ज्यादा लाभदायक साबित होता है।
डिजिटलाइजेशन का बड़ा लाभ
रिपोर्ट की रिसर्च टीम के सदस्य बीसी मोइत्रा ने अमर उजाला को बताया कि आंकड़ों के डिजिटल होने का बड़ा लाभ यह है कि यदि कभी कोरोना जैसी महामारी या कोई बड़ी स्वास्थ्य समस्या पैदा होती है, तो उस पर लगाम लगाने के लिए सरकार के पास ज्यादा विश्वसनीय और ठोस आंकड़े होंगे। इनकी सहायता से बीमारी को पकड़ पाना, उसका संभावित इलाज ढूंढ़ पाना बहुत आसान होगा। यहां तक कि किसी संभावित बीमारी का टीका बनाने में भी अब पहले की तुलना में काफी कम समय लगेगा। कोरोना का टीका डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया का लाभ उठाने के ही कारण ज्यादा आसानी से और कम समय में बनाने में सफलता मिली थी। भविष्य में इसका और ज्यादा लाभ मिलेगा और किसी स्वास्थ्य चुनौती से हम ज्यादा आसानी से निपट सकने में सक्षम होंगे।
बड़ी समस्या और संभावित समाधान
बीसी मोइत्रा ने बताया कि आंकड़ों के डिजिटल होने के बाद इसके चोरी होने का एक बड़ा और वास्तविक खतरा हमारे सामने मौजूद है। कई बार किसी संस्थान विशेष या छोटे अस्पतालों के आंकड़ों के चोरी होने की जानकारी मिलती रहती है। लेकिन साइबर सुरक्षा की आधुनिक विधाओं का इस्तेमाल कर इसमें लगातार कमी की जा रही है। डिजिटलाइजेशन के बढ़ने के साथ ही यह समस्या कम हो सकती है। मास्किंग जैसे तरीकों ने अब आंकड़ों को चुराना कठिन कर दिया है। जिस तरह आधार के आंकड़े सुरक्षित किए जाते हैं, उसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं के डिजिटलीकरण करने से आंकड़ों की चोरी से बहुत हद तक बचा जा सकता है। अच्छी बात यह है कि आंकड़ों के चोरी होने के बाद भी मरीज की निजता पर कोई आंच नहीं आती।