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INDI alliance: यहां हुई विपक्षी गठबंधन में सबसे बड़ी चूक, अगर ऐसा पहले कर लेते, तो न पड़ते कमजोर और न होती टूट

Ashish Tiwari आशीष तिवारी
Updated Mon, 19 Feb 2024 02:07 PM IST
सार
गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के कई कद्दावर नेताओं का कहना है कि सीट बंटवारे वाले मामले पर इंडिया ब्लॉक के प्रमुख दल कांग्रेस की ओर से सबसे ज्यादा लापरवाहियां बरती गईं। नतीजा हुआ कि क्षेत्रीय दल सीटों के बंटवारे की घोषणा का इंतजार करते रहे और चुनाव नजदीक आते देख धीरे-धीरे या तो पाला बदलते रहे या अलग होकर सियासी मैदान में अकेले उतर पड़े...
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INDI alliance: The major party of India Bloc, Congress, was most negligence on the matter of seat sharing
INDI alliance - फोटो : Amar Ujala/ Himanshu Bhatt

विस्तार
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विपक्षी दलों के सबसे बड़े गठबंधन समूह I.N.D.I गठबंधन में यूं ही टूट नहीं पड़ी है। दरअसल इस गठबंधन के बिखरने की असली वजह में 'एक' सबसे बड़ी गलती सामने आ रही है। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के कई कद्दावर नेताओं का कहना है कि सीट बंटवारे वाले मामले पर इंडिया ब्लॉक के प्रमुख दल कांग्रेस की ओर से सबसे ज्यादा लापरवाहियां बरती गईं। नतीजा हुआ कि क्षेत्रीय दल सीटों के बंटवारे की घोषणा का इंतजार करते रहे और चुनाव नजदीक आते देख धीरे-धीरे या तो पाला बदलते रहे या अलग होकर सियासी मैदान में अकेले उतर पड़े।

केंद्र की NDA सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव में चुनौती देने के लिए देश की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने एक बड़े गठबंधन समूह I.N.D.I.A का गठन किया। इस गठबंधन में अलग-अलग राज्यों के 26 दल शामिल हुए। गठबंधन में शामिल एक प्रमुख राजनीतिक दल से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ नेता कहते हैं कि गठबंधन की नींव भारतीय जनता पार्टी से लड़ने के लिए रखी गई थी। यह लड़ाई मिलकर ही लड़ी जानी थी। लेकिन पिछले साल जून से लेकर अब तक गठबंधन के मुख्य घटक दल कांग्रेस की ओर से सीटों को लेकर कोई फैसला ही नहीं लिया जा सका। पार्टी के उक्त वरिष्ठ नेता कहते हैं कि जब हमें लड़ाई लड़नी है, तो यह तय होना चाहिए कि गठबंधन में शामिल घटक दल राज्यों में किस तरीके से चुनाव लड़ेंगे। सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार हर बैठक में आवाज उठाई जाती रही। लेकिन कुछ भी ठोस परिणाम नहीं निकल सका।

गठबंधन में शामिल सियासी दल के उक्त वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस स्थिति में क्षेत्रीय दल मैदान में मजबूती के साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह जरूरी है कि अब वह कांग्रेस का इंतजार न करें और अपने तरीके से चुनावी मैदान में उतरें। सियासी जानकारों का भी मानना है कि जून में हुई गठबंधन की पहली बैठक के बाद से लेकर लगातार हो रही बैठकों में सीटों के बंटवारे पर कोई फैसला नहीं लिया गया। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं का मानना है कि अगर सीटों के बंटवारे पर ही फैसला हो जाता, तो शायद गठबंधन की मजबूती भी बनी रहती और चुनाव में उसके आधार पर बड़ी लड़ाई भी लड़ी जाती। लेकिन इस मामले में हुई बड़ी चूक और लापरवाही पर गठबंधन के दल एक-एक कर अलग होते रहे। सियासी जानकार भी मानते हैं कि गठबंधन के कमजोर पड़ने के कई प्रमुख कारण नजर आ रहे हैं।

हाल में ही I.N.D.I गठबंधन से अलग होकर सियासी मैदान में अकेले ताल ठोंकने वाली पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि कांग्रेस तो अपने सियासी जनाधार को बढ़ाने के लिए न्याय यात्रा निकाल रही है। लेकिन गठबंधन में शामिल अन्य सियासी दलों के लिए मझधार की स्थिति पैदा हो गई। उनका कहना है कि अगर वह अलग होकर चुनावी मैदान में ताल नहीं ठोंकते तो क्या करते। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने अपना लंबा वक्त गठबंधन की रणनीति को मजबूत करने की बजाय चुनाव में लगाया। उनका कहना है कि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस को विधानसभा चुनाव पर पूरा फोकस करना जरूरी भी था, लेकिन जो दल उन विधानसभा चुनाव में हिस्सेदारी नहीं कर रहे थे, वह किस बात के लिए इंतजार करते रहे। सिर्फ इसलिए कि इन विधानसभा चुनावों से कांग्रेस खाली हो, तो गठबंधन पर ध्यान दें। यह परिस्थितियां गठबंधन में शामिल छोटे-छोटे दलों के लिए बड़ी असहज हो गई।

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रूपिंदर चहल कहते हैं कि कई जगह पर सियासी गणित तालमेल नहीं खा रही थी इसलिए गठबंधन कमजोर हुआ। इसके अलावा वह कहते हैं कि आपसी गठबंधन के बाद भी सियासी दलों में सामंजस्य न के बराबर दिखा। गठबंधन में शामिल सियासी दल से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि पटना से लेकर मुंबई और बेंगलुरु से लेकर दिल्ली में गठबंधन की बैठकों में जिन मुद्दों पर सियासी रणनीति बनाने की बात हुई, वह असल में कभी गंभीरता से आगे बढ़े ही नहीं। वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है इसको लेकर प्रमुख घटक दल कांग्रेस के साथ बातचीत नहीं हुई। लेकिन जिन मुद्दों पर चर्चा होनी थी, उसे छोड़कर सिर्फ बैठकें होती रहीं। उनका मानना है कि अगर एक महत्वपूर्ण बिंदु यानि सीट शेयरिंग पर शुरुआती दौर में ही फैसला हो जाता, तो संभव है गठबंधन की मजबूती बरकरार रहती।

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