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क्या दादी और पिता माधवराव सिंधिया की कड़वाहट को अब तक नहीं भूल पाए ज्योतिरादित्य?

शशिधर पाठक, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Harendra Chaudhary Updated Wed, 11 Mar 2020 06:52 PM IST
सार

  • दादी की वसीयत का चल रहा है मुकदमा
  • दादी ने पिता माधवराव से जयविलास पैलेस में रहने का मांगा था किराया
  • माधवराव सिंंधिया ने पहला चुनाव 1971 में जनसंघ से लड़ा था

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jyotiraditya scindia Father Madhav rao scindia and grandmother relations was stringent
Scindia Family - फोटो : AmarUjala
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विस्तार
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इतिहास के पन्ने में दर्ज कई तारीखें इसके कड़वेपन को बताती हैं। 2001 में ग्वालियर घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया के निधन के बाद एक कड़वी कहानी फिर सामने आई थी। अपने हाथ से 1985 में लिखी वसीयत में राजमाता ने अपने एकमात्र बेटे माधवराव सिंधिया से निधन के बाद मुखाग्नि देने का अधिकार छीन लिया था।
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राजमाता की दो वसीयतें (1985 और 1999) सामने आईं और इस पर आज भी अदालत में मुकदमा चल रहा है। मां और बेटे के रिश्ते बहुत कड़वाहट भरे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा ज्वाइन करते समय भी एक बार यही अहसास हो रहा था। लग रहा था कि राजमाता और पिता के बीच की कड़वाहट ज्योतिरादित्य अब तक नहीं भूल पाए हैं।

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माधवराव सिंधिया के एक वफादार बताते हैं कि ज्योतिरादित्य की मां माधवी को भी राजमाता के नाम से ही काफी चिढ़ थी। बताते हैं माधवी और माधव राव सिंधिया का राजमाता विजयाराजे सिंधिया से रिश्ता सत्तर के दशक से ही बहुत बिगड़ गया था। राजमाता अपने राजनीतिक सलाहकार सरदार संभाजी राव आंग्रे पर अधिक निर्भर रहने लगी थीं।

भाजपा नेताओं ने राजमाता को किया याद

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और बुआ वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री रहीं और दूसरी बुआ यशोधरा राजे को ज्योतिरादित्य के भाजपा ज्वाइन करने पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया की खूब याद आई। भाजपा के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा समेत तमाम नेताओं ने राजमाता को याद किया और ज्योतिरादित्य की एक तरह से परिवार में वापसी बताई, लेकिन ज्योतिरादित्य ने दादी के नाम से ही किनारा किए रखा।

क्या कड़वाहट ही रही वजह

हालांकि 2001 में राजमाता के निधन के बाद वसीयत के मुताबिक मुखाग्नि की इच्छा न व्यक्त किए जाने के बावजूद श्रीमंत माधवराव सिंधिया ने मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया को मुखाग्नि दी, लेकिन कड़वाहट तो थी। राजमाता ने जयविलास पैलेस में रहने के लिए माधवराव से सालाना एक रुपये का किराया मांगा था।

शुरू में माधवराव थे जनसंघी

राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने राजनीति में कदम देश पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर रखा था। वह गुना से 1957 में कांग्रेस के टिकट पर लड़कर सांसद बनी थीं, लेकिन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद उनकी इंदिरा गांधी से खटक गई।

खटकने की वजह इंदिरा गांधी का राजभत्ता समाप्त करने का फैसला और मध्यप्रदेश में छात्र आंदोलन तथा सरगुजा स्टेट (वर्तमान में छत्तीसगढॉ) में पुलिस कार्रवाई को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र से टकराव था।

इसमें इंदिरा ने डीपी मिश्र का पक्ष लिया। राजमाता की इच्छाओं के अनुरूप काम नहीं किया था। इससे आहत होकर राजमाता ने कांग्रेस छोड़ दी, जनसंघ में शामिल हो गईं और जनसंघ को तन, मन, धन से खड़ा किया। वहीं माधवराव सिंधिया ने राजनीति की शुरुआत जनसंघ से की और 1971 में पहले चुनाव में कांग्रेस के डीके जाधव को हराया था।  उन्होंने बाद में कांग्रेस ज्वाइन की।

कांग्रेस ने दिया था ज्योतिरादित्य को पूरा हक

30 सितंबर 2001 को माधवराव सिंधिया की हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इसी साल राजमाता विजयाराजे सिंधिया का भी निधन हुआ था। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने माधवराव सिंधिया की राजनीतिक विरासत को उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को देने में जरा भी देर नहीं लगाई।

2004 में केंद्र में यूपीए सरकार बनने के बाद भी ज्योतिरादित्य को मंत्री बनाया गया। वह 2014 तक केंद्र सरकार में मंत्री रहे। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा के करीबी दोस्तों में रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा, लेकिन पार्टी ने ज्योतिरादित्य को लोकसभा में मुख्य सचेतक की जिम्मेदारी सौंपी।

 

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