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खबरों के खिलाड़ी: इस खिड़की से सशक्तीकरण की राह खुलेगी, नारी शक्ति वंदन विधेयक पर विश्लेषकों का विश्लेषण
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिव शरण शुक्ला
Updated Sat, 23 Sep 2023 08:50 PM IST
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सार
Khabron Ke Khiladi: नारी शक्ति वंदन विधेयक का पारित होना ऐतिहासिक घटना रही। इस विधेयक के जरिए महिलाओं को आरक्षण मिलेगा, लेकिन यह अमल में कब से आएगा, इसे लेकर भी सवाल हैं। जानिए इस पर विश्लेषकों की राय...

खबरों के खिलाड़ी।
- फोटो : अमर उजाला

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विस्तार
बीता हफ्ता भारतीय लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक रहा। महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में 33 फीसदी आरक्षण देने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया गया। नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम का यह विधेयक दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित हो गया। इसके साथ ही देश के नए संसद भवन में कार्यवाही की शुरुआत हुई। संसद के पुराने भवन को संविधान भवन के रूप में नई पहचान मिली। इन सबके बीच सबसे ज्यादा चर्चा महिला आरक्षण के लिए लाए गए विधेयक की ही रही। इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए खबरों के खिलाड़ी की इस नई कड़ी में हमारे साथ वरिष्ठ विश्लेषक समीर चौगांवकर, राखी बख्शी, प्रेम कुमार, गुंजा कपूर और अवधेश कुमार मौजूद रहे। आइए जानते हैं विश्लेषकों की राय...
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गुंजा कपूर
मैं उस भारत में बड़ी हुई हूं, जहां मैंने महिलाओं को सशक्त होते देखा है। ये वो भारत है, जहां परिवारों ने अपने बेटियों को पढ़ाया भी है और बढ़ाया है। मुझे लगता है कि यह आरक्षण शायद थोड़ा देर से लाया गया है। आप देखिए इंदिरा गांधी, जिन्हें उनकी पार्टी ने गूंगी गुड़िया के तौर पर आगे किया, लेकिन वे ऐसी महिला प्रधानमंत्री हुईं, जिन्होंने वो कर दिखाया, जो कोई पुरुष प्रधानमंत्री नहीं कर पाया। उन्होंने ही पाकिस्तान के दो टुकड़े किए।
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बीजद पार्टी अपनी 42 फीसदी महिलाओं को संसद भेजती है। दूसरी पार्टियां ऐसा क्यों नहीं कर पाती हैं? यूपी की एक मंत्री हैं गुलाब देवी, जो 1980 के दशक में भारत की राजनीति आईं। आज उनकी बेटियां न सिर्फ पढ़ीं लिखीं हैं, बल्कि अपने-अपने क्षेत्रों में बेहद सफल हैं। उदाहरण ही अपने आप में सबकुछ कहते हैं। मेरा मानना है कि आरक्षण देने से मेरा भला नहीं होगा। मेरा भला तब होगा, जब विशाखा गाइडलाइन को अच्छी तरह से लागू किया जाए। मेरा भला तब होगा, जब महिलाओं पर अश्लील टिप्पणियां करने वालों पर रोक लग सके। महिलाएं पिछले नौ साल में लाभार्थी बन गई हैं। वो वोट बैंक नहीं रह गईं। ये बड़ा बदलाव आया है।
राखी बख्शी
मैं इस बिल को एक आशावादी तरीके से ये कहकर आगे बढ़ाना चाहती हूं कि ये एक खिड़की के खुलने की तरह है। यहां से एक रास्ता खुला है। इसके आगे बहुत सी चीजें होंगी। अलग-अलग पार्टियों में बात शुरू हो गई है कि किस तरह इस बार के चुनाव में महिलाओं को ज्यादा टिकट दिया जाए। मौजूदा समय में देश की विधानसभाओं को देखें तो कितनी विधानसभाओं की अध्यक्ष महिलाएं हैं। इस वक्त मुझे केवल ऋतु खंडूरी का नाम याद आ रहा है। देश में केवल एक महिला मुख्यमंत्री हैं। महिला आरक्षण आने के साथ यहां से महिला सशक्तिकरण का रास्ता शुरू होता है। इस बिल के आने के बाद सोच में बदलाव आया है। मैं इस आरक्षण के पक्ष में हूं। मुझे लगता है कि यह होना चाहिए। इसके चलते कई महिलाओं को साहस आएगा। इसके चलते कई महिलाएं राजनीति में आएंगी।
आप सामाजिक व्यवस्था को देखिए तो महिलाएं अब ज्यादा जागरुक हैं। अब वे सजग हो गईं हैं। जो सामाजिक परिवेश बदला है, उसे नेता समझ जाएं तो ये उनके लिए अच्छा होगा। इसीलिए अब सरकारें महिलाओं पर केंद्रित योजनाएं ला रही हैं। यह एक मंशा भी है, महिलाओं को सम्मान देने की। साथ ही साथ बदली हुई परिस्थिति भी इसकी वजह है।
अवधेश कुमार
मेरा मानना है कि जो हम तय करते हैं कि उसे हमें करना ही चाहिए। इस विधेयक के लिए विशेष सत्र बुलाकर नए संसद भवन की शुरुआत करना एक बड़ा संदेश है न सिर्फ भारत के लिए बल्कि विश्व के लिए। जो आप (विपक्ष) ने आज तक नहीं किया, उसे अगर मौजूदा सरकार करा पाती है तो यह उसकी प्रतिबद्धता दर्शाता है।
हमारे यहां पुरुष देवों से ज्यादा स्त्री देवियों की संख्या है, लेकिन काल खंड में धीरे-धीरे महिलाएं पीछे होती गईं। मैं निजी तौर पर मानता हूं कि समाज के वंचित तबके को आगे लाने के लिए सरकार को विशेष व्यवस्थाएं करनी चाहिए, लेकिन यह एक निश्चित कालखंड के लिए होनी चाहिए। जो पार्टियां आलोचना कर रही हैं कि तत्काल इसे क्यों नहीं लागू किया क्या, वह अगले चुनाव से अपनी पार्टी से 33 फीसदी महिलाओं को टिकट देंगी। बीते कई वर्षों से परिसीमन से सरकारें बचती रही हैं। मेरा मानना है कि विरोध करने वाले इतिहास में अपना नाम अंकित कराने से चूक गए हैं।
मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि महिलाओं में पुरुषों से काम करने की क्षमता बहुत ज्यादा है। अगर महिलाएं किसी क्षेत्र में आएंगी तो उसमें आपको एक बड़ा बदलाव दिखेगा। हमारे यहां कहा गया है कि अरे हंस अगर तुम ही पानी और दूध में भेद करना छोड़ दोगे तो दूसरा कौन करेगा। या यूं कहें कि अगर बुद्धिमान व्यक्ति अपना काम करना छोड़ देगा तो दूसरा कौन करेगा।
जो लोग आरक्षण में ओबीसी महिलाओं के लिए कोटे की बात कर रहे हैं, वो सिर्फ राजनीति कर रहे हैं। क्या कांग्रेस जो बिल लेकर आई थी उसमें पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था थी? क्या समाजवादी राजनीति करने वाले दलों के गठबंधन संयुक्त मोर्चा सरकार के बिल में ऐसा कुछ था?
प्रेम कुमार
ओबीसी के लिए पहले से आरक्षण नहीं है तो ओबीसी महिलाओं के लिए अलग से कैसे आरक्षण हो सकता है? यह सवाल उठता है। मेरा मानना है कि इस तरह के किसी भी सवाल का जवाब ढूंढना सरकारों की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। बहुत सारी चर्चा हुई कि महिलाओं का आरक्षण होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। हम यह देख रहे हैं कि महिलाओं को आरक्षण दे कौन रहा है, ये पुरुषवादी समाज दे रहा है।
आखिर सरकार इस आरक्षण को टाल क्यों रही है? यह भी सवाल उठता है। पंचायतों में आरक्षण का असर यह पड़ा कि संख्या कम होने के बाद भी महिलाएं ज्यादा वोट दे रही हैं। इसी वजह से आज की राजनीति में उन्हें लुभाने के लिए आरक्षण दिया जा रहा है। इसके बाद भी पुरुषवादी सोच इतनी हावी है कि वो आरक्षण तो देना चाहते हैं, लेकिन उसे ज्यादा से ज्यादा टालना चाहते हैं।
किसी वर्ग के लिए लोक कल्याणकारी काम करना और उन्हें प्रतिनिधित्व देना दोनों अलग बाते हैं। बाबा साहब अंबेडकर ने वर्षों पहले ये आवाज उठाई थी। केवल लोक कल्याणकारी काम करके आप किसी वर्ग का उत्थान नहीं कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें प्रतिनिधित्व देना होगा। आरक्षण वही प्रतिनिधित्व देने का जरिया है।
समीर चौगांवकर
अगर पार्टियां खुद महिलाओं को 33 फीसदी टिकट देने कि इच्छाशक्ति रखतीं तो इस तरह के किसी विधेयक की जरूरत ही नहीं होती। इसके बाद भी इसे प्रधानमंत्री का मास्टर स्ट्रोक कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज गणेश चतुर्थी का दिन है, आज इसका श्रीगणेश करते हैं।
2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रचंड बहुमत आया था, तब भी उन्होंने कहा था भाजपा की इस जीत की सारथी महिलाएं हैं। बीते चार-पांच साल में महिला मतदाताओं की संख्या करीब पांच फीसदी बढ़ी है। भाजपा को लगातार लगता रहा है कि महिलाएं उसे ज्यादा वोट दे रही हैं। इसी को देखते हुए भाजपा ने यह कदम उठाया है।