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Marathon Meet: सीआईसी चयन के लिए पीएम मोदी के नेतृत्व में 88 मिनट चली बैठक, नामों पर राहुल गांधी की असहमति
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Wed, 10 Dec 2025 11:21 PM IST
सार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सीआईसी, सीवीसी और सूचना आयोग के 8 पदों पर नियुक्ति को लेकर 88 मिनट की बैठक हुई। राहुल गांधी ने सरकार के सुझाए कई नामों पर असहमति जताते हुए डिसेंट नोट सौंपा। सरकारी सूत्रों के अनुसार सभी नाम तय कर लिए गए हैं और घोषणा जल्द होगी।
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राहुल गांधी और पीएम मोदी
- फोटो : ANI
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विस्तार
देश में मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) और केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) की नियुक्ति को लेकर बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में अहम बैठक हुई। यह बैठक कई मायनों में महत्वपूर्ण रही क्योंकि इसमें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सरकार के सुझाए कई नामों पर कड़ा विरोध जताते हुए असहमति नोट सौंपा।
चयन समिति की यह मैराथन बैठक लगभग 88 मिनट चली, जिसमें सीआईसी और सीवीसी के अलावा केंद्रीय सूचना आयोग के आठ खाली पदों पर नियुक्तियों पर चर्चा हुई। राहुल गांधी, पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इस समिति का हिस्सा हैं। राहुल ने कई नामों को लेकर आपत्ति दर्ज की, जबकि सरकार ने सभी पदों के लिए अपने सुझाव पर आगे बढ़ने का संकेत दिया।
नियुक्तियों की घोषणा जल्द संभव
बैठक में लिए गए फैसलों की आधिकारिक जानकारी अभी सामने नहीं आई है। हालांकि सरकारी सूत्रों का कहना है कि सीआईसी, सीवीसी और आठ सूचना आयुक्तों के नाम तय कर लिए गए हैं और नियुक्तियों की घोषणा जल्द की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट को भी इस बैठक की जानकारी दे दी गई है क्योंकि मामले की निगरानी वही कर रहा था।
सितंबर से खाली है सीआईसी का पद
सीआईसी का पद 13 सितंबर से खाली है, जब मुख्य सूचना आयुक्त हीरालाल समारिया रिटायर हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले के दौरान केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया था कि जल्द चयन समिति की बैठक बुलाकर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जाएगी। बुधवार को पीएम के चैंबर में यह बैठक दोपहर एक बजे शुरू हुई और लगभग डेढ़ घंटे तक चली।
राहुल के सुझाव खारिज, विवाद बढ़ा
कांग्रेस सूत्रों ने आरोप लगाया कि राहुल को बैठक का विस्तृत एजेंडा पहले से नहीं दिया गया। उन्होंने सीआईसी पद के लिए कुछ नाम सुझाए थे, जिसे पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह ने खारिज कर दिया। चूंकि बैठक में सीवीसी और आठ सूचना आयुक्तों के नाम पर भी चर्चा चलती रही, इसलिए यह चर्चा लंबी चली। इससे पहले भी मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर अपनी असहमति दर्ज कराई थी।
सीआईसी और सीवीसी दोनों ही पद सरकारी पारदर्शिता और सतर्कता व्यवस्था के लिए बेहद अहम माने जाते हैं। ऐसे में इन पदों पर चयन को लेकर विपक्ष और सरकार के बीच टकराव नया नहीं है। इस बार राहुल गांधी का असहमति नोट एक बार फिर विपक्ष की नाखुशी को सामने लाता है और नियुक्तियों पर नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर देता है।
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चयन समिति की यह मैराथन बैठक लगभग 88 मिनट चली, जिसमें सीआईसी और सीवीसी के अलावा केंद्रीय सूचना आयोग के आठ खाली पदों पर नियुक्तियों पर चर्चा हुई। राहुल गांधी, पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह इस समिति का हिस्सा हैं। राहुल ने कई नामों को लेकर आपत्ति दर्ज की, जबकि सरकार ने सभी पदों के लिए अपने सुझाव पर आगे बढ़ने का संकेत दिया।
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नियुक्तियों की घोषणा जल्द संभव
बैठक में लिए गए फैसलों की आधिकारिक जानकारी अभी सामने नहीं आई है। हालांकि सरकारी सूत्रों का कहना है कि सीआईसी, सीवीसी और आठ सूचना आयुक्तों के नाम तय कर लिए गए हैं और नियुक्तियों की घोषणा जल्द की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट को भी इस बैठक की जानकारी दे दी गई है क्योंकि मामले की निगरानी वही कर रहा था।
सितंबर से खाली है सीआईसी का पद
सीआईसी का पद 13 सितंबर से खाली है, जब मुख्य सूचना आयुक्त हीरालाल समारिया रिटायर हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले के दौरान केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया था कि जल्द चयन समिति की बैठक बुलाकर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जाएगी। बुधवार को पीएम के चैंबर में यह बैठक दोपहर एक बजे शुरू हुई और लगभग डेढ़ घंटे तक चली।
राहुल के सुझाव खारिज, विवाद बढ़ा
कांग्रेस सूत्रों ने आरोप लगाया कि राहुल को बैठक का विस्तृत एजेंडा पहले से नहीं दिया गया। उन्होंने सीआईसी पद के लिए कुछ नाम सुझाए थे, जिसे पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह ने खारिज कर दिया। चूंकि बैठक में सीवीसी और आठ सूचना आयुक्तों के नाम पर भी चर्चा चलती रही, इसलिए यह चर्चा लंबी चली। इससे पहले भी मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर अपनी असहमति दर्ज कराई थी।
सीआईसी और सीवीसी दोनों ही पद सरकारी पारदर्शिता और सतर्कता व्यवस्था के लिए बेहद अहम माने जाते हैं। ऐसे में इन पदों पर चयन को लेकर विपक्ष और सरकार के बीच टकराव नया नहीं है। इस बार राहुल गांधी का असहमति नोट एक बार फिर विपक्ष की नाखुशी को सामने लाता है और नियुक्तियों पर नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर देता है।
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