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'सटीक तालमेल का कमाल': 22 मिनट में निर्णायक वार, सेना प्रमुख ने ऑपरेशन सिंदूर को बताया 'भरोसे का ऑर्केस्ट्रा'
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Sat, 22 Nov 2025 09:48 PM IST
सार
Op Sindoor: इस दौरान सेना प्रमुख ने कहा, ट्रेंच से नेटवर्क तक, राइफल से ड्रोन तक, बूट्स से बॉट्स तक - तकनीक ने युद्ध ही नहीं, कारोबार और जीवन भी बदल दिए हैं।' उन्होंने कहा कि जिस सेना में उनके कमीशन के समय कंप्यूटर भी नहीं थे, आज वह सेना डेटा साइंस और एआई पर आधारित युद्ध क्षमता विकसित कर रही है।
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जनरल उपेंद्र द्विवेदी, थल सेना प्रमुख
- फोटो : ANI
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विस्तार
ऑपरेशन सिंदूर को सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने एक भरोसेमंद ऑर्केस्ट्रा जैसा बताया। मतलब, जैसे एक संगीत दल में हर कलाकार अपनी भूमिका पूरी तालमेल के साथ निभाता है, वैसे ही इस कार्रवाई में सेना की हर इकाई ने एक साथ, मिलकर काम किया। इसी मजबूत तालमेल और तेज तैयारी की वजह से भारतीय सशस्त्र बल सिर्फ 22 मिनट में 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट करने में सफल रहे। जनरल द्विवेदी ने कहा कि यही एकजुट कोशिश इस ऑपरेशन की असली ताकत थी- सबने समय पर, साथ-साथ, सही कदम उठाए।
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कब हुआ ऑपरेशन?
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में घुसे आतंकियों ने 26 नागरिक और पर्यटकों की निर्मम हत्या की, इसके जवाब में भारत ने 7 मई की सुबह यह सैन्य कार्रवाई शुरू की। 88 घंटे यानी करीब चार दिनों तक दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण हालात रहे। 10 मई की शाम पाकिस्तान के घुटने टेकने और संघर्ष विराम की अपील के बाद यह ऑपरेशन रोका गया।
निर्णय लेने का समय ही नहीं था- आर्मी चीफ
जनरल द्विवेदी ने कहा, 'अगर हमने पहले से हर स्थिति की कल्पना न की होती, और अपनी टीम पर पूरी तरह भरोसा न होता, तो इतने कम समय में यह संभव नहीं था।' उन्होंने छात्रों से कहा कि बुद्धि, विनम्रता और शक्ति, इन तीनों के संतुलन से ही असली नेतृत्व खड़ा होता है।
'दुनिया बदल रही है, नेतृत्व भी बदलना होगा'
उन्होंने छात्रों को बताया कि आज दुनिया में 55 से ज्यादा संघर्ष चल रहे हैं और 100 से अधिक देश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इनमें शामिल हैं। यानी शांति और संघर्ष की सीमाएं धुंधली हो चुकी हैं। उन्होंने एडवर्ड लुट्वाक के 'जियोइकोनॉमिक्स' सिद्धांत का हवाला देकर कहा कि अब युद्ध की सोच, व्यापार की भाषा में भी दिखाई देती है। जनरल द्विवेदी ने वैश्विक रणनीति के छह 'सी' भी गिनाए, जिसमें सहयोग, सहभागिता, सह-अस्तित्व, प्रतिस्पर्धा, टकराव और संघर्ष शामिल हैं।
'हम 1.3 करोड़ सैनिक-पूर्व सैनिकों-परिजनों का समुदाय संभालते हैं'
उन्होंने बताया कि भारतीय सेना सिर्फ सैनिकों की नहीं, बल्कि उनके परिवारों सहित 1.3 करोड़ लोगों का विशाल समुदाय है - 'कॉरपोरेट दुनिया जहां सैकड़ों रिज्यूमे संभालती है, हम लाखों जिंदगियों की जिम्मेदारी उठाते हैं-जो एक पुकार पर गोलियों की बारिश में भी कूद पड़ते हैं।'
यह भी पढ़ें - Delhi Car Blast: 'देश के हर कोने को दहलाने की पाकिस्तान ने रची थी साजिश', दिल्ली धमाके पर फडणवीस का बड़ा दावा
संकट में अवसर- 1971 का उदाहरण
जनरल द्विवेदी ने कहा कि भारत ने हमेशा कठिन समय में अवसर खोजे हैं। जैसे 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में उथल-पुथल और शरणार्थियों का संकट था, तब भारत ने उस चुनौती को बदलकर बांग्लादेश के जन्म का मार्ग खोला। उन्होंने कहा, 'चाहे युद्धभूमि हो या बोर्डरूम, गति और सफलता नियंत्रण से नहीं, भरोसे से आती है। असली नेता वही है जो जिम्मेदारी ले, टीम को स्वतंत्रता दे, और हर नतीजे, अच्छे या बुरे, की जवाबदेही खुद ले।'
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कब हुआ ऑपरेशन?
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में घुसे आतंकियों ने 26 नागरिक और पर्यटकों की निर्मम हत्या की, इसके जवाब में भारत ने 7 मई की सुबह यह सैन्य कार्रवाई शुरू की। 88 घंटे यानी करीब चार दिनों तक दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण हालात रहे। 10 मई की शाम पाकिस्तान के घुटने टेकने और संघर्ष विराम की अपील के बाद यह ऑपरेशन रोका गया।
निर्णय लेने का समय ही नहीं था- आर्मी चीफ
जनरल द्विवेदी ने कहा, 'अगर हमने पहले से हर स्थिति की कल्पना न की होती, और अपनी टीम पर पूरी तरह भरोसा न होता, तो इतने कम समय में यह संभव नहीं था।' उन्होंने छात्रों से कहा कि बुद्धि, विनम्रता और शक्ति, इन तीनों के संतुलन से ही असली नेतृत्व खड़ा होता है।
'दुनिया बदल रही है, नेतृत्व भी बदलना होगा'
उन्होंने छात्रों को बताया कि आज दुनिया में 55 से ज्यादा संघर्ष चल रहे हैं और 100 से अधिक देश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इनमें शामिल हैं। यानी शांति और संघर्ष की सीमाएं धुंधली हो चुकी हैं। उन्होंने एडवर्ड लुट्वाक के 'जियोइकोनॉमिक्स' सिद्धांत का हवाला देकर कहा कि अब युद्ध की सोच, व्यापार की भाषा में भी दिखाई देती है। जनरल द्विवेदी ने वैश्विक रणनीति के छह 'सी' भी गिनाए, जिसमें सहयोग, सहभागिता, सह-अस्तित्व, प्रतिस्पर्धा, टकराव और संघर्ष शामिल हैं।
'हम 1.3 करोड़ सैनिक-पूर्व सैनिकों-परिजनों का समुदाय संभालते हैं'
उन्होंने बताया कि भारतीय सेना सिर्फ सैनिकों की नहीं, बल्कि उनके परिवारों सहित 1.3 करोड़ लोगों का विशाल समुदाय है - 'कॉरपोरेट दुनिया जहां सैकड़ों रिज्यूमे संभालती है, हम लाखों जिंदगियों की जिम्मेदारी उठाते हैं-जो एक पुकार पर गोलियों की बारिश में भी कूद पड़ते हैं।'
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संकट में अवसर- 1971 का उदाहरण
जनरल द्विवेदी ने कहा कि भारत ने हमेशा कठिन समय में अवसर खोजे हैं। जैसे 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में उथल-पुथल और शरणार्थियों का संकट था, तब भारत ने उस चुनौती को बदलकर बांग्लादेश के जन्म का मार्ग खोला। उन्होंने कहा, 'चाहे युद्धभूमि हो या बोर्डरूम, गति और सफलता नियंत्रण से नहीं, भरोसे से आती है। असली नेता वही है जो जिम्मेदारी ले, टीम को स्वतंत्रता दे, और हर नतीजे, अच्छे या बुरे, की जवाबदेही खुद ले।'