PFI Terror Module: इस खतरे से कैसे निकलेगा हिंदुस्तान, दिल्ली दंगों में भी सामने आया था नाम
PFI Terror Module: दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, इन संगठनों की गतिविधियों को रोकने के लिए इन पर प्रतिबंध लगाना शुरुआती कदम साबित होता है। इनके बैंक खातों को प्रतिबंधित करने से आतंकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए धन न मिलने से इनकी गतिविधियां कुंद पड़ती हैं...
विस्तार
दिल्ली के जहांगीरपुरी में हुई हिंसा के मामले में अदालत ने यह स्वीकार कर लिया है कि हनुमान शोभायात्रा निकालने के दौरान हुई पत्थरबाजी और तोड़फोड़ की घटनाएं सुनियोजित साजिश का हिस्सा थीं। इस हिंसा के पीछे पीएफआई का हाथ बताया गया है। इसके पहले दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए दंगों में भी पीएफआई की साजिश सामने आई थी। अब तेलंगाना पुलिस ने भी अदालत में पेश की गई एक रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि पीएफआई देश में एक बड़ी साजिश रच रहा है। इसके लिए वर्ग विशेष के युवाओं को गुमराह कर उन्हें पत्थरबाजी करने और हमले करने की ट्रेनिंग दी जा रही है। असम में भी संगठन के द्वारा मदरसों में युवाओं को हमला करने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
राजस्थान के कन्हैयालाल कांड में भी पीएफआई और पाकिस्तान के कुछ संगठनों का नाम सामने आया था। अमरावती में हुई उमेश कोल्हे की हत्या और बिहार-झारखंड में भी पीएफआई की आतंकी साजिश की बात सामने आ चुकी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में पीएफआई की फैल रही आतंकी गतिविधि सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरती दिख रही है। इससे निबटने के लिए केंद्र-राज्यों के पास क्या विकल्प हो सकता है?
प्रतिबंध लगाना अंतिम विकल्प नहीं
दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, इन संगठनों की गतिविधियों को रोकने के लिए इन पर प्रतिबंध लगाना शुरुआती कदम साबित होता है। इनके बैंक खातों को प्रतिबंधित करने से आतंकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए धन न मिलने से इनकी गतिविधियां कुंद पड़ती हैं। लेकिन ये उपाय शुरूआती उपाय ही साबित होते हैं।
कुछ समय पहले सिमी (SIMI) भारत में एक बड़ा खतरा बनकर उभरा था। सरकार ने इसकी आतंकी गतिविधियों को देखते हुए इन पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय कर लिया। लेकिन देखा गया कि प्रतिबंध लगाने के कुछ ही समय बाद यह संगठन अलग नाम से अपनी गतिविधियां चलाने लगा, जिससे प्रतिबंध का असली मकसद नाकाम साबित हुआ।
अधिकारी के मुताबिक, पीएफआई जैसे संगठन अपनी आतंकी गतिविधियों को छिपाने के लिए कई अलग-अलग तरह के संगठन चलाते हैं। सामाजिक कार्यों के नाम पर लोगों से धन इकट्ठा करते हैं। इससे भ्रमित होकर लोग इनका सहयोग करते हैं और वे इसी पैसे का इस्तेमाल युवाओं को भ्रमित करने और आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए करते हैं। इस तरह के संगठनों के आर्थिक लेनदेन पर गहरी निगाह रखकर भी किसी आपराधिक संगठन के पनपने और उसके प्रसार पर रोक लगाई जा सकती है।
ये संगठन सोशल मीडिया से अपने लिए नए युवाओं की तलाश करते हैं। जिन युवाओं की किसी सामाजिक समस्या को लेकर सरकार या किसी अन्य वर्ग से गहरी नाराजगी होती है, तो वे इस तरह के विचार सोशल मीडिया पर व्यक्त करते हैं, आतंकी संगठनों के लोग उनसे वैचारिक आधार बनाकर संपर्क साधते हैं और उन्हें अपने साथ जोड़ लेते हैं। इसे देखते हुए सरकार का सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गहरी निगरानी जरूरी है।
सामाजिक अस्वीकृति जरूरी
अधिकारी के मुताबिक कोई भी आतंकी गतिविधि समाज में तब लंबे समय तक चलने में सक्षम हो जाती है, जब उसे उसी जगह पर रह रहे किसी समुदाय का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन मिलने लगता है। श्रीलंका, इराक, सीरिया, पाकिस्तान-अफगानिस्तान, फिलिस्तीन और अन्य देशों के अनुभव बताते हैं कि जब उसी देश या भू-भाग पर रह रहे किसी समुदाय या छोटे से समूह का समर्थन किसी आतंकी संगठन को मिलने लगता है, तो वह लंबे समय तक चलने में समर्थ हो जाता है। वह इनके बीच रहकर खुद को छिपाने और अपनी आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के लिए इनसे ही खाद-पानी प्राप्त करने लगता है।
इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि देश का कोई समुदाय स्वयं को मुख्यधारा से अलग महसूस न करे और सरकार और समाज के स्तर पर सबका साथ बना रहे। इससे इस तरह के संगठनों को पनपने के लिए जमीन नहीं मिलती और इनका अंत हो सकता है।