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Prophet Remarks Row: धर्मनिरपेक्षता की आड़ में खुद की गलती छुपाते रहे राजनीतिक दल, स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया यह फॉर्मूला

Rahul Sampal राहुल संपाल
Updated Wed, 08 Jun 2022 05:57 PM IST
सार

अमर उजाला से चर्चा में भूतपूर्व राजदूत जे.के. त्रिपाठी कहते है कि अगर किसी देश के नागरिक दूसरे मुल्क में रहते उस दौरान उन पर कोई हमला या अत्याचार होता है तो ऐसे में वह देश दूसरे देश के दूतावास को इसकी जानकारी देता है। और इस पर सख्ती से कार्रवाई करने के लिए आवाज उठाता है...

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Prophet Remarks Row: Experts say when any question arises on India regarding religious matters, the government try to avoid it by citing secularism
नवीन जिंदल और नुपुर शर्मा - फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
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भाजपा नेताओं के विवादित बयान के बाद भाजपा ने भले ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया हो, लेकिन अब भी सोशल मीडिया में लगातार इसका विरोध दिखाई दे रहा है। केंद्र सरकार ने भी धर्मनिरपेक्षता का हवाला देकर अरब देशों की नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया है। बावजूद इसके अभी भी कई मुस्लिम देश इस मुद्दे पर सवाल उठाते हुए नजर आ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि धार्मिक मामलों को लेकर जब भारत पर कोई सवाल उठता है, तो सरकारें धर्मनिरपेक्षता का हवाला देकर इससे बचने का प्रयास करती हैं। लेकिन आंतरिक मसले पर इसे पूरी तरह से भूल जाती हैं। थोड़े दिन इस पर बहस होती उसके बाद मामला रफा दफा हो जाता।

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अमर उजाला से चर्चा में भूतपूर्व राजदूत जे.के. त्रिपाठी कहते है कि अगर किसी देश के नागरिक दूसरे मुल्क में रहते उस दौरान उन पर कोई हमला या अत्याचार होता है तो ऐसे में वह देश दूसरे देश के दूतावास को इसकी जानकारी देता है। और इस पर सख्ती से कार्रवाई करने के लिए आवाज उठाता है। साथ ही प्रदर्शन से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक आवाज उठाने का प्रयास करता है। लेकिन अगर किसी देश में धार्मिक आधार पर कोई घटना हुई है तो वह उस देश का आंतरिक मसला होता है। इसमें किसी अन्य देश या उसके नागरिक शामिल नहीं होते है।

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सौहार्द बिगाड़ने वाले पर हो कार्रवाई

भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा दिए गए विवादित बयान के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ कई देशों ने आवाज उठाई। इसके बाद पार्टी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें निष्कासित कर दिया। पार्टी के इस कदम का कई राष्ट्रों ने स्वागत भी किया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर हो या फिर राष्ट्रीय स्तर इस तरह की बातें लोग कुछ दिनों तक याद रखते हैं फिर भूल जाते हैं। लेकिन भारत सरकार को अपने स्तर पर इस पर कोई कार्रवाई जरूर करनी चाहिए। और इस तरह की कार्रवाई उन सभी लोगों पर होनी चाहिए तो जिन्होंने किसी अन्य धर्म के खिलाफ भी बयान दिए हो। इससे पूरे देश में यह संदेश जाएगा की सरकार की नजर में सभी लोग बराबर हैं। अगर भारत धर्मनिरपेक्ष है तो उसका कानून भी धर्मनिरपेक्ष है। अगर हिंदू ने बयान दिया है तो उस पर कार्रवाई हो। मुसलमान ने कोई बयान दिया है उस पर कोई कार्रवाई न हो यह तो संभव नहीं है। जो भी सौहार्द बिगाड़ने का काम करेंगे उन पर सख्ती से कार्रवाई होनी चाहिए।


दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हिमांशु राय अमर उजाला से चर्चा में कहते हैं कि आज असलियत यही है कि धार्मिक मामलों को लेकर जब भारत पर कोई सवाल उठता है, तो सरकारें धर्मनिरपेक्षता का हवाला देकर बचने का प्रयास करती हैं। लेकिन आंतरिक मसले पर इसे पूरी तरह से भूल जाती है। भाजपा प्रवक्ताओं के विवादित बयान के मुद्दे ने जब विदेश में तूल पकड़ा तो पार्टी ने तुरंत उन्हें निष्कासित करने की कार्रवाई की। लेकिन अगर यहीं मुद्दा भारत के अंदर उठता तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती। थोड़े दिन इस पर बहस होती उसके बाद मामला रफा-दफा हो जाता। यह तो सीधे तौर पर यही हो गया कि घर की मुर्गी दाल बराबर।

राय कहते हैं कि प्रवक्ताओं को हटाने के पीछे कई तरह के कारण निकलकर सामने आते हैं। पहला तो यह कि भारत के आज खाड़ी देशों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध हैं। दूसरा सबसे अहम कारण यह है कि विदेश के साथ-साथ भारत का संगठित मुसलमान समाज केंद्र सरकार के खिलाफ न उभर कर आए जिससे सरकार की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई बदनामी हो, इससे बचने के लिए पार्टी ने यह कदम उठाया है। जिससे सरकार की छवि साफ सुथरी बनी रहे। भाजपा ने जो भी कार्रवाई की है वह साफ तौर पर बाहरी देशों के दबाव में आकर की है। अगर यहीं मुद्दा भारत के भीतर उठता तो कोई कार्रवाई नहीं होती।  

इसलिए खड़ा हुआ था विवाद

दरअसल, एक टीवी डिबेट के दौरान भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा और एक ट्वीट के जरिए प्रवक्ता नवीन जिंदल ने पैगंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसके बाद से ही घरेलू स्तर पर इसका विरोध शुरू हो गया था। मामले ने जब तूल पकड़ा तो अरब देशों ने भी इस पर नाराजगी जाहिर करनी शुरू कर दी। इन देशों में सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान (तालिबान) के बाद दूसरे मुस्लिम देश इंडोनेशिया और मालदीव ने शामिल हैं। इसके अलावा इस्लामी सहयोग संगठन ने भी इस पर आपत्ति दर्ज करा दी।

कई देशों ने इस मसले पर भारतीय राजदूतों को भी तलब किया। दुनिया के प्रमुख मुस्लिम देशों के कड़े विरोध के बाद भाजपा बैकफुट पर आ गई। उसने न केवल विवाद को शांत करने के लिए दोनों प्रवक्ताओं पर निष्कासन की कार्रवाई की बल्कि सरकार में अहम मंत्री पीयूष गोयल की तरफ से भी सफाई पेश की गई। इस बीच आगे ऐसा कोई विवाद नहीं हो, इसलिए भाजपा ने प्रवक्ताओं के लिए गाइडलाइन तय कर दी है। जाहिर है पार्टी जल्द से जल्द इस विवाद को खत्म करना चाहती है।

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