सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   India News ›   Prophet Remarks Row: is the economic reasons behind the displeasure of Muslim countries

Prophet Remarks Row: पीएम मोदी की मेहनत पर पार्टी नेताओं ने फेरा पानी, कहीं मुस्लिम देशों के गुस्से के पीछे तेल तो वजह नहीं?

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Fri, 10 Jun 2022 07:30 PM IST
सार

आर्थिक मामलों के जानकार पार्टी के एक राष्ट्रीय नेता ने अमर उजाला से कहा कि अरब और खाड़ी देशों का भारत के पास कोई विकल्प नहीं है। तेल-गैस खरीद के मामले में ही नहीं, भारत से लगभग 90 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में भी वे हमारे लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं...

विज्ञापन
Prophet Remarks Row: is the economic reasons behind the displeasure of Muslim countries
पीएम मोदी और यूएई प्रिंस - फोटो : Agency (File Photo)
विज्ञापन

विस्तार
Follow Us

प्रधानमंत्री मोदी ने जब से सत्ता संभाली है, वे ‘सबके साथ, सबके विश्वास’ की बात करते रहे हैं। लाल किला की प्राचीर से भी वे ‘सबका विश्वास’ जीतने की बात करते आए हैं। केंद्र सरकार की योजनाओं का हर धर्म, हर संप्रदाय के लोगों को बिना किसी भेदभाव के मिलने वाले लाभ से उनके इस नारे को विश्वसनीयता भी मिली। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम और 2017 और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव परिणाम बताते हैं कि आश्चर्यजनक ढंग से भाजपा ने देश के मुसलमान वर्ग में भी अपनी पैठ बनाने में सफलता पाई। इसे प्रधानमंत्री मोदी की कोशिशों का परिणाम बताया जाता है।  

Trending Videos

मुसलमानों के बीच मोदी की विश्वसनीयता देश की सीमाओं तक सीमित नहीं रही। उन्होंने अपने शासनकाल के प्रारंभ से ही अरब और खाड़ी के देशों से बेहतर संबंध बनाने की नीति अपनाई और लगातार इन देशों की यात्रा की। देश को उनकी इस कोशिशों का लाभ भी मिला और इन देशों से हमारा व्यापार लगातार बढ़ता चला गया। संयुक्त अरब अमीरात सहित सात मुस्लिम देशों ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने सबसे उच्च सम्मान से सम्मानित कर उनके प्रयासों की सफलता पर अपनी मुहर भी लगाई।
विज्ञापन
विज्ञापन


लेकिन 2014 से ही जब से प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता संभाली, कुछ लोगों को लगने लगा कि यह हिंदुत्ववादियों की जीत है, और इसके बाद उन्हें ‘कुछ भी’ करने की छूट मिल गई है। इस वर्ग की इसी सोच का परिणाम हुआ कि देश में अलग-अलग स्थानों पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं देखने को मिलीं। सोशल मीडिया से लेकर अलग-अलग मंचों से नफरती भाषणों की बाढ़ आ गई। मुस्लिमों को बात-बात पर पाकिस्तान भेजने की बात होने लगी। यहां तक कि भाजपा के साक्षी महाराज जैसे कुछ सांसदों तक ने आपत्तिजनक टिप्पणियां की, लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी मुस्लिम देश भारत की स्थानीय राजनीति पर टिप्पणी करने से बचते रहे।

अब क्यों उबले मुस्लिम देश

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नुपुर शर्मा वाले प्रकरण पर मुस्लिम देशों की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण यह था कि इस बार हमला सीधे उनके धर्म पर किया गया। पैगंबर पर ही इस्लाम धर्म की बुनियाद टिकी हुई है। यदि इस बुनियाद पर हमला किया जाता है तो इससे उस धर्म को बड़ी चोट पहुंचती है। इस्लामिक देश पश्चिमी देशों से यह हमला लंबे समय से झेलते आए हैं।


इस्लाम धर्म की डोर केवल एक धर्म होने तक सीमित नहीं है। यह 52 से अधिक मुस्लिम देशों की आर्थिक नीति को एक सूत्र में पिरोने वाला विचार भी है। इसके बिखरने से मुस्लिम देशों के आपसी सहयोग-सामंजस्य की एक बड़ी सोच भी खतरे में पड़ सकती है। इस समय जबकि वैश्विक स्तर पर तेल की खपत में कमी लाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे तेल उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्था संकट में फंस सकती है, इस्लामिक देश अपनी एकजुटता को ज्यादा मजबूत कर इस स्थिति से निपटने की रणनीति बना रहे हैं। ऐसे समय में वे इस्लाम की बुनियाद पर चोट को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं हैं।

सऊदी अरब को बड़ा झटका देने की रणनीति में जुटा भारत

भारत में हुए इस विवाद पर मुस्लिम देशों के विफर पड़ने के पीछे कई विशेषज्ञ बड़ा आर्थिक कारण भी खोज रहे हैं। दरअसल, हाल ही में जब तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में आसमान छूने लगीं थीं, तब तेल उत्पादक देशों (ओपेक) ने उत्पादन घटाकर ज्यादा लाभ कमाने का रास्ता अपनाया था। अमेरिका और भारत सहित कई देशों के अनुरोध के बाद भी ओपेक देशों ने तेल उत्पादन बढ़ाकर तेल की कीमतें कम करने की रणनीति अपनाने से इनकार कर दिया।

इसके बाद ही भारत ने सऊदी अरब जैसे देशों पर अपनी तेल निर्भरता कम करने का निर्णय ले लिया था। भारत अपनी कुल तेल खपत का लगभग 80 फीसदी आयात करता है। इसमें केवल सऊदी अरब से हर महीने 14.8 मिलियन बैरल तेल आयात किया जाता है। भारत ने एक रणनीति के तहत यह आयात मई महीने में ही घटाकर 10.8 मिलियन बैरल करने की नीति अपनाई है।

स्पष्ट है कि भारत की इस नीति से इस्लामी देशों के सरताज सऊदी अरब को बड़ा झटका लगा है। यदि भारत की तरह अन्य ज्यादा तेल खपत करने वाले देश भी इस तरह की रणनीति अपनाते हैं, तो इससे सऊदी अरब की बादशाहत को बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। माना जा रहा है कि सऊदी अरब जैसे देशों की भारत से नाराजगी जताने के पीछे यह भी एक बड़ी वजह हो सकती है।

अमेरिका को भी भारत ने फटकारा

भारत-अमेरिकी संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। ओबामा-ट्रंप और अब जो बाइड़न की सरकार में भारत और अमेरिका लगातार करीब आ रहे हैं। लेकिन माना जाता है कि कुछ अमेरिकी संस्थान एक सोची-समझी रणनीति के तहत बीच-बीच में भारत विरोधी बातों को हवा देने लगते हैं। इसी क्रम में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी रिपोर्ट के बाद भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी।

रूस-यूक्रेन विवाद के बीच भी भारत के द्वारा रूस पर तथाकथित दबाव न डालने के पश्चिमी आरोपों पर भी भारत ने कड़ा रुख अपनाया था। यूक्रेन जैसी स्थिति भारत और चीन के बीच पैदा होने की बात पर पश्चिम से अपेक्षित सहयोग न मिलने की बात पर कड़ा रुख अपनाते हुए भारत ने कहा था कि अपनी आंतरिक राजनीति को साधने के लिए पश्चिमी देशों को किसी दूसरे देश को निशाना नहीं बनाना चाहिए।

भारत का इशारा बाइडन की घरेलू राजनीति की ओर था, जहां वे स्वयं को ज्यादा उदार साबित कर एक वर्ग विशेष का समर्थन पाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। अमेरिका और सऊदी अरब के संबंध भी लगातार प्रगाढ़ बने हुए हैं। माना जा रहा है कि सऊदी अरब के भड़कने के पीछे अमेरिकी दबाव की रणनीति भी काम कर रही है, क्योंकि अमेरिकी और सऊदी अरब के संबंध बेहद मजबूत माने जाते हैं।

पार्टी मंच से बात न होती तो मामला न बिगड़ता

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस बार मामला इसलिए ज्यादा बिगड़ गया क्योंकि यह एक पार्टी प्रवक्ता के द्वारा किया गया। पार्टी प्रवक्ता के कहे गए वाक्य पार्टी का आधिकारिक वक्तव्य माने जाते हैं। यदि यही बात किसी अन्य व्यक्ति ने कही होती तो शायद कोई इसका संज्ञान भी नहीं लेता। लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ता की बात होने से यह पार्टी की सोच, और उसके माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की बात बन जाती है। यही कारण है कि सरकार के द्वारा इसे सरकार का आधिकारिक वक्तव्य न होने की बात कहे जाने के बाद भी इस पर देश-विदेश में हंगामा मच गया।

अरब देशों का विकल्प नहीं  

आर्थिक मामलों के जानकार पार्टी के एक राष्ट्रीय नेता ने अमर उजाला से कहा कि अरब और खाड़ी देशों का भारत के पास कोई विकल्प नहीं है। तेल-गैस खरीद के मामले में ही नहीं, भारत से लगभग 90 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में भी वे हमारे लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। पहले से ही रोजगार के मोर्चे पर संकट झेल रहा भारत यह खतरा उठाने की स्थिति में नहीं है कि उसके नागरिकों को खाड़ी के देशों से निकाला जाए और उसे उनके लिए अतिरिक्त रोजगार का सृजन करना पड़े। लिहाजा केंद्र सरकार लंबे हितों को ध्यान में रखते हुए अरब देशों से अपने संबंध सामान्य बनाने में जुटी हुई है।

विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News apps, iOS Hindi News apps और Amarujala Hindi News apps अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed