{"_id":"6928324f48243838000cdd98","slug":"sc-asks-centre-to-mull-stringent-law-to-deal-with-derogatory-remarks-against-disabled-2025-11-27","type":"story","status":"publish","title_hn":"Supreme Court: 'दिव्यांगों की गरिमा की रक्षा के लिए सख्त कानून बनाने पर विचार करें', कोर्ट की केंद्र को सलाह","category":{"title":"India News","title_hn":"देश","slug":"india-news"}}
Supreme Court: 'दिव्यांगों की गरिमा की रक्षा के लिए सख्त कानून बनाने पर विचार करें', कोर्ट की केंद्र को सलाह
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: निर्मल कांत
Updated Thu, 27 Nov 2025 04:43 PM IST
सार
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह दिव्यांग लोगों की गरिमा की रक्षा के लिए एक ऐसा कानून बनाने पर विचार करे, जिसमें उनका उपहास करने को एससी-एसटी कानून के प्रावधान की तरह अपराध बनाया जाए।
विज्ञापन
सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : एएनआई
विज्ञापन
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिव्यांग लोगों की गरिमा की रक्षा के लिए सख्त कानून की जरूरत पर जोर दिया। शीर्ष कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह ऐसा कानून बनाने पर विचार करे, जिसमें दिव्यांगों या दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी के पीड़ितों का मजाक उड़ाने या अपमान करने करने को ठीक उसी तरह अपराध बनाया जाए, जैसे अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अधिनियम में प्रावधान है।
बेंच ने पूछा- एससी-एसटी जैसा कानून क्यों नहीं बना सकते?
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जातिसूचक टिप्पणी, भेदभाव, अपमान और हिंसा को अपराध मानता है और ऐसे अपराधों को गैर-जमानती बनाता है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की बेंच ने कहा, आप अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम जैसा कड़ा कानून क्यों नहीं बना सकते, जिसमें अपमान करने पर सजा है?
ये भी पढ़ें: दोस्ती में दरार: 'हम भगवान राम के अनुयायी, लंका तो हम जलाएंगे!' एकनाथ शिंदे पर सीएम फडणवीस का तीखा हमला
'ऑनलाइन अवैध सामग्री पर नियंत्रण के लिए स्वायत्त संस्था की जरूरत'
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र की ओर से पेश हुए। उन्होंने कहा कि किसी की गरिमा की कीमत पर हास्य नहीं हो सकता। उन्होंने कोर्ट की इस टिप्पणी की सराहना की। बेंच ने यह भी कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अश्लील, आपत्तिजनक या अवैध सामग्री को नियंत्रित करने के लिए एक तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था की जरूरत है।
'सार्वजनिक चर्चा के लिए दिशानिर्देश जारी करे मंत्रालय'
दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी और उपहास पर दिशानिर्देश बनाने के मुद्दे पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बताया कि कुछ दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे हैं। बेंच ने मंत्रालय से कहा कि इन दिशानिर्देशों को सार्वजनिक चर्चा के लिए जारी किया जाए। कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए चार हफ्ते बाद सूचीबद्ध कर दिया।
ये भी पढ़ें: 'अगर हाईकमान बुलाएगा तो दिल्ली जाएंगे', कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं के बीच सीएम का बयान
शीर्ष कोर्ट एसएमए क्योर फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह संस्था स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नाम की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए काम करती है। याचिका में 'इंडियाज गॉट लैटेंट' के होस्ट समय रैना और विपुन गोयल, बलराज परविंदर सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर जैसे अन्य सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स की ओर से किए गए मजाक पर आपत्ति जताई गई थी।
रैना और अन्य कॉमेडियन को दिए निर्देश
बेंच ने उन्हें भविष्य में सावधान रहने को कहा और निर्देश दिया कि रैना और अन्य कॉमेडियन महीने में दो कार्यक्रम ऐसे आयोजित करें जिनमें विकलांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियां बताएं, ताकि उनके उपचार के लिए फंड जुटाया जा सके, खासकर एसएमए से पीड़ित लोगों के लिए। कोर्ट ने कहा कि यह एक सामाजिक दंड है और उनकी अन्य सजाओं से उन्हें राहत दी जा रही है।
Trending Videos
बेंच ने पूछा- एससी-एसटी जैसा कानून क्यों नहीं बना सकते?
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जातिसूचक टिप्पणी, भेदभाव, अपमान और हिंसा को अपराध मानता है और ऐसे अपराधों को गैर-जमानती बनाता है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की बेंच ने कहा, आप अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम जैसा कड़ा कानून क्यों नहीं बना सकते, जिसमें अपमान करने पर सजा है?
विज्ञापन
विज्ञापन
ये भी पढ़ें: दोस्ती में दरार: 'हम भगवान राम के अनुयायी, लंका तो हम जलाएंगे!' एकनाथ शिंदे पर सीएम फडणवीस का तीखा हमला
'ऑनलाइन अवैध सामग्री पर नियंत्रण के लिए स्वायत्त संस्था की जरूरत'
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र की ओर से पेश हुए। उन्होंने कहा कि किसी की गरिमा की कीमत पर हास्य नहीं हो सकता। उन्होंने कोर्ट की इस टिप्पणी की सराहना की। बेंच ने यह भी कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अश्लील, आपत्तिजनक या अवैध सामग्री को नियंत्रित करने के लिए एक तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था की जरूरत है।
'सार्वजनिक चर्चा के लिए दिशानिर्देश जारी करे मंत्रालय'
दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी और उपहास पर दिशानिर्देश बनाने के मुद्दे पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने बताया कि कुछ दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे हैं। बेंच ने मंत्रालय से कहा कि इन दिशानिर्देशों को सार्वजनिक चर्चा के लिए जारी किया जाए। कोर्ट ने इस मामले को सुनवाई के लिए चार हफ्ते बाद सूचीबद्ध कर दिया।
ये भी पढ़ें: 'अगर हाईकमान बुलाएगा तो दिल्ली जाएंगे', कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं के बीच सीएम का बयान
शीर्ष कोर्ट एसएमए क्योर फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह संस्था स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नाम की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए काम करती है। याचिका में 'इंडियाज गॉट लैटेंट' के होस्ट समय रैना और विपुन गोयल, बलराज परविंदर सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर जैसे अन्य सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स की ओर से किए गए मजाक पर आपत्ति जताई गई थी।
रैना और अन्य कॉमेडियन को दिए निर्देश
बेंच ने उन्हें भविष्य में सावधान रहने को कहा और निर्देश दिया कि रैना और अन्य कॉमेडियन महीने में दो कार्यक्रम ऐसे आयोजित करें जिनमें विकलांग व्यक्तियों की सफलता की कहानियां बताएं, ताकि उनके उपचार के लिए फंड जुटाया जा सके, खासकर एसएमए से पीड़ित लोगों के लिए। कोर्ट ने कहा कि यह एक सामाजिक दंड है और उनकी अन्य सजाओं से उन्हें राहत दी जा रही है।
विज्ञापन
रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News apps, iOS Hindi News apps और Amarujala Hindi News apps अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.
विज्ञापन
विज्ञापन