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Supreme Court: देश में हर आठ मिनट में लापता हो रहा एक बच्चा; सुप्रीम कोर्ट चिंतित, कहा- ये एक गंभीर मुद्दा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Tue, 18 Nov 2025 12:21 PM IST
सार
Cases Of Missing Children: देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक समाचार रिपोर्ट पर चिंता जताई है। दरअसल, रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए इसे एक गंभीर मुद्दा कहा है। पढ़ें, मामले में सुप्रीम कोर्ट ने और क्या-क्या टिप्पणी की है...
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सुप्रीम कोर्ट (फाइल तस्वीर)
- फोटो : ANI
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विस्तार
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक समाचार रिपोर्ट पर चिंता व्यक्त की, जिसमें दावा किया गया था कि देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। न्यायालय ने इसे एक गंभीर मुद्दा बताया। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने मामले में कहा कि देश में गोद लेने की प्रक्रिया जटिल है और केंद्र से इस प्रणाली को सरल बनाने को कहा गया।
देश में गोद लेने की प्रक्रिया कठोर- सुप्रीम कोर्ट
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने मौखिक रूप से कहा, 'मैंने अखबार में पढ़ा है कि देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। मुझे नहीं पता कि यह सच है या नहीं। लेकिन यह एक गंभीर मुद्दा है।' शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि गोद लेने की प्रक्रिया कठोर होने के कारण, इसका उल्लंघन होना स्वाभाविक है और लोग बच्चे पैदा करने के लिए अवैध तरीके अपनाते हैं।
यह भी पढ़ें - Supreme Court: एसआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची केरल सरकार, निकाय चुनाव तक रोकने की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया 9 दिसंबर तक का वक्त
सुनवाई के दौरान, केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने लापता बच्चों के मामलों को देखने के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने हेतु छह सप्ताह का समय मांगा। हालांकि, शीर्ष अदालत ने छह सप्ताह का समय देने से इनकार कर दिया और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से 9 दिसंबर तक प्रक्रिया पूरी करने को कहा।
पहले भी केंद्र सरकार को दिया गया था निर्देश
14 अक्तूबर को, पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लापता बच्चों के मामलों को देखने के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से संचालित मिशन वात्सल्य पोर्टल पर प्रकाशन के लिए उनके नाम और संपर्क विवरण उपलब्ध कराने का निर्देश दे। पीठ ने निर्देश दिया था कि जब भी पोर्टल पर किसी लापता बच्चे के बारे में कोई शिकायत प्राप्त हो, तो जानकारी संबंधित नोडल अधिकारियों के साथ तुरंत साझा की जानी चाहिए।
एक विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाने का भी था निर्देश
शीर्ष अदालत ने पहले केंद्र से लापता बच्चों का पता लगाने और ऐसे मामलों की जांच के लिए गृह मंत्रालय के तत्वावधान में एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल बनाने को कहा था। पीठ ने देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लापता बच्चों का पता लगाने के काम में लगे पुलिस अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी को रेखांकित किया था। अदालत ने कहा था कि पोर्टल पर प्रत्येक राज्य से एक समर्पित अधिकारी हो सकता है जो सूचना प्रसारित करने के अलावा गुमशुदगी की शिकायतों का प्रभारी भी हो सकता है।
यह भी पढ़ें - Mumbai Crisis: मुंबई में CNG का संकट, गैस स्टेशनों पर लंबी कतार; मनमाना किराया वसूल रहे ऑटो, कैब की किल्लत
बच्चों की तस्करी मामले में कोर्ट पहुंचा था एनजीओ
बता दें कि, एनजीओ गुरिया स्वयं सेवी संस्थान ने शीर्ष अदालत का रुख किया था और अपहरण या लापता बच्चों के अनसुलझे मामलों के अलावा भारत सरकार की तरफ से निगरानी किए जाने वाले खोया/पाया पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर की जाने वाली कार्रवाई पर प्रकाश डाला था। याचिका में पिछले साल उत्तर प्रदेश में दर्ज पांच मामलों के साथ अपनी दलील को स्पष्ट किया गया था, जिनमें नाबालिग लड़कों और लड़कियों का अपहरण किया गया था और बिचौलियों के एक नेटवर्क के माध्यम से झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में उनकी तस्करी की गई थी।
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देश में गोद लेने की प्रक्रिया कठोर- सुप्रीम कोर्ट
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नागरत्ना ने मौखिक रूप से कहा, 'मैंने अखबार में पढ़ा है कि देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। मुझे नहीं पता कि यह सच है या नहीं। लेकिन यह एक गंभीर मुद्दा है।' शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि गोद लेने की प्रक्रिया कठोर होने के कारण, इसका उल्लंघन होना स्वाभाविक है और लोग बच्चे पैदा करने के लिए अवैध तरीके अपनाते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया 9 दिसंबर तक का वक्त
सुनवाई के दौरान, केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने लापता बच्चों के मामलों को देखने के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने हेतु छह सप्ताह का समय मांगा। हालांकि, शीर्ष अदालत ने छह सप्ताह का समय देने से इनकार कर दिया और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से 9 दिसंबर तक प्रक्रिया पूरी करने को कहा।
पहले भी केंद्र सरकार को दिया गया था निर्देश
14 अक्तूबर को, पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लापता बच्चों के मामलों को देखने के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से संचालित मिशन वात्सल्य पोर्टल पर प्रकाशन के लिए उनके नाम और संपर्क विवरण उपलब्ध कराने का निर्देश दे। पीठ ने निर्देश दिया था कि जब भी पोर्टल पर किसी लापता बच्चे के बारे में कोई शिकायत प्राप्त हो, तो जानकारी संबंधित नोडल अधिकारियों के साथ तुरंत साझा की जानी चाहिए।
एक विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाने का भी था निर्देश
शीर्ष अदालत ने पहले केंद्र से लापता बच्चों का पता लगाने और ऐसे मामलों की जांच के लिए गृह मंत्रालय के तत्वावधान में एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल बनाने को कहा था। पीठ ने देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लापता बच्चों का पता लगाने के काम में लगे पुलिस अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी को रेखांकित किया था। अदालत ने कहा था कि पोर्टल पर प्रत्येक राज्य से एक समर्पित अधिकारी हो सकता है जो सूचना प्रसारित करने के अलावा गुमशुदगी की शिकायतों का प्रभारी भी हो सकता है।
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बच्चों की तस्करी मामले में कोर्ट पहुंचा था एनजीओ
बता दें कि, एनजीओ गुरिया स्वयं सेवी संस्थान ने शीर्ष अदालत का रुख किया था और अपहरण या लापता बच्चों के अनसुलझे मामलों के अलावा भारत सरकार की तरफ से निगरानी किए जाने वाले खोया/पाया पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर की जाने वाली कार्रवाई पर प्रकाश डाला था। याचिका में पिछले साल उत्तर प्रदेश में दर्ज पांच मामलों के साथ अपनी दलील को स्पष्ट किया गया था, जिनमें नाबालिग लड़कों और लड़कियों का अपहरण किया गया था और बिचौलियों के एक नेटवर्क के माध्यम से झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में उनकी तस्करी की गई थी।