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Kathua: 500 साल पहले गुरु नानक देव ने जिस पीपल के नीचे दिया ज्ञान वहां आज समागम, डेरा गांव में आस्था की लहरें

साहिल खजूरिया, कठुआ Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Sun, 19 Oct 2025 05:46 AM IST
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सार

यह वह पावन स्थल है जहां गुरु नानक देव जी ने 20 अक्टूबर 1518 को अपनी तीसरी उदासी के दौरान कदम रखे थे। उनके आगमन से पवित्र हुई इस भूमि पर बना यह गुरुद्वारा आज श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का महत्व रखता है। इस गुरुद्वारे की स्थापना के 13 वर्ष पूरे होने पर रविवार को गांव में समागम का आयोजन होगा।

gathering is being held today at Peepal tree under which Guru Nanak Dev had imparted knowledge 500 years ago
श्री गुरुद्वारा चरणकमल साहिब - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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कठुआ जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर जसरोटा के डेरा गांव में स्थित गुरुद्वारा श्री चरणकमल साहिब आस्था और इतिहास का संगम है। यह वह पावन स्थल है जहां गुरु नानक देव जी ने 20 अक्टूबर 1518 को अपनी तीसरी उदासी के दौरान कदम रखे थे। उनके आगमन से पवित्र हुई इस भूमि पर बना यह गुरुद्वारा आज श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का महत्व रखता है। इस गुरुद्वारे की स्थापना के 13 वर्ष पूरे होने पर रविवार को गांव में समागम का आयोजन होगा।

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इस गुरुद्वारे के परिसर में आज भी पीपल और बरगद के वे दो वृक्ष हैं। बताया जाता है कि इन वृक्षों के नीचे बैठकर गुरु नानक देव जी ने धार्मिक प्रवचन दिए थे। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान इस स्थान पर लोगों को सच्चे ईश्वर की पूजा और सही जीवन शैली का ज्ञान दिया था। इस क्षेत्र के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यहां गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है। वर्तमान में इस गुरुद्वारे का सारा काम जिला गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी देखती है।
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गुरुद्वारे के इतिहास के बारे में स्थानीय मास्टर गुरनाम सिंह ने बताया कि उन्हें क्षेत्र में अपनी तैनाती के समय इस स्थान के महत्व के बारे में जानकारी मिली। गुरनाम 1992 से 1997 तक यहां के चिल्ला मोटा प्राइमरी स्कूल में तैनात रहे हैं। इस दौरान उन्होंने काफी मशक्कत कर उन्होंने इस स्थान का रिकार्ड निकाला। राजस्व रिकार्ड में इस स्थान को डेरा गांव के नाम से जाना जाता था। उन्होंने गुरुद्वारे के इतिहास को लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1998 में एसजीपीस को लिखा था पत्र: गुरनाम सिंह ने बताया कि इस स्थान के बारे में पता करने के बाद उन्होंने 15 अगस्त 1998 को एसजीपीसी को पत्र लिखा। इसके बाद एसजीपीसी सिख रेफ्रेंस बोर्ड को इस स्थान पर अध्ययन करने के लिए कहा। अंतत: सिख रिसर्च फोरम की ओर से इसका अध्ययन कराया गया। अध्ययन में पुष्टि हुई कि गुरु नानक देव इस स्थान पर 20 अक्तूबर 1518 को आए थे।

2012 में गुरुद्वारे का शुरू हुआ निर्माण
अध्ययन में सभी तथ्यों की पुष्टि होने के बाद एक ट्रस्ट बनाकर गांव में 2012 में गुरुद्वारे का निर्माण शुरू करवाया गया। इसके लिए तीन कनाल 15 मरला जमीन ट्रस्ट द्वारा खरीदी गई। एक कनाल जमीन ठाकुर हुरमत सिंह ने अपने दिवंगत पुत्र नरेंद्र सिंह की याद में दान की। यह जमीन वर्तमान में श्री गुरु ग्रंथ साहिब गुरुद्वारा चरण कमल श्री गुरु नानक देव के नाम पर पंजीकृत है।

आस्था का बना केंद्र
गुरुद्वारा श्री चरणकमल साहिब न केवल सिख समुदाय के लिए बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। यहां हर साल जम्मू-कश्मीर ही नहीं, पंजाब और दिल्ली से भी श्रद्धालु आते हैं।
सदियों से चली आ रही परंपरा स्थानीय निवासी ठाकुर हुरमत सिंह और उनका परिवार यहां पूर्वजों के बताए अनुसार हर बैसाखी पर्व पर यहां मीठे रूट का प्रसाद चढ़ाते थे। दोनों वृक्षों से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है। इसी कारण कोई भी व्यक्ति इन पेड़ों के पत्ते भी नहीं तोड़ता। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है और लोगों की आस्था को दर्शाती है।

धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की मांग
वर्तमान में गुरुद्वारा श्री चरणकमल साहिब का प्रबंधन जिला गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा किया जाता है। जिला गुरुद्वारा प्रबंधक के कोषाध्यक्ष दलजीत सिंह ने बताया कि इस ऐतिहासिक धरोहर को विकसित करने के लिए उपमुख्यमंत्री और उपराज्यपाल से भी मुलाकात की गई है। उन्होंने मांग की कि इस स्थान को राष्ट्रीय महत्व के तौर पर धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित किया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा संगत को इसके बारे में पता चल सके।

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