इंटरव्यू: 'सदन के भीतर अराजकता की स्थिति बर्दाश्त नहीं, पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे'; अब्दुल रहीम राथर
जम्मू विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर ने आगामी बजट सत्र के लिए बिजनेस रूल में छोटे बदलावों की बात की और सदन में अराजकता की पुनरावृत्ति न होने की चेतावनी दी।

विस्तार
नई सरकार आने के बाद जम्मू विधान सभा का पहला बजट सत्र तीन मार्च से प्रस्तावित है। विधान सभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर उससे पहले बिजनेस रूल को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इस सत्र में नई सरकार का पहला बजट आना है। इससे पहले पहला सत्र श्रीनगर में हुआ था। उस दौरान सदन के भीतर अप्रिय स्थिति पैदा हुई थी।

पहला ही सत्र हंगामे, धक्का-मुक्की, विधायकों को सदन से बाहर निकालने जैसी घटनाओं से चर्चा का विषय बना। सदन की व्यवस्था पर सवाल उठे। अब बजट सत्र पर सभी की निगाहें हैं। अमर उजाला ने विधानसभा के संचालन, बिजनेस रूल सहित तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर से बात की। राथर ने कहा कि सदन के भीतर मनमानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी, नियम बनाए जा रहे हैं। पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।
बिजनेस रूल नए सत्र से पहले
विधानसभा अध्यक्ष के मुताबिक, बिजनेस रूल लागू है। वर्ष 2019 में एक रीआर्गनाइजेशन एक्ट बना था। उसी के दायरे में हुकूमत चलाने के नियम हैं। बिजनेस रूल का जिक्र है। उसमें ये स्पष्ट है कि इसे बनाने का इख्तियार विधान सभा को ही है। उसी में ये भी लिखा है कि जब तक ये नियम नए तरीके से बनाए नहीं जाते, तब तक पुराने नियमों पर ही सरकार काम करेगी। बिजनेस रूल को लेकर तमाम तरह की गलतफहमियां हैं।
इसे अक्सर झूठे प्रचार का जरिया बना लिया गया है। राजनीति की जा रही है, हवा में बातें हो रही हैं। फिलहाल बिजनेस रूल के लिए बनाई गई समिति इसको मौजूदा दौर के हिसाब से बनाने पर काम कर रही है। यह बदलाव छोटे हैं। कुछ शब्दावलियां हैं, जिनकी प्रासंगिकता को जांच कर उसे बदला जा रहा है। रही बात पूरी की पूरी ओवरहाॅलिंग की तो ये भी हमारा अधिकार है, पर उसमें वक्त लगेगा। बजट सत्र में अब बहुत वक्त नहीं, इसलिए छोटे बदलाव ही होंगे। इससे सरकार या गवर्नर के अधिकारों में किसी तरह का कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
पहले विधान सभा सत्र में हंगामे पर कहा-यह सही नहीं
राथर ने कहा कि निश्चित तौर पर श्रीनगर में हुए विधान सभा सत्र में जो कुछ हुआ वह सही नहीं था। एक चुने हुए विधायक की अपने मतदाताओं के प्रति जवाबदेही होती है। मतदाता उन्हें चुनकर इसीलिए भेजते हैं कि वो उनके मुद्दों को सदन पटल पर रखें। उनके प्रति सरकार को जवाबदेह बनाएं। सदन को हंगामे की भेंट चढ़ा देना कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। मैंने उस वक्त भी उसे मंजूर नहीं किया था, आगे भी मनमानी की इजाजत नहीं दी जाएगी।
अध्यक्ष की निष्पक्षता पर बोले-मैं समझ ही नहीं पाया मेरा विरोध क्योंपहले सत्र के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने निष्पक्षता को लेकर सवाल उठाए थे और अध्यक्ष को कठघरे में खड़ा किया था। आरोप था कि एक अध्यक्ष को पार्टी के सदस्य के तौर पर काम नहीं करना चाहिए। इसको लेकर सवाल पर उन्होंने कहा, जब मुझे चुना जा रहा था तब किसी ने मेरे विरुद्ध उम्मीदवार खड़ा नहीं किया।
मुझे समर्थन देने वालों में भारतीय जनता पार्टी भी थी। मैंने उस वक्त भी कहा था, आज फिर कह रहा हूं कि चार दिन पहले मुझे चुना और चार दिन बाद मुझ पर आरोप लगाए गए। रही बात सदन में प्रस्ताव के रखे जाने की, उसके पास होने की, मैंने अपना धर्म निभाया था। एक अध्यक्ष के तौर पर पहले मैंने प्रस्ताव पर चर्चा करवाई, उसके बाद पक्ष और विपक्ष को वोटिंग के लिए आमंत्रित करना था, मैंने वही किया। उस वक्त भाजपा को सदन में रहकर विरोध करना चाहिए था, पर वो सदन से बाहर थी। वोटिंग हुई और प्रस्ताव पास हुआ। ऐसे में उसे वापस कैसे लिया जाता। मैंने उनकी बात नहीं मानी, तो उन्होंने कह दिया कि मैं एनसी का पक्ष ले रहा हूं। बस बात इतनी सी है।
बोले- 370 के बाद बहुत कुछ बदला
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में बहुत बदलाव आ चुके हैं। इन बदलावों को लेकर राथर ने कहा कि एक तरफ हमारे अधिकार कम हो गए, इसमें कोई शक नहीं। हां, ये मैं कहूंगा कि कोई लोकप्रिय सरकार नहीं थी। प्रजातंत्र में चुनी हुई सरकार का होना बहुत जरूरी है। नौकरशाही पर पूरी तरह से निर्भरता थी। चुना हुआ नुमाइंदा ही जनता की नब्ज को पकड़ सकता है, समझ सकता है। एक खालीपन सा था, जो धीरे-धीरे भर रहा है। सचिवालय के दरवाजे खुल गए, लोग आने लगे, अपने चुने जनप्रतिनिधि के पास अपनी समस्याओं को लेकर जाने लगे हैं। ये बदलाव देखा व महसूस किया जा सकता है। बजट सत्र आ रहा है, चर्चा होगी। गवर्नर साहब फिर से संबोधित करेंगे।
उच्च सदन की आवश्यकता जताई, स्क्रूटनी करने को जरूरी बताया
जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने के बाद यहां से विधान परिषद भंग हो गई। एकल सदन रह गया। निचले सदनों में रखे जाने वाले मुद्दों को जब उच्च सदन में रखा जाता है तो वहां स्क्रूटनी होती है। विधान परिषद एक तरह से फिल्टर का काम करता है। वहां भी नुमाइंदे ही होते हैं, कुछ को गवर्नर साहब मनोनीत करते हैं। यह स्क्रूटनी बहुत जरूरी है, इसकी कमी खलती है। देखते हैं आगे क्या होता है।
पटना में विधानसभा अध्यक्षों के सम्मेलन के अनुभव साझा किए
राथर ने पटना में हुए विधान सभा अध्यक्षों के सम्मेलन के अनुभवों को साझा किया। बताया कि वहां उन्होंने जम्मू-कश्मीर विधानसभा की बेस्ट प्रैक्टिस को साझा किया। हाल ही में विधायकों के लिए आयोजित वर्कशाॅप के बारे में बताया। कहा, उसके नतीजे अच्छे रहे और हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले सत्र में उसका असर दिखेगा।
एक परिचय बडगाम जिले के चरार-ए-शरीफ विधानसभा क्षेत्र से जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए सात बार विधायक रह चुके हैं। पहली बार 1977 में उन्होंने जीत हासिल की थी। वर्तमान में विधान सभा अध्यक्ष हैं। पिछली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार में वित्त सहित कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों को संभाल चुके हैं। 1968 में कश्मीर विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की और बाद में 1971 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की थी।