Jammu Kashmir Elections 2024 : उड़ी...सरहद की आखिरी सीट, कश्मीरी सियासत की नियंत्रण रेखा
सरहद पर आखिरी विधानसभा सीट है, उड़ी। वह सीट जहां कुदरत पहाड़ी हो जाती है और राजनीति बाकी कश्मीर से बिल्कुल अलग।

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कश्मीर में एलओसी से सटा कमान पोस्ट...वह आखिरी जमीन जो देश का हिस्सा है। लोहे के एक दरवाजे पर स्टील का मजबूत ताला लगा है। इस दरवाजे के पार एक पुल है, जो किसी वक्त में दोनों देशों को जोड़ता था। व्यापार और दोनों देशों में बंटवारे के वक्त बिखर चुकी रिश्तेदारियों के हवाले से। अब उस पुल पर भी जंग लग गई है। अप्रैल, 2019 से पड़ोसी के साथ रिश्तों का यह दरवाजा बंद है। सामने पीओके की पहाड़ियां, इक्का-दुक्का मकान और छोटा सा पाकिस्तानी झंडा नजर आता है। और वह इलाका भी जो जम्मू-कश्मीर विधानसभा की उन 24 सीट में शामिल है, जो पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में आती हैं। जम्मू-कश्मीर में हर चुनावों में इन 24 सीटों का जिक्र होता है, इस उम्मीद में कि कभी पीओके के वो इलाके भारत का हिस्सा होंगे।

इसी सरहद पर आखिरी विधानसभा सीट है, उड़ी। वह सीट जहां कुदरत पहाड़ी हो जाती है और राजनीति बाकी कश्मीर से बिल्कुल अलग। हर चुनाव में 60-70 प्रतिशत वोटिंग। यहां न तो आज तक चुनावों का बहिष्कार हुआ है, न हड़ताल, न पत्थरबाजी और न ही आतंकवाद पनपा। उड़ी के गांव लगामा में रहने वाले 95 साल के गुलाम मोहम्मद कहते हैं, 90 के दशक में उड़ी के रास्ते जब घुसपैठ होती थी, तब भी आतंकवादी इस इलाके से गुजरते तो थे, लेकिन कभी यहां बसे नहीं।
उड़ी टाउन के बाजार में नेशनल कॉन्फ्रेंस के इश्तेहार चिपके हैं। सज्जाद शफी उनके उम्मीदवार हैं। उम्र होगी 45 साल। उन्हें सबसे मुश्किल टक्कर दे रहे निर्दलीय प्रत्याशी और वर्षों पहले जम्मू-इलाके से आकर उड़ी में बसे ताज मोइउद्दीन 85 साल के हैं। मोइउद्दीन कहते हैं, उसके बाप से मुकाबला होता तो बराबर की टक्कर थी। शफी उरी मुझसे वजन में बराबर था, लेकिन उसका बेटा सज्जाद तो उड़ी के गांव के नाम भी नहीं बता सकता।
ताज मोइउद्दीन कहते हैं, जब 2002 में चुनाव प्रचार करने गया, तो 101 गांव पैदल चलकर पहुंचा था। 6-7 दिन तक घर से दूर कच्चे मकानों में रहना पड़ता था। कीड़े और मच्छरों के बीच। लेकिन अब इलाके में सड़कें हैं। हर गांव तक गाड़ी जाती है। वह कहते हैं कि उड़ी में 3 पावर प्रोजेक्ट हैं। उनके 5 किमी के दायरे में आनेवाले लोगों ने अपनी जमीन प्रोजेक्ट के लिए दी थी और बदले में वादा मिला था कि उन्हें मुफ्त बिजली देंगे। हुकूमत में आए तो लोगों के लिए यह जरूर मुमकिन करवाएंगे। वह कांग्रेस के टिकट पर एमएलए और मंत्री बने। इस बार गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी छोड़कर निर्दलीय लड़ रहे हैं।
वहीं, सज्जाद बब्बर शेर कहलाने वाले पुराने और मशहूर नेता शफी उरी के बेटे हैं और पूर्व मंत्री अब्दुल रहीम राथर के दामाद। शफी एनसी के सबसे भरोसेमंद नेता माने जाते हैं। जब से पार्टी बनी, तभी से साथ हैं। तीन कमरे के घर में रहते हैं, जिसकी चहारदीवारी भी नहीं है। पेशे से डॉक्टर हैं। पहाड़ी जाति के शफी के परिवार का 40 साल से उड़ी सीट पर कब्जा है।
इस बार मुकाबला पहाड़ी बनाम गुज्जर। नेशनल कॉन्फ्रेंस बनाम बाकी सब हैं। एक ओर शफी के बेटे हैं, दूसरी ओर ताज साहब...जिन्हें अल्ताफ बुखारी, राजा एजाज अली दोनों का साथ और समर्थन हासिल हो चुका है। इसके अलावा पीडीपी ने भी आधिकारिक रूप से ताज को समर्थन देने की घोषणा की है। वैसे तो उनके विरोधी और सज्जाद का यह भी आरोप है कि भाजपा भी ताज मोइउद्दीन का साथ दे रही है। मुकाबला उड़ी की पहाड़ी के रास्तों सा कठिन है। 85 किमी में फैला वह उड़ी, जिसकी हदें ऊंची पहाड़ियों, घने दरख्तों से शुरू होकर झेलम किनारे आकर खत्म हो जाती है। जिसका जिक्र देश राजनीति से कहीं दूर, सिर्फ पाकिस्तानी आतंकियों के सेना के कैम्प पर हुए हमले से जुड़ी याद में करता है। 2016 में इसी महीने वह हमला हुआ था, जिसमें भारतीय सेना के 16 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे।