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मंदा पड़ा कश्मीरी अखरोट का बाजार: विदेशों से बढ़ते आयात ने बिगाड़ी दशा, लाखों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट
अमर उजाला नेटवर्क, जम्मू
Published by: शाहरुख खान
Updated Mon, 27 Oct 2025 03:23 PM IST
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सार
कश्मीरी अखरोट का बाजार मंदा पड़ गया है। विदेशों से बढ़ते आयात ने दशा बिगाड़ दी है। देश के कुल उत्पादन में 95 फीसदी योगदान देने वाला जम्मू-कश्मीर प्रसंस्करण और मंडियों की कमी से जूझ रहा है।
अखरोट की फाइल फोटो
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
कभी कश्मीर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की पहचान रहे अखरोट अब बाजार में पिछड़ते जा रहे हैं। सस्ते विदेशी अखरोटों की आमद, प्रसंस्करण की कमी और मंडियों के अभाव ने इस परंपरागत कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है। किसान और व्यापारी दोनों परेशान हैं और सरकार से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
कश्मीर के पुलवामा के किसान अब्दुल रहमान का कहना है कि हमारे अखरोट पूरी तरह जैविक हैं लेकिन कैलिफोर्निया, चीन और चिली से आने वाले सस्ते अखरोटों के आगे टिक नहीं पा रहे। बाहर के अखरोट पैकिंग में बेहतर और दाम में सस्ते हैं।
प्रसंस्करण यूनिटें बंद, किसान बेहाल
कश्मीर ड्राई फ्रूट संघ के अध्यक्ष हाजी बहादुर खान ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में कई प्रसंस्करण इकाइयां बंद हो चुकी हैं। जीएसटी ने और बोझ बढ़ा दिया है। हमारी मांग है कि अखरोट पर से जीएसटी हटाया जाए ताकि किसानों को राहत मिल सके। कुपवाड़ा के किसान बशीर अहमद ने बताया कि हमारे पास न तो तय मंडी है, न ग्रेडिंग की व्यवस्था। फसल तैयार होने के बाद हमें आढ़तियों को बेचना पड़ता है जो बाहर ले जाकर मनमाने दाम तय करते हैं।
कश्मीर के पुलवामा के किसान अब्दुल रहमान का कहना है कि हमारे अखरोट पूरी तरह जैविक हैं लेकिन कैलिफोर्निया, चीन और चिली से आने वाले सस्ते अखरोटों के आगे टिक नहीं पा रहे। बाहर के अखरोट पैकिंग में बेहतर और दाम में सस्ते हैं।
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प्रसंस्करण यूनिटें बंद, किसान बेहाल
कश्मीर ड्राई फ्रूट संघ के अध्यक्ष हाजी बहादुर खान ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में कई प्रसंस्करण इकाइयां बंद हो चुकी हैं। जीएसटी ने और बोझ बढ़ा दिया है। हमारी मांग है कि अखरोट पर से जीएसटी हटाया जाए ताकि किसानों को राहत मिल सके। कुपवाड़ा के किसान बशीर अहमद ने बताया कि हमारे पास न तो तय मंडी है, न ग्रेडिंग की व्यवस्था। फसल तैयार होने के बाद हमें आढ़तियों को बेचना पड़ता है जो बाहर ले जाकर मनमाने दाम तय करते हैं।
जम्मू के बाजारों में भी बढ़ी विदेशी अखरोट की मांग
जम्मू की हरी मार्केट में पिछले सात साल से ड्राई फ्रूट का कारोबार कर रहे अमनदीप सिंह बताते हैं कि इस समय कश्मीरी अखरोट 450 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि कैलिफोर्निया का 600 और चिली का 900 रुपये किलो है।
जम्मू की हरी मार्केट में पिछले सात साल से ड्राई फ्रूट का कारोबार कर रहे अमनदीप सिंह बताते हैं कि इस समय कश्मीरी अखरोट 450 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि कैलिफोर्निया का 600 और चिली का 900 रुपये किलो है।
चिली का अखरोट स्वाद और गुणवत्ता में सबसे अच्छा है, लेकिन महंगा होने से कम बिकता है। कैलिफोर्निया वाला सस्ता भी है और उसमें दाने अच्छे निकलते हैं। इसलिए पिछले कुछ वर्षों से ग्राहक वही मांगते हैं। कश्मीरी अखरोट की बिक्री लगातार घट रही है।
हर साल बढ़ रहा आयात, लाखों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट
भारत हर साल करीब 3.2 लाख मीट्रिक टन अखरोट का उत्पादन करता है, जिसमें जम्मू-कश्मीर की हिस्सेदारी 95 फीसदी से ज्यादा है। फिर भी, स्थानीय किसानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन के आंकड़ों कड़ों के अनुसार, साल 2023 में भारत ने करीब 57 हजार टन अखरोट आयात किए, जिनकी कीमत करीब 660 करोड़ रुपये रही।
भारत हर साल करीब 3.2 लाख मीट्रिक टन अखरोट का उत्पादन करता है, जिसमें जम्मू-कश्मीर की हिस्सेदारी 95 फीसदी से ज्यादा है। फिर भी, स्थानीय किसानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन के आंकड़ों कड़ों के अनुसार, साल 2023 में भारत ने करीब 57 हजार टन अखरोट आयात किए, जिनकी कीमत करीब 660 करोड़ रुपये रही।
इसमें सबसे अधिक आयात चिली से 49 हजार टन और अमेरिका से छह हजार टन हुआ। तुलना करें तो साल 2021 में कुल आयात 37 हजार टन था, यानी दो साल में विदेशी अखरोटों का आयात करीब पचास फीसदी बढ़ गया है। कश्मीर में अखरोट की खेती से करीब सात लाख लोग सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े हैं।
राज्य के लगभग 89 हेक्टेयर क्षेत्र में अखरोट की खेती होती है। तीन प्रमुख किस्में,वुंथ (तेल निकालने योग्य), कागजी (पतले छिलके वाली) और बुरजुल (गहरे रंग की) अब भी अपनी गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं, लेकिन बाजार में इनकी पहचान घटती जा रही है।