Devvrat Rekhe: दंडक्रम पारायण का कीर्तिमान स्थापित करने वाले देवव्रत का अमर उजाला संवाद के मंच पर शांति पाठ
Amar Ujala Samwad 2025: अमर उजाला संवाद के मंच पर पहुंचे देवमूर्ति देवव्रत महेश रेखे का जीवन साधना, शांति, और आत्म-निर्माण पर केंद्रित है।
विस्तार
Amar Ujala Samwad 2025 : देश और हरियाणा के बहुआयामी विकास पर महामंथन के लिए बुधवार को अमर उजाला संवाद का आयोजन हुआ है। इसमें राजनीति, सुरक्षा, स्वास्थ्य, अध्यात्म, मनोरंजन, खेल नामचीन हस्तियों के साथ चर्चा के लिए शामिल हुए। गुरुग्राम स्थित होटल क्राउन प्लाजा में सुबह नौ बजे हाॅल मंत्रोच्चारण से गूंज उठा।
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने दीप प्रज्वलन कर किया तो वहीं 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने अमर उजाला संवाद हरियाणा के मंच से शांति पाठ और मंत्रोच्चारण के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे एक प्रमुख आचार्य और ज्ञानी व्यक्ति हैं, जो अपने आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन के प्रति गहरी समझ के लिए प्रसिद्ध हैं।
कौन हैं देवव्रत महेश रेखे
देवव्रत महेश रेखे मूल रूप से महाराष्ट्र के अहिल्या नगर के रहने वाले हैं। महज 19 वर्ष की आयु में उन्होंने वेदों के प्रति वह समर्पण दिखाया है जो बड़े-बड़े विद्वानों के लिए भी दुर्लभ है। देवव्रत वर्तमान में वाराणसी (काशी) के रामघाट स्थित वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय के छात्र हैं। देवव्रत एक वैदिक परिवार से आते हैं। उनके पिता वेद ब्रह्म श्री महेश चंद्रकांत रेखे स्वयं एक प्रतिष्ठित वैदिक विद्वान हैं और उन्होंने ही देवव्रत को इस कठिन मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित किया है।
वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे ने वेदों, उपनिषदों, भगवद गीता और अन्य प्राचीन भारतीय ग्रंथों का गहन अध्ययन किया है। उनके पास भारतीय धर्म और दर्शन की गहरी समझ है, जिससे उन्होंने बहुत से लोगों को जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।
क्या है 'दंडक्रम पारायण साधना' जिसकी हर तरफ चर्चा?
देवव्रत ने जिस उपलब्धि को हासिल किया है, उसे वैदिक शब्दावली में 'दंडक्रम पारायण' कहा जाता है। यह वेदों के पाठ की सबसे जटिल विधियों में से एक है। यह पाठ शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा से संबंधित है। इसमें करीब 2,000 मंत्र शामिल हैं। इसके पाठ के नियम भी कठिन हैं। देवव्रत को बिना किसी ग्रंथ को देखे (कंठस्थ), पूरी शुद्धता और लय के साथ इन मंत्रों का उच्चारण करना था, और उन्होंने इसे कर दिखाया। यह अनुष्ठान लगातार 50 दिनों तक चला।
उन्होंने 2 अक्तूबर से 30 नवंबर तक बिना किसी बाधा के इस उपलब्धि हो हासिल किया। 30 नवंबर को दंडक्रम पारायण की पूर्णाहुति के बाद उन्हें शृंगेरी शंकराचार्य ने सम्मान स्वरूप सोने का कंगन और 1,01,116 रुपये दिया गया। दंडक्रम पारायणकर्ता अभिनंदन समिति के पदाधिकारियों चल्ला अन्नपूर्णा प्रसाद, चल्ला सुब्बाराव, अनिल किंजवडेकर, चंद्रशेखर द्रविड़ घनपाठी, प्रो. माधव जर्नादन रटाटे व पांडुरंग पुराणिक ने बताया कि नित्य साढ़े तीन से चार घंटे पाठ कर देवव्रत ने इसे पूरा किया।
देवव्रत महेश रेखे की उपलब्धि क्यों 'ऐतिहासिक'?
देवव्रत की उपलब्धि का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसका इतिहास है। ऐसा माना जाता है कि 'दंडक्रम पारायण' का यह कठिन स्वरूप पिछले 200 वर्षों में किसी ने पूर्ण नहीं किया था। इससे पहले, लगभग दो सदी पूर्व नासिक के वेदमूर्ति नारायण शास्त्री देव ने यह उपलब्धि हासिल की थी। आज के डिजिटल दौर में, जब याददाश्त पर तकनीक हावी है, एक 19 साल के युवा द्वारा हजारों मंत्रों को कंठस्थ करना और उन्हें त्रुटिहीन सुनाना एक चमत्कार जैसा है। देवव्रत की इस सिद्धि ने देश के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान अपनी ओर खींचा।
वेदमूर्ति उपाधी का महत्व
"वेदमूर्ति" का पद उनके गहन वेद-ज्ञान को दर्शाता है, और यह उपाधी उन्हें उनके विद्यानुवाद और धर्मिक शिक्षाओं के लिए दी गई है। वह भारतीय समाज में पारंपरिक और आधुनिक ज्ञान का समन्वय करते हैं। उन्होंने कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों से जुड़कर शिक्षा, स्वास्थ्य, और समाज सुधार के लिए कार्य किए हैं।
देवव्रत महेश रेखे की दिनचर्या
- प्रात: काल का समय: उनकी दिनचर्या सुबह जल्दी उठकर ध्यान, प्रार्थना, और योगाभ्यास से शुरू होती है। वे आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से ध्यान करते हैं।
- स्वास्थ्य: वे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए साधारण जीवन जीते हैं, जिसमें योग, प्राणायाम, और स्वच्छ आहार प्रमुख होते हैं।
- समय का प्रबंधन: उनका दिन निश्चित समय पर निर्धारित रहता है, जिसमें साधना, पाठ, और अध्ययन के लिए समर्पित समय होता है। इसके अलावा, वे अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए समाज में योगदान देने का प्रयास करते हैं।
- सामाजिक और पारिवारिक संबंध: वे पारिवारिक जीवन को अत्यधिक महत्व देते हैं और अपने अनुयायियों से भी स्वस्थ और प्रेमपूर्ण संबंध रखने की प्रेरणा देते हैं।
- व्रत और उपवासी जीवन: कुछ समय विशेष पर, वे उपवासी रहते हैं और जीवन में संयम बनाए रखने की शिक्षा देते हैं। यह उनके आत्मसंयम और तपस्या का हिस्सा होता है।
- धार्मिक अनुष्ठान: उनके जीवन में धार्मिक अनुष्ठान और पूजा बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। वे नियमित रूप से विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं और दूसरों को भी इसका पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं।