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Ind Vs Pak: 'युद्ध के डर से अचानक चौंक जाती है रश्मि'... जारी तनाव का मानसिक स्वास्थ्य पर हो सकता है गंभीर असर
हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अभिलाष श्रीवास्तव
Updated Sun, 11 May 2025 07:44 PM IST
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सार
इन दिनों आपके मन में भी ये सवाल जरूर होगा कि क्या हम एक युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं? युद्ध हुआ तो क्या होगा? हम कितने पीछे चले जाएंगे? और तमाम तरह के सवाल। इस तरह की भावनाएं और प्रश्न काफी सामान्य हैं। पर हमें इस बात का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि कहीं ये हमारी मेंटल हेल्थ को न नुकसान पहुंचाने लगे।

भारत-पाकिस्तान तनाव मानसिक स्वास्थ्य को कर सकता है प्रभावित
- फोटो : Freepik.com

विस्तार
भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव ने एक अजीब सी असहज करने वाली स्थिति उत्पन्न कर दी है। एक ओर आतंकी देश को कड़ा सबक सिखाने और पाकिस्तान से निर्णायक युद्ध करने के लिए जज्बात मचल रहे हैं, साथ ही साथ ये डर भी है कि युद्ध में बहुत विनाश होता है, केवल दुश्मन का ही नहीं, अपना भी।
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इन दिनों आपके मन में भी ये सवाल जरूर होगा कि क्या हम एक युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं? युद्ध हुआ तो क्या होगा? हम कितने पीछे चले जाएंगे? और तमाम तरह के सवाल। इस तरह की भावनाएं और प्रश्न काफी सामान्य हैं। पर हमें इस बात का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि कहीं ये हमारी मेंटल हेल्थ को न नुकसान पहुंचाने लगे।
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मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ पहले ही वॉर एंग्जाइटी को लेकर लोगों को अलर्ट करते रहे हैं। युद्ध से जुड़े तमाम तरह के प्रश्न और उसकी ओवरथिंकिंग के कारण स्ट्रेस-एंग्जाइटी और कई प्रकार की अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम हो सकता है।

युद्ध को लेकर मन में डर और चिंता
- फोटो : Freepik.com
युद्ध की चिंता और डर मन पर हो रहा हावी...
10 वर्षीय रश्मि (बदला हुआ नाम) के लिए इस महीने की शुरुआत तक पाकिस्तान सिर्फ एक देश का नाम था। हालांकि पिछले दिनों जिस तरह की स्थिति बनी है और ऐसा लगने लगा है कि हम युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं, ऐसे में अब वह दरवाजे पर हर दस्तक के साथ चौंक जाती है और आसन्न विनाश के विचार से टूट जाती है।
यह सब तब शुरू हुआ जब उसके स्कूल में जागरूकता सत्र था और फिर उसने कक्षा में अपने दोस्तों से कुछ बातें सुनीं। वह कहती है कि 'पाकिस्तान हम पर हमला करेगा' और हर कोई मर जाएगा। परमाणु विस्फोट के कुछ वीडियो उसने सोशल मीडिया पर देखे हैं, जिसके बारे में सोचकर रश्मि परेशान हो जाती है।
हालांकि ऐसा सोचने वाली रश्मि अकेली नहीं है, ऐसी दिक्कतें आपके घर में, आसपास के बच्चों-युवा और बुजुर्गों को भी हो सकती हैं।
10 वर्षीय रश्मि (बदला हुआ नाम) के लिए इस महीने की शुरुआत तक पाकिस्तान सिर्फ एक देश का नाम था। हालांकि पिछले दिनों जिस तरह की स्थिति बनी है और ऐसा लगने लगा है कि हम युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं, ऐसे में अब वह दरवाजे पर हर दस्तक के साथ चौंक जाती है और आसन्न विनाश के विचार से टूट जाती है।
यह सब तब शुरू हुआ जब उसके स्कूल में जागरूकता सत्र था और फिर उसने कक्षा में अपने दोस्तों से कुछ बातें सुनीं। वह कहती है कि 'पाकिस्तान हम पर हमला करेगा' और हर कोई मर जाएगा। परमाणु विस्फोट के कुछ वीडियो उसने सोशल मीडिया पर देखे हैं, जिसके बारे में सोचकर रश्मि परेशान हो जाती है।
हालांकि ऐसा सोचने वाली रश्मि अकेली नहीं है, ऐसी दिक्कतें आपके घर में, आसपास के बच्चों-युवा और बुजुर्गों को भी हो सकती हैं।

स्ट्रेस-तनाव का खतरा
- फोटो : Freepik.com
विपरीत परिस्थितियों में स्ट्रेस-एंग्जाइटी की दिक्कत
पुणे स्थित एक निजी अस्पताल में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ रविंद्र अस्थाना बताते हैं, संभावित युद्ध की लगातार चर्चा लोगों में स्ट्रेस-एंग्जाइटी को ट्रिगर कर सकती है, यहां तक कि संघर्ष क्षेत्रों से दूर रहने वालों में भी इसका खतरा देखा जाता रहा है।
लगातार 24/7 मीडिया कवरेज, सोशल मीडिया एक्सपोजर और भावनात्मक रूप से प्रभावित करने वाले कंटेंट मस्तिष्क के तनाव को कंट्रोल करने वाले तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं। युद्ध से संबंधित सवाल जैसे यह कितना आगे जाएगा, कौन प्रभावित होगा और इसके दीर्घकालिक परिणाम क्या होंगे? आपकी मेंटल हेल्थ को दीर्घकालिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं।
डॉ रविंद्र कहते हैं, युवा और वयस्क तो फिर भी परिस्थितियों को समझ सकते हैं, पर बच्चों के दिमाग को ये डर गंभीर रूप से प्रभावित करने वाला हो सकता है। यहां माता-पिता की विशेष भूमिका हो जाती है। बच्चों को सुरक्षा का भरोसा दिलाएं और ऑनलाइन गलत सूचना को देखने के बजाय खुली बातचीत के लिए प्रोत्साहित करें।
पुणे स्थित एक निजी अस्पताल में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ रविंद्र अस्थाना बताते हैं, संभावित युद्ध की लगातार चर्चा लोगों में स्ट्रेस-एंग्जाइटी को ट्रिगर कर सकती है, यहां तक कि संघर्ष क्षेत्रों से दूर रहने वालों में भी इसका खतरा देखा जाता रहा है।
लगातार 24/7 मीडिया कवरेज, सोशल मीडिया एक्सपोजर और भावनात्मक रूप से प्रभावित करने वाले कंटेंट मस्तिष्क के तनाव को कंट्रोल करने वाले तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं। युद्ध से संबंधित सवाल जैसे यह कितना आगे जाएगा, कौन प्रभावित होगा और इसके दीर्घकालिक परिणाम क्या होंगे? आपकी मेंटल हेल्थ को दीर्घकालिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं।
डॉ रविंद्र कहते हैं, युवा और वयस्क तो फिर भी परिस्थितियों को समझ सकते हैं, पर बच्चों के दिमाग को ये डर गंभीर रूप से प्रभावित करने वाला हो सकता है। यहां माता-पिता की विशेष भूमिका हो जाती है। बच्चों को सुरक्षा का भरोसा दिलाएं और ऑनलाइन गलत सूचना को देखने के बजाय खुली बातचीत के लिए प्रोत्साहित करें।

मेंटल हेल्थ की लिए चुनौतीपूर्ण समय
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युद्ध के खतरा और चिंताएं
युद्ध के खतरे को लेकर चिंतित होना एक आम बात है, लेकिन किसी भी अप्रिय परिणाम के लिए तैयार रहना भी चिंता का कारण बन सकता है। इसके दुष्प्रभाव के रूप में न केवल आपको अभी स्ट्रेस-एंग्जाइटी की समस्या हो सकती है, बल्कि ये ट्रॉमा सालों-साल तक प्रभावित करता रह सकता है। दुनियाभर में हुए तमाम युद्धों के बाद लंबे समय तक लोगों में पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की समस्या देखी जाती रही है, जो कई बार डिप्रेशन के खतरे को भी बढ़ाने वाली हो सकती है।
युद्ध के खतरे को लेकर चिंतित होना एक आम बात है, लेकिन किसी भी अप्रिय परिणाम के लिए तैयार रहना भी चिंता का कारण बन सकता है। इसके दुष्प्रभाव के रूप में न केवल आपको अभी स्ट्रेस-एंग्जाइटी की समस्या हो सकती है, बल्कि ये ट्रॉमा सालों-साल तक प्रभावित करता रह सकता है। दुनियाभर में हुए तमाम युद्धों के बाद लंबे समय तक लोगों में पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की समस्या देखी जाती रही है, जो कई बार डिप्रेशन के खतरे को भी बढ़ाने वाली हो सकती है।

मानसिक स्वास्थ्य का रखें ख्याल
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क्या है सुझाव
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, अभी का दौर मानसिक स्वास्थ्य के लिए चुनौतीपूर्ण है, इसलिए हमें अपना संतुलन खुद ही बनाना होता है। शांत और संयमित रहना मुश्किल है, खासकर तब जब आपके आस-पास के अधिकांश लोग चिंता और भय से प्रेरित उन्मादी माहौल से आ रहे हों। ऐसी परिस्थितियों में खुद को सकारात्मक विचारों की तरफ मोड़ें।
लोगों को सलाह दी कि आप दिन में कुछ मिनट के लिए भी मेडिटेशन करें, डर और चिंताओं से निपटने में मदद के लिए अच्छी और सकारात्मक बातें सुनें और देखें। सोशल मीडिया से दूरी बनाएं और सिर्फ विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त सूचनाओं पर ही विश्वास करें। मेंटल हेल्थ का सभी उम्र के लोगों को गंभीरता से ध्यान रखना चाहिए।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, अभी का दौर मानसिक स्वास्थ्य के लिए चुनौतीपूर्ण है, इसलिए हमें अपना संतुलन खुद ही बनाना होता है। शांत और संयमित रहना मुश्किल है, खासकर तब जब आपके आस-पास के अधिकांश लोग चिंता और भय से प्रेरित उन्मादी माहौल से आ रहे हों। ऐसी परिस्थितियों में खुद को सकारात्मक विचारों की तरफ मोड़ें।
लोगों को सलाह दी कि आप दिन में कुछ मिनट के लिए भी मेडिटेशन करें, डर और चिंताओं से निपटने में मदद के लिए अच्छी और सकारात्मक बातें सुनें और देखें। सोशल मीडिया से दूरी बनाएं और सिर्फ विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त सूचनाओं पर ही विश्वास करें। मेंटल हेल्थ का सभी उम्र के लोगों को गंभीरता से ध्यान रखना चाहिए।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।