Parenting Tips: क्या आपका बच्चा अभी भी साथ सोता है? विशेषज्ञ से जानें किस उम्र के बाद बंद करें यह आदत
Parenting Tips : रिश्तों की मजबूती केवल पास सोने से नहीं बनती, बल्कि बच्चे को धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनाने से भी आती है। आइए जानते हैं बच्चे को किस उम्र तक माता पिता के साथ सोना चाहिए और क्या होता है साथ या अकेले सोने का बच्चे पर असर।
विस्तार
Parenting Tips: बच्चों का माता-पिता के साथ बिस्तर साझा करना भारतीय घरों में परंपरा भी है और सुरक्षा का भाव भी। हम बड़े हुए हैं मां की गोद में, पापा की पास वाली जगह पर और दादी की रात वाली कहानियों के बीच। लेकिन आज के दौर में एक सवाल बार-बार उठता है, बच्चों को अपने माता-पिता के साथ आखिर कब तक सोना चाहिए? क्या इसके लिए कोई निश्चित उम्र है? क्या डॉक्टर इस पर अलग राय रखते हैं? और क्या अलग सोने से बच्चा दूरी महसूस करेगा? एक सच्चाई यह भी है कि रिश्तों की मजबूती केवल पास सोने से नहीं बनती, बल्कि बच्चे को धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनाने से भी आती है। आइए जानते हैं बच्चे को किस उम्र तक माता पिता के साथ सोना चाहिए और क्या होता है साथ या अकेले सोने का बच्चे पर असर।
माता-पिता के साथ सोने के फायदे
नवजात शिशु के लिए मां के पास सोना बेहद जरूरी होता है। सांस की लय, दूध पीने का समय और भावनात्मक सुरक्षा इन सबके लिए यह निकटता जरूरी है। अध्ययन बताते हैं कि 3-4 साल की उम्र तक बच्चे का अभिभावकों के साथ सोना उनके मानसिक विकास के लिए लाभदायक हो सकता है। इससे,
- बच्चा सुरक्षित महसूस करता है
- आत्मविश्वास बढ़ता है
- भावनात्मक समस्याएं कम होती हैं
लेकिन हर अच्छे अभ्यास की तरह, इसका भी समय आता है जब बदलाव जरूरी होता है।
कब शुरू हो ‘अलग सोने’ की आदत?
जन्म से 6 महीने तक
इस उम्र में बच्चे को माता-पिता के कमरे में रखना जरूरी है, लेकिन अलग क्रिब या बेड पर। WHO और बाल रोग विशेषज्ञ भी इसी व्यवस्था की सलाह देते हैं।
6 महीने से 2 साल तक
- स्लीप साइकिल मजबूत होने लगती है।
- कई बच्चे रात में बार-बार उठते हैं, इसलिए पास होना सुविधाजनक होता है।
- इस समय रूम शेयरिंग ठीक है, लेकिन धीरे-धीरे बच्चे को अलग बेड की ओर ले जाना चाहिए।
किस उम्र में बच्चा अलग सोना चाहिए?
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसकी जरूरतें भी बदलती हैं।
- 4–5 साल की उम्र के बाद बच्चे को अलग सुलाना शुरू कर देना चाहिए।
- प्री-प्यूबर्टी (8–10 साल) आने पर बच्चे को अपना स्पेस ज़रूर मिलना चाहिए, ताकि वह निजी सीमाओं को समझ सके और मानसिक रूप से मजबूत बने।
बच्चों को अलग सुलाने की वजहें
अध्ययन साफ बताते हैं कि लगातार माता-पिता के साथ सोते रहने से बड़े होते बच्चों पर कई शारीरिक और मानसिक प्रभाव पड़ सकते हैं,
- मोटापा बढ़ने का जोखिम
- ऊर्जा और एकाग्रता में कमी
- विकास की गति धीमी होना
- लगातार थकान
- भावनात्मक असुरक्षा
- अवसाद या चिंताजनक व्यवहार
- याददाश्त में कमजोरी
- एक बेड पर भीड़ होने से बच्चा गहरी नींद नहीं ले पाता, जिसकी उसे विकास के लिए सबसे ज़्यादा जरूरत होती है।
माता-पिता के साथ सोने के नुकसान
उम्र बढ़ने के साथ बच्चे देखने-समझने लगते हैं। अगर बड़ा बच्चा लगातार माता-पिता के साथ सोता है तो,
- घर में होने वाले तनाव या बहस के बीच वह भावनात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है।
- माता-पिता की निजी स्पेस खत्म होती है, जिससे दांपत्य संबंध पर असर पड़ता है।
- बच्चा खुद को तनाव का कारण समझने लगता है, और यही उसे अवसाद की तरफ धकेल सकता है।
- वर्षों बाद अलग सोना उसके लिए बेहद कठिन हो जाता है।
- नींद की गुणवत्ता खराब होती है, जिससे उसका शारीरिक विकास प्रभावित होता है।
- यानी बच्चे और माता-पिता, दोनों की भलाई इसी में है कि सही उम्र पर उनके बिस्तर अलग हो जाएं।