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भोपाल गैस त्रासदी: एक ऐसी रात जिसे शहर आज भी नहीं भूल पाया, 41 वर्ष बाद भी इंसाफ का इंतजार; छलक उठे आंसू

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: आनंद पवार Updated Wed, 03 Dec 2025 10:00 AM IST
सार

Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस कांड का डरावना मंजर आज भी लोग नहीं भुला पा रहे। 2-3 दिसंबर 1984 की रात लोगों के लिए एक आम रात की तरह ही शुरू हुई थी। सभी लोग सोने गए थे, अगली सुबह की रोजमर्रा की जिंदगी सोचते हुए… लेकिन बहुतों के लिए वह सुबह कभी नसीब नहीं हुई।
 

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Bhopal Gas Tragedy: A night the city has yet to forget; 41 years later, justice awaits
भोपाल गैस कांड। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से अचानक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस रिसने लगी। टैंक नंबर 610 में हुए रासायनिक बदलाव से दबाव बढ़ा और करीब 40 टन गैस बाहर निकल गई। कुछ ही मिनटों में यह गैस हवा के साथ शहर पर फैलने लगी। फैक्टरी के आसपास की बस्तियों में रहने वाले गरीब मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। लोगों को समझ ही नहीं आया कि किस दिशा में भागें-आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ और घबराहट से हजारों लोग वहीं गिर पड़े। कई लोग नींद में ही दम तोड़ गए। सरकारी आंकड़ों में शुरुआती कुछ घंटों में 3000 से ज्यादा लोगों की मौत बताई गई, लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों और कई संगठनों के अनुसार मौतों का असली आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा था। बाद के वर्षों में पीड़ितों की कुल संख्या करीब 22 हजार मौतों तक पहुंच गई और 1.5 लाख से अधिक लोग स्थायी रूप से प्रभावित हुए। जब लोग किसी तरह अस्पताल पहुंचे, तो डॉक्टरों के लिए यह स्थिति बिल्कुल नई थी। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि ऐसी गैस के असर का इलाज कैसे किया जाए। सिर्फ पहले दो दिनों में लगभग 50 हजार लोगों का इलाज किया गया, लेकिन साधन कम पड़ गए और हालात बेहद गंभीर थे।
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दशकों बाद भी दर्द खत्म नहीं हुआ
गैस रिसाव के कुछ घंटे बाद शहर को सुरक्षित घोषित कर दिया गया था, लेकिन असलियत इससे बहुत अलग थी। समय बीतने के साथ पता चला कि फैक्टरी के आसपास की मिट्टी और पानी धीरे-धीरे और ज्यादा दूषित होते गए। कुछ इलाकों में हैंडपंप का पानी कई वर्षों तक जहरीला रहा। कई रिपोर्टस बताती हैं कि गैस का असर आज भी नई पीढ़ी तक दिखाई दे रहा है। कई बच्चों में जन्मजात बीमारियां, कैंसर और अन्य गंभीर समस्याएं पाई जाती हैं। 41 वर्ष बीत जाने के बाद भी हादसे से प्रभावित लोगों का बड़ा हिस्सा सही इलाज, मुआवजा और इंसाफ का इंतज़ार कर रहा है। यह घटना सिर्फ एक रात का हादसा नहीं थी,बल्कि एक ऐसा जख्म है जिसके निशान आज भी भोपाल की गलियों में दिखाई देते हैं।

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पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास की स्थिति बेहद खराब
भोपाल गैस पीड़ितों की दशा पर बात करते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन से जुड़ी रचना ढींगरा ने कहा कि मौजूदा शासन में पीड़ितों के इलाज और आर्थिक मदद की स्थिति काफी गिर गई है। रचना के अनुसार 2008 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने लंबे समय के पुनर्वास के लिए एक विशेष आयोग बनाने की अनुमति दे दी थी, लेकिन उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ने से रोक दिया। उनका कहना है कि इस फैसले का असर आज भी साफ दिखता है-बहुत से प्रभावित परिवार अब तक ठीक इलाज और आर्थिक सहारे से वंचित हैं, और अगली पीढ़ी भी इन कठिनाइयों का सामना कर रही है।

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