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Mandsaur News: उफनती चंबल नदी को पार करके स्कूल पहुंच रहे ये स्टूडेंट्स,शिक्षकों का स्टांप पर ये कैसा करारनामा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मंदसौर
Published by: मंदसौर ब्यूरो
Updated Sun, 31 Aug 2025 09:33 PM IST
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सार
स्कूल तक पहुंचने के लिए हर दिन उफनती चंबल नदी को पार करके जाना पड़ता है। आई नदी में नाव में सवार छात्र-छात्राओं की सांसे तेज धार में थम सी जाती हैं। जान का खतरा बना रहता है। मंदसौर के इन छात्रों के परिजनों ने मदद की गुहार लगाई है सरकार से। लेकिन शिक्षकों ने अपने बचाव को लेकर स्टांप पेपर पर जो करारनामा किया है, वह काफी अजीब है। उस पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

नाव में बैठकर चंबल नदी पार करते छात्र छात्राएं
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विस्तार
मंदसौर और नीमच जिले की सीमा से होकर बह रही चंबल नदी के किनारे बसे मल्हारगढ़ तहसील के आंतरी खुर्द (छोटी आंतरी) से करीब 25 से अधिक छात्र-छात्राएं एक घंटे नाव का सफर तयकर स्कूल पहुंचते हैं। नीमच जिले की मनासा तहसील के आंतरी बुज़ुर्ग (बड़ी आंतरी) शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्याल पढ़ाई के लिए रोजाना आते हैं। तीन किलोमीटर चौड़ी और खतरनाक नदी को नाव से पार करने वाले स्कूली छात्र-छात्राओं की सुरक्षा का जिम्मा लेने की बजाय सरकारी स्कूल प्रबंधन ने अभिभावकों से स्टांप पेपर पर लिखवा लिया है कि 'यदि नाव के सफर के दौरान कोई हादसा होता है तो उसकी जिम्मेदारी विद्यालय की नहीं होगी।'
अपने बचाव के लिए स्कूल के शिक्षकों ने स्टांप पर करारनामा किया है कि यदि स्कूल आने के वक्त कोई हादसा होता है, उसके लिए हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। इस करारनामें के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। आभिभावक नाराजगी जता रहे हैं।
हर सुबह ये मासूम बच्चे अपने छोटे-छोटे हाथों में बस्ता और दिल में डर लिए नाव पर सवार होते हैं। चंबल की लहरों को चीरकर स्कूल की ओर निकलते हैं। बारिश के दिनों में जब चंबल उफान पर होती है, तो यह सफर और भी डरावना हो जाता है। तेज़ धार, गहराई और मगरमच्छों के बीच यह संघर्ष किसी भी संवेदनशील इंसान की आत्मा को हिला देने के लिए काफी है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि विद्यालय प्रबंधन ने बच्चों के अभिभावकों से एक स्टांप पेपर पर लिखवाया है कि यदि नाव के सफर के दौरान कोई हादसा होता है, तो उसकी जिम्मेदारी विद्यालय की नहीं होगी।
कभी-कभी डीजल खत्म हो जाता है या इंजन खराब हो जाता है। उस समय नदी के बीचों-बीच घंटों तक नाव रुक जाती है और बच्चे घबराकर भगवान का नाम जपने लगते हैं। सोचिए, जिन माता-पिता के बच्चे कॉन्वेंट स्कूल की बस से जाते हैं, अगर बस का टायर पंचर हो जाए, तो घर वाले कितनी बेचैनी से फोन पर फोन मिलाते हैं। वहीं, इन गांव के अभिभावकों की क्या हालत होती होगी? जब उन्हें खबर मिलती होगी कि उनकी बेटियों की नाव बीच नदी में फंस गई है। नाव पर सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं है। न तो लाइफ जैकेट्स हैं और न ही कोई बचाव इंतजाम। प्रशासन ने कभी इन नावों का फिटनेस सर्टिफिकेट चेक किया है या नहीं, यह भी बड़ा सवाल है। यदि नाव पलट जाए तो बच्चों की जान कौन बचाएगा ? चंबल नदी में बड़ी संख्या में मगरमच्छ भी हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि आंतरी माता धाम के कारण यह इलाका धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। लेकिन श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाने वाले तंत्र ने यहां के बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा की मूलभूत समस्या को आज तक अनदेखा किया। बेटियों ने कहा कि हम मुख्यमंत्रीजी से अपील करते हैं कि हमारे लिए बस की व्यवस्था की जाए या नदी पर पुल बना दिया जाए। आज जब पूरे देश में “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे लगाए जाते हैं, तब इन बेटियों की यह हालत हर किसी को शर्मसार कर देने वाली है। क्या बच्चों की जिंदगी केवल शोक संदेश और मुआवजे तक सीमित हो गई है? क्या उनकी जान की कीमत सिर्फ कागज़ पर लिखे स्टांप जितनी है?
यह खबर केवल आंतरी खुर्द और आंतरी बुज़ुर्ग गांव की नहीं है। यह पूरे अंचल और देश की उन लाखों बेटियों का सवाल है जो शिक्षा पाने के लिए हर दिन विषम परिस्थितियों से जूझ रही हैं। यह खबर हमें आईना दिखाती है कि हमारे समाज और शासन के वादों और जमीनी हकीकत के बीच कितना बड़ा फासला है। अब यह सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह केवल घोषणाओं तक सीमित न रहे, बल्कि इन बेटियों की पुकार को सुने और ठोस कदम उठाए।
सुरक्षा इंतजामों का अभाव
नाव पर बच्चों के लिए लाइफ जैकेट्स तक उपलब्ध नहीं हैं।
नावों का फिटनेस सर्टिफिकेट प्रशासन ने कभी जांचा ही नहीं।
न तो आपातकालीन बचाव दल होता है और न ही नाव पर सुरक्षा गाइड।
हादसे की स्थिति में बच्चे पूरी तरह भगवान भरोसे छोड़ दिए जाते हैं।
चंबल नदी में बड़ी संख्या में मगरमच्छ मौजूद हैं, ऐसे में लाइफ जैकेट्स भी हों, तो भी बच्चों की सुरक्षा पर सवाल बना रहेगा।
सवाल जो सरकार को जवाब देना होगा
जब वाहनों का फिटनेस सर्टिफिकेट हर साल जरूरी है तो नावों का क्यों नहीं?
बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा स्कूल प्रबंधन ने क्यों नहीं लिया ?
अभिभावकों से स्टांप लिखवाकर क्या सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है?
क्या बच्चों की जिंदगी की कीमत केवल “मुआवजे” और “संवेदना संदेशों” तक सीमित है?
चंबल नदी पर स्थायी पुल का निर्माण अब तक क्यों नहीं हुआ?
ग्रामीणों की मांग, समस्या का हो समाधान
तुरंत प्रभाव से सुरक्षित बस सेवा शुरू की जाए।
नदी पार करने के लिए स्थायी पुल का निर्माण किया जाए, ताकि पूरे अंचल को लाभ मिले।
नावों की फिटनेस जांच और सुरक्षा इंतजाम को अनिवार्य किया जाए।
स्कूल प्रबंधन से स्टांप लिखवाने जैसी अमानवीय प्रक्रिया पर रोक लगे।
प्राचार्य बोले - स्कूल प्रबंधन की कोई जवाबदारी नहीं
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आंतरी बुजुर्ग (बडी आंतरी) प्राचार्य युवराज चन्देल का कहना है कि बच्चे प्रतिदिन नाव से आते है, सुरक्षा की कोई व्यवस्था नही है। भगवान करे कोई हादसा न हो, लेकिन हमने बच्चों के माता-पिता से स्टांप पर लिखवा लिया है कि कोई हादसा होता है तो विद्यालय प्रबंधन की कोई जवाबदारी नही रहेगी।
ये भी पढ़ें- Betul News: गूगल मैप देखकर रास्ता पार करना पड़ा भारी, तेज बहाव में बहने लगी कार; मुश्किल से बची युवकों की जान
बीईओ बोले, परिवहन की व्यवस्था नहीं
जब मल्हारगढ़ ब्लाक शिक्षा अधिकारी बद्रीलाल चौहान से इस संबंध में चर्चा की तो उनका कहना था कि आंतरी के बच्चे उनकी सुविधा से नीमच जिले में पढ़ने जाते है। सरकारी स्कूल के बच्चों को सांदीपनी स्कूल के अलावा परिवहन की कोई व्यवस्था नही है।
ये भी पढ़ें- Indore News: बारिश ने खोली विकास की पोल, घरों में घुसा कीचड़, रातभर मदद की गुहार लगाते रहे लोग

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अपने बचाव के लिए स्कूल के शिक्षकों ने स्टांप पर करारनामा किया है कि यदि स्कूल आने के वक्त कोई हादसा होता है, उसके लिए हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। इस करारनामें के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। आभिभावक नाराजगी जता रहे हैं।
हर सुबह ये मासूम बच्चे अपने छोटे-छोटे हाथों में बस्ता और दिल में डर लिए नाव पर सवार होते हैं। चंबल की लहरों को चीरकर स्कूल की ओर निकलते हैं। बारिश के दिनों में जब चंबल उफान पर होती है, तो यह सफर और भी डरावना हो जाता है। तेज़ धार, गहराई और मगरमच्छों के बीच यह संघर्ष किसी भी संवेदनशील इंसान की आत्मा को हिला देने के लिए काफी है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि विद्यालय प्रबंधन ने बच्चों के अभिभावकों से एक स्टांप पेपर पर लिखवाया है कि यदि नाव के सफर के दौरान कोई हादसा होता है, तो उसकी जिम्मेदारी विद्यालय की नहीं होगी।
कभी-कभी डीजल खत्म हो जाता है या इंजन खराब हो जाता है। उस समय नदी के बीचों-बीच घंटों तक नाव रुक जाती है और बच्चे घबराकर भगवान का नाम जपने लगते हैं। सोचिए, जिन माता-पिता के बच्चे कॉन्वेंट स्कूल की बस से जाते हैं, अगर बस का टायर पंचर हो जाए, तो घर वाले कितनी बेचैनी से फोन पर फोन मिलाते हैं। वहीं, इन गांव के अभिभावकों की क्या हालत होती होगी? जब उन्हें खबर मिलती होगी कि उनकी बेटियों की नाव बीच नदी में फंस गई है। नाव पर सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं है। न तो लाइफ जैकेट्स हैं और न ही कोई बचाव इंतजाम। प्रशासन ने कभी इन नावों का फिटनेस सर्टिफिकेट चेक किया है या नहीं, यह भी बड़ा सवाल है। यदि नाव पलट जाए तो बच्चों की जान कौन बचाएगा ? चंबल नदी में बड़ी संख्या में मगरमच्छ भी हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि आंतरी माता धाम के कारण यह इलाका धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। लेकिन श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाने वाले तंत्र ने यहां के बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा की मूलभूत समस्या को आज तक अनदेखा किया। बेटियों ने कहा कि हम मुख्यमंत्रीजी से अपील करते हैं कि हमारे लिए बस की व्यवस्था की जाए या नदी पर पुल बना दिया जाए। आज जब पूरे देश में “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे लगाए जाते हैं, तब इन बेटियों की यह हालत हर किसी को शर्मसार कर देने वाली है। क्या बच्चों की जिंदगी केवल शोक संदेश और मुआवजे तक सीमित हो गई है? क्या उनकी जान की कीमत सिर्फ कागज़ पर लिखे स्टांप जितनी है?
यह खबर केवल आंतरी खुर्द और आंतरी बुज़ुर्ग गांव की नहीं है। यह पूरे अंचल और देश की उन लाखों बेटियों का सवाल है जो शिक्षा पाने के लिए हर दिन विषम परिस्थितियों से जूझ रही हैं। यह खबर हमें आईना दिखाती है कि हमारे समाज और शासन के वादों और जमीनी हकीकत के बीच कितना बड़ा फासला है। अब यह सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह केवल घोषणाओं तक सीमित न रहे, बल्कि इन बेटियों की पुकार को सुने और ठोस कदम उठाए।
सुरक्षा इंतजामों का अभाव
नाव पर बच्चों के लिए लाइफ जैकेट्स तक उपलब्ध नहीं हैं।
नावों का फिटनेस सर्टिफिकेट प्रशासन ने कभी जांचा ही नहीं।
न तो आपातकालीन बचाव दल होता है और न ही नाव पर सुरक्षा गाइड।
हादसे की स्थिति में बच्चे पूरी तरह भगवान भरोसे छोड़ दिए जाते हैं।
चंबल नदी में बड़ी संख्या में मगरमच्छ मौजूद हैं, ऐसे में लाइफ जैकेट्स भी हों, तो भी बच्चों की सुरक्षा पर सवाल बना रहेगा।
सवाल जो सरकार को जवाब देना होगा
जब वाहनों का फिटनेस सर्टिफिकेट हर साल जरूरी है तो नावों का क्यों नहीं?
बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा स्कूल प्रबंधन ने क्यों नहीं लिया ?
अभिभावकों से स्टांप लिखवाकर क्या सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है?
क्या बच्चों की जिंदगी की कीमत केवल “मुआवजे” और “संवेदना संदेशों” तक सीमित है?
चंबल नदी पर स्थायी पुल का निर्माण अब तक क्यों नहीं हुआ?
ग्रामीणों की मांग, समस्या का हो समाधान
तुरंत प्रभाव से सुरक्षित बस सेवा शुरू की जाए।
नदी पार करने के लिए स्थायी पुल का निर्माण किया जाए, ताकि पूरे अंचल को लाभ मिले।
नावों की फिटनेस जांच और सुरक्षा इंतजाम को अनिवार्य किया जाए।
स्कूल प्रबंधन से स्टांप लिखवाने जैसी अमानवीय प्रक्रिया पर रोक लगे।
प्राचार्य बोले - स्कूल प्रबंधन की कोई जवाबदारी नहीं
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आंतरी बुजुर्ग (बडी आंतरी) प्राचार्य युवराज चन्देल का कहना है कि बच्चे प्रतिदिन नाव से आते है, सुरक्षा की कोई व्यवस्था नही है। भगवान करे कोई हादसा न हो, लेकिन हमने बच्चों के माता-पिता से स्टांप पर लिखवा लिया है कि कोई हादसा होता है तो विद्यालय प्रबंधन की कोई जवाबदारी नही रहेगी।
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बीईओ बोले, परिवहन की व्यवस्था नहीं
जब मल्हारगढ़ ब्लाक शिक्षा अधिकारी बद्रीलाल चौहान से इस संबंध में चर्चा की तो उनका कहना था कि आंतरी के बच्चे उनकी सुविधा से नीमच जिले में पढ़ने जाते है। सरकारी स्कूल के बच्चों को सांदीपनी स्कूल के अलावा परिवहन की कोई व्यवस्था नही है।
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