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Rewa: 'एक चश्मा, एक कहानी', 34 साल बाद भी सुरक्षित राजीव गांधी की अमूल्य धरोहर, सहेजे है कई राजनीतिक यादें
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, रीवा
Published by: रीवा ब्यूरो
Updated Fri, 22 Aug 2025 02:10 PM IST
सार
रीवा (मध्यप्रदेश) में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का चश्मा अब भी सुरक्षित रखा गया है। वर्ष 1991 के चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी ने इसे एक कांग्रेस कार्यकर्ता को स्मृति स्वरूप भेंट किया था। तब से यह चश्मा बैंक लॉकर में सुरक्षित है। यह केवल एक वस्तु नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं के लिए विश्वास, आत्मीयता और राजनीति में सादगी का प्रतीक बन चुका है।
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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का चश्मा 34 साल बाद भी सुरक्षित
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
राजनीति में नेताओं की यादों से जुड़ी कई कहानियां समय बीतने के बाद भी जिंदा रहती हैं। ऐसा ही एक किस्सा मध्यप्रदेश के रीवा शहर से जुड़ा है, जहां पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एक निशानी अब भी सुरक्षित रखी गई है। यह कोई आम वस्तु नहीं, बल्कि उनका चश्मा है, जिसे एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने करीब 34 साल पहले चुनावी दौरे के दौरान उनसे स्मृति के रूप में पाया था।
मामला वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव अभियान का है। राजीव गांधी जब रीवा पहुंचे थे, तब कांग्रेस कार्यकर्ता आशीष शर्मा ने उनसे स्मृति के तौर पर कुछ देने का अनुरोध किया। कार्यकर्ता की भावनाओं का सम्मान करते हुए राजीव गांधी ने मुस्कुराकर अपना चश्मा उतारकर उन्हें भेंट कर दिया। यह पल उस कार्यकर्ता के लिए जीवनभर की अमूल्य याद बन गया।
तब से यह चश्मा पूरी सावधानी के साथ संभालकर रखा गया है। इसे घर में नहीं, बल्कि बैंक लॉकर में सुरक्षित रखा गया है ताकि समय और परिस्थितियों का असर उस पर न हो। कार्यकर्ता का कहना है कि यह चश्मा उनके लिए सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि राजीव गांधी के साथ जुड़े विश्वास और आत्मीयता का प्रतीक है। इस घटना का ज़िक्र आज भी रीवा के राजनीतिक गलियारों और आम लोगों के बीच होता रहता है। लोगों का मानना है कि साधारण-सी दिखने वाली वस्तु भी कई बार ऐतिहासिक धरोहर बन जाती है और इतिहास को और अधिक जीवंत कर देती है।
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राजीव गांधी की सादगी और सहज स्वभाव का यह उदाहरण आज भी कार्यकर्ताओं के दिलों में ताजा है। चश्मा केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि उस दौर की निशानी है, जब नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच आत्मीय रिश्ते हुआ करते थे। आज यह चश्मा रीवा की पहचान और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए गर्व का प्रतीक माना जाता है। आने वाली पीढ़ियों के लिए यह केवल एक चश्मा नहीं, बल्कि विश्वास, आत्मीयता और इतिहास का ऐसा दस्तावेज़ है, जो हमेशा याद दिलाएगा कि राजनीति केवल सत्ता की दौड़ नहीं, बल्कि रिश्तों और यादों का भी हिस्सा है।
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मामला वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव अभियान का है। राजीव गांधी जब रीवा पहुंचे थे, तब कांग्रेस कार्यकर्ता आशीष शर्मा ने उनसे स्मृति के तौर पर कुछ देने का अनुरोध किया। कार्यकर्ता की भावनाओं का सम्मान करते हुए राजीव गांधी ने मुस्कुराकर अपना चश्मा उतारकर उन्हें भेंट कर दिया। यह पल उस कार्यकर्ता के लिए जीवनभर की अमूल्य याद बन गया।
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तब से यह चश्मा पूरी सावधानी के साथ संभालकर रखा गया है। इसे घर में नहीं, बल्कि बैंक लॉकर में सुरक्षित रखा गया है ताकि समय और परिस्थितियों का असर उस पर न हो। कार्यकर्ता का कहना है कि यह चश्मा उनके लिए सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि राजीव गांधी के साथ जुड़े विश्वास और आत्मीयता का प्रतीक है। इस घटना का ज़िक्र आज भी रीवा के राजनीतिक गलियारों और आम लोगों के बीच होता रहता है। लोगों का मानना है कि साधारण-सी दिखने वाली वस्तु भी कई बार ऐतिहासिक धरोहर बन जाती है और इतिहास को और अधिक जीवंत कर देती है।
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राजीव गांधी की सादगी और सहज स्वभाव का यह उदाहरण आज भी कार्यकर्ताओं के दिलों में ताजा है। चश्मा केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि उस दौर की निशानी है, जब नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच आत्मीय रिश्ते हुआ करते थे। आज यह चश्मा रीवा की पहचान और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए गर्व का प्रतीक माना जाता है। आने वाली पीढ़ियों के लिए यह केवल एक चश्मा नहीं, बल्कि विश्वास, आत्मीयता और इतिहास का ऐसा दस्तावेज़ है, जो हमेशा याद दिलाएगा कि राजनीति केवल सत्ता की दौड़ नहीं, बल्कि रिश्तों और यादों का भी हिस्सा है।