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MP News: गर्भवती होकर भी लीला साहू का संघर्ष जारी, दो मौतों के बाद जनम-मरण का प्रश्न बन गईं सीधी की सड़कें
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सीधी
Published by: सीधी ब्यूरो
Updated Tue, 08 Jul 2025 09:52 PM IST
सार
गांव की लीला साहू पिछले एक साल से सड़क निर्माण की मांग कर रही हैं। हाल ही में खराब रास्तों के कारण असमय मौतों ने गांव को झकझोर दिया है। ममता को समय पर अस्पताल न पहुंचाने के कारण अत्यधिक रक्तस्राव से जान गंवानी पड़ी, जबकि सीमा का नवजात शिशु उचित देखभाल के अभाव में मर गया।
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सड़कों के लिए आवाज उठातीं सीधी की महिलाएं।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मध्यप्रदेश के सीधी जिले के रामपुर नैकिन जनपद पंचायत के खड्डी खुर्द गांव में सड़क निर्माण की मांग अब केवल विकास का मुद्दा नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु का प्रश्न बन गई है। इस गांव की निवासी लीला साहू पिछले एक साल से अधिक समय से पक्की सड़क के लिए संघर्ष कर रही हैं। नौ महीने की गर्भवती होने के बावजूद, उन्होंने प्रशासन और नेताओं को बार-बार चेताया, लेकिन अब यह चेतावनी एक दिल दहला देने वाली हकीकत में बदल गई है।
गांव की गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने में हो रही परेशानियों ने हाल ही में दो परिवारों को गहरा सदमा दिया है। खड्डी क्षेत्र की ममता साहू, जो नौ माह की गर्भवती थीं, समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के कारण असमय मौत की शिकार हो गईं। अत्यधिक रक्तस्राव के कारण न तो उन्हें बचाया जा सका और न ही उनके गर्भ में पल रहे शिशु को। डॉक्टरों ने पुष्टि की कि समय पर चिकित्सा सुविधा मिल जाती, तो उनकी जान बच सकती थी।
दूसरी दर्दनाक घटना सीमा साहू की है, जिन्होंने करीब 15 दिन पहले अपने बच्चे को जन्म दिया, लेकिन बच्चे की मौत हो गई। खराब रास्तों के कारण उसे समय पर उचित देखभाल नहीं मिल सकी। इन दोनों घटनाओं ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया है और लीला साहू के आंदोलन को और भी मजबूती दी है।
कीचड़ और खस्ताहाल सड़कें बनी जान की दुश्मन
खड्डी खुर्द गांव की सड़कें बरसात में दलदल में तब्दील हो जाती हैं। न तो कोई वाहन वहां तक पहुंच पाता है, न ही एम्बुलेंस जैसी आपात सेवाएं। गांव में कुल आठ गर्भवती महिलाएं हैं, जो प्रसव की कगार पर हैं और हर एक की जान खतरे में है। सड़क की मांग को लेकर लीला साहू ने पहले 2024 में एक वीडियो के माध्यम से आवाज उठाई थी, जिसमें उन्होंने स्थानीय नेताओं पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया था। वीडियो में उन्होंने सवाल उठाया, “हमने 29 सीटें दिलाईं, अब हमारी सड़क तो बनवा दीजिए।” यह वीडियो देशभर में वायरल हुआ और लीला का आंदोलन राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया।
ये भी पढ़ें- इंदौर में भाजपा की नई राजनीतिक तिकड़ी की चर्चा, प्रदेशाध्यक्ष के सामने भी दिखाई ताकत
प्रशासन और नेताओं के वादे, पर जमीन पर बदलाव नहीं
वीडियो के बाद क्षेत्रीय सांसद डॉ. राजेश मिश्रा और पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल ने सड़क निर्माण का आश्वासन दिया। पटेल ने गांव का दौरा भी किया, लेकिन महीनों बीत जाने के बावजूद न तो सड़क बनी और न ही किसी निर्माण कार्य की शुरुआत हुई। दूसरी तरफ, ग्रामीणों को हर रोज जान जोखिम में डालकर जीवन यापन करना पड़ रहा है।
सोशल मीडिया से निकली आवाज, बना जनांदोलन
लीला साहू की वीडियो अपील और संघर्ष की कहानी सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से वायरल हुई। 2025 में उन्होंने एक और वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “जो नेता सड़क नहीं बनवा सकते, उन्हें डूबकर मर जाना चाहिए।” इस बयान ने सोशल मीडिया पर तूफान ला दिया। विरोधियों ने इसे राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन आम जनता ने लीला के साहस को सलाम किया।
ये भी पढ़ें- सीएम यादव और BJP प्रदेश अध्यक्ष खंडेलवाल ने की अमित शाह से मुलाकात, विकास योजनाओं पर चर्चा हुई
स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार सब पर असर
सड़क की यह कमी सिर्फ स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि बच्चों की शिक्षा, युवाओं के रोज़गार और पूरे गांव के आर्थिक विकास में बाधा बन रही है। नजदीकी सिविल अस्पताल रामपुर नैकिन तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर की दुर्गम यात्रा करनी पड़ती है। डॉक्टरों के अनुसार समय पर अस्पताल पहुंचने में देरी कई जिंदगियों पर भारी पड़ सकती है। एम्बुलेंस न पहुंच पाने के कारण मरीजों को चारपाई पर उठा कर ले जाना पड़ता है, जिससे हालत और बिगड़ जाती है।
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दूसरी दर्दनाक घटना सीमा साहू की है, जिन्होंने करीब 15 दिन पहले अपने बच्चे को जन्म दिया, लेकिन बच्चे की मौत हो गई। खराब रास्तों के कारण उसे समय पर उचित देखभाल नहीं मिल सकी। इन दोनों घटनाओं ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया है और लीला साहू के आंदोलन को और भी मजबूती दी है।
कीचड़ और खस्ताहाल सड़कें बनी जान की दुश्मन
खड्डी खुर्द गांव की सड़कें बरसात में दलदल में तब्दील हो जाती हैं। न तो कोई वाहन वहां तक पहुंच पाता है, न ही एम्बुलेंस जैसी आपात सेवाएं। गांव में कुल आठ गर्भवती महिलाएं हैं, जो प्रसव की कगार पर हैं और हर एक की जान खतरे में है। सड़क की मांग को लेकर लीला साहू ने पहले 2024 में एक वीडियो के माध्यम से आवाज उठाई थी, जिसमें उन्होंने स्थानीय नेताओं पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया था। वीडियो में उन्होंने सवाल उठाया, “हमने 29 सीटें दिलाईं, अब हमारी सड़क तो बनवा दीजिए।” यह वीडियो देशभर में वायरल हुआ और लीला का आंदोलन राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया।
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वीडियो के बाद क्षेत्रीय सांसद डॉ. राजेश मिश्रा और पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल ने सड़क निर्माण का आश्वासन दिया। पटेल ने गांव का दौरा भी किया, लेकिन महीनों बीत जाने के बावजूद न तो सड़क बनी और न ही किसी निर्माण कार्य की शुरुआत हुई। दूसरी तरफ, ग्रामीणों को हर रोज जान जोखिम में डालकर जीवन यापन करना पड़ रहा है।
सोशल मीडिया से निकली आवाज, बना जनांदोलन
लीला साहू की वीडियो अपील और संघर्ष की कहानी सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से वायरल हुई। 2025 में उन्होंने एक और वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “जो नेता सड़क नहीं बनवा सकते, उन्हें डूबकर मर जाना चाहिए।” इस बयान ने सोशल मीडिया पर तूफान ला दिया। विरोधियों ने इसे राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन आम जनता ने लीला के साहस को सलाम किया।
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स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार सब पर असर
सड़क की यह कमी सिर्फ स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि बच्चों की शिक्षा, युवाओं के रोज़गार और पूरे गांव के आर्थिक विकास में बाधा बन रही है। नजदीकी सिविल अस्पताल रामपुर नैकिन तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर की दुर्गम यात्रा करनी पड़ती है। डॉक्टरों के अनुसार समय पर अस्पताल पहुंचने में देरी कई जिंदगियों पर भारी पड़ सकती है। एम्बुलेंस न पहुंच पाने के कारण मरीजों को चारपाई पर उठा कर ले जाना पड़ता है, जिससे हालत और बिगड़ जाती है।

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