Interesting Facts: हम सभी अपने दैनिक जीवन में किसी न किसी शहर का नाम सुनते हैं। कम से कम उस जगह का नाम तो सुनते ही हैं जिस शहर में हम रहते हैं या फिर जो शहर हमारे रिहायशी इलाके से बहुत नजदीक होता है। चाहे हम समाचार सुन रहे हों, रेडियो सुन रहे हों, टीवी देख रहे हों या फिर किसी से बातचीत कर रहे हों, हम हमेशा किसी न किसी शहर का नाम जरूर सुनते हैं। खैर, क्या अपने कभी ध्यान दिया है कि कुछ जगहों के नाम के अंत में प्रयोग होने वाले प्रत्यय एक जैसे होते हैं। उदाहरण के लिए गाजियाबाद, इलाहाबाद, फर्रुखाबाद, हैदराबाद, मुरादाबाद आदि, इन नामों की खास बात ये है कि इनके नाम के अंत में 'आबाद' लगा हुआ है।
Interesting Fact: गाजियाबाद, हैदराबाद... क्यों शहरों के नाम में जुड़ा होता है 'आबाद', जानें इसका मतलब
ऐसा नहीं है कि सिर्फ आबाद शब्द से अंत होने वाले ही एक जैसे शहरों के नाम होते हैं। ऐसे और भी कई प्रत्यय हैं जो कई शहरों के नाम के अंत में इस्तेमाल किए जाते हैं। जैसे कानपुर, गोरखपुर में 'पुर', आजमगढ़ और अलीगढ़ में 'गढ़'। क्या आपने कभी सोचा है कि इन शहरों के अंत में एक जैसे प्रत्यय क्यों होते हैं? दरअसल, इन सभी शहरों के नाम में इस्तेमाल होने वाले शब्दों का खास अर्थ होता है, हर प्रत्यय का अलग अर्थ होता है। आइए आज के इस लेख में इसी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
'आबाद' का क्या है अर्थ?
गाजियाबाद, इलाहाबाद, फर्रुखाबाद, हैदराबाद, मुरादाबाद जैसे तमाम अन्य भारतीय शहरों का नाम 'आबाद' के साथ जुड़ा हुआ है। यहां तक पाकिस्तान में इस्लामाबाद और अफगानिस्तान में जलालाबाद भी है। दरअसल इन शहरों के नाम के पीछे जो आबाद प्रत्यय लगा हुआ है वो एक फारसी शब्द है। इस शब्द में 'आब' का मतलब पानी होता है। प्राचीन काल में जब सभ्यताओं की शुरुआत हो रही थी, तब लोग उन जगहों पर रहना पसंद करते थे जहां पानी आसानी से मिल सकता था। इसलिए प्राचीन समय में जब किसी राजा को कोई शहर बसाना होता था तो अपने पसंदीदा नाम के अंत मे 'आबाद' जोड़कर उस जगह का नामकरण किया जाता था।
पुर का क्या है मतलब?
गोरखपुर, सहारनपुर, कानपुर, नागपुर, रायपुर जैसे तमाम अन्य भारतीय शहरों के नाम के अंत मे पुर शब्द जुड़ा हुआ है। असल में 'पुर' शब्द का संबंध वेदों से है। हमारे सबसे पुराना वेद ऋग्वेद में पुर या पुरा का कई बार जिक्र देखने को मिलता है। ऋग्वेद में पुर शब्द उन जगहों के लिए इस्तेमाल होता था जो या तो कोई शहर थे या किला थे। अब सोचिए ये शब्द कितना पुराना है। ऋग्वेद लगभग 1500 ईसा पूर्व का ग्रंथ है। यानी की आज के करीब 3500 साल पुराना ग्रंथ है।
प्राचीन काल में ऐसे कई शहर थे जिनके नाम के अंत में पुर लगा होता था। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है कि महाभारत में हस्तिनापुर। अब वो समय भले ही बीत गया हो लेकिन इस परंपरा का पालन आज भी जारी है। इसी कड़ी में आगे जब हम मध्यकालीन भारत में देखते हैं तो जब किसी राजा को कोई शहर बसाना होता था, तो अपने नाम के आगे अक्सर पुर लगा देते थे। जैसे राजस्थान के जयपुर को राजा जयसिंह ने बसाया था तो उसका जयपुर पड़ गया।