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Mother’s Day Special: शहीद की मां ने कहा- अगर कमजोर पड़ीं, तो कौन करेगा सरहद की निगहबानी

मोहित धुपड़/अमर उजाला, चंडीगढ़ Updated Sun, 14 May 2017 09:31 AM IST
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Eyes of exhausted of mother's in memory of martyred son
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बेटे का गम क्या होता है, ये शहीद की मां से ज्यादा कोई नहीं बता सकता। जिसने देश के लिए बेटा खोया, उनका हौसला देखिए
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सरहदों को सुरक्षित रखना उन शहीदों का फर्ज था और अपने फर्ज पर वे फना हो गए। तिरंगे में लिपटकर घरों तक पहुंचे। परिवार टूटकर बिखर गया, लेकिन आज इन शूरवीरों की वीर माताओं का हौसला नहीं टूटा। इन माताओं का कहना है कि आज देश में जो हालात बने हुए हैं, उसे देखते हुए यदि हम जैसी मां कमजोर पड़ीं तो सरहदों की निगहबानी कौन करेगा?  वे हर जन्म में ऐसे सपूत चाहती हैं, जिन्हें वह देश पर लुटा सकें।
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शहीद कैप्टन सौरभ कालिया की मां विजय कालिया को वो पल अच्छे से याद है जब अमृतसर स्टेशन पर विदाई लेते हुए सौरभ ने उनके पांव छुए और कहा था, मां एक दिन ऐसा काम कर जाऊंगा कि जमाना आपको भी याद रखेगा, वही हुआ। सौरभ कारगिल का पहला शहीद बन गया। मेरा बेटा शहीद हो गया, यह सोचकर मैं डर जाऊं, बिखर जाऊं, ऐसा हो नहीं सकता। हर बेटे में सौरभ को देखती हूं।
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शहीद गरुड़ कमांडो गुरसेवक की मां अमरीक कौर के हौसले को भी सलाम है। उनका कहना है कि पठानकोट आतंकी हमले में बेटे ने आतंकियों को मारा और फिर एक आतंकी ने गुरसेवक को धोखे से शिकार बनाया। शूरवीर तो जंग में ही मरते हैं, उनके लिए गम कैसा? गुरसेवक की शहादत को देश हमेशा याद रखेगा। मिशन पर जाने से पहले गुरसेवक ने मुझसे फोन कर कहा था, ‘मां इस हफ्ते शायद घर न आ सकूं...।’ लेकिन मुझे क्या पता था, वह कभी लौटकर नहीं आएगा।
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सूबेदार अतर सिंह की पत्नी निर्मल कौर का कहना है कि 14 मई 2002, सुबह साढ़े छह बजे। पति सूबेदार अतर सिंह मुल्तानी सांबा सेक्टर कालूचक्क में ड्यूटी पर तैनात थे और मैं क्वार्टर में बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर रही थी। तभी आतंकियों की टोली क्वार्टर में घुसी और जवानों की पत्नियाें और बच्चों पर गोलियां बरसा दीं। मुझे भी गोली लगी और मेरे सामने बेटी अमनदीप कौर (15) और बेटा जतिंद्र सिंह (13) दोनों वहीं ढेर हो गए। आज बच्चों की कमी बहुत खलती है, लेकिन मेरे और बच्चे होते तो उन्हें भी बिना हिचक देश पर लुटा देती।
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