वर्ष 1984 में सियाचिन की चोटी पर गई यूनिट में कई जवानों के पार्थिव शरीर उनके घरों तक पहुंच चुके हैं। अब भी दो परिवार ऐसे हैं जो उम्मीदों के सहारे अपनों का इंतजार कर रहे हैं। शहीद लांस नायक चंद्रशेखर हर्बोला के साथ नायक दया किशन जोशी और सिपाही हयात सिंह भी शहीद हुए थे।
हर्बोला के साथ सियाचिन की चोटी पर जा रही कंपनी में सिपाही हयात सिंह भी शामिल थे। उनकी वीरांगना बच्ची देवी ने बताया कि उनके घर पर पहुंचे दो टेलीग्राम ने उनकी जिंदगी को सूना कर दिया था। पहले टेलीग्राम में सैन्य अधिकारियों ने उनके पति समेत 20 जवानों के लापता होने की सूचना दी थी। करीब एक महीने बाद पहुंचे दूसरे टेलीग्राम को पढ़ने के बाद तो मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था। उसमें उनके पति के शहीद होने की खबर थी लेकिन पार्थिव शरीर मिलने की पुष्टि नहीं हुई थी।
हयात 24 साल की उम्र में ही हो गए शहीद
बच्ची देवी ने बताया कि जब सिपाही हयात सिंह शहीद हुए थे तब उनकी उम्र 24 साल थी और उनकी नौकरी को पांच साल छह महीने ही हुए थे। उस समय उनका बेटा राजेंद्र तीन साल का था। बेटी गर्भ में थी। पिता की शहादत के पांच माह बाद पुष्पा इस दुनिया में आई थी। बच्ची देवी ने बताया कि वह मूल रूप से रीठा साहिब की हैं। 16 साल से हल्द्वानी के भट्ट विहार स्थित कृष्णा कॉलोनी में रह रही हैं। वर्ष 1978 में शहीद हयात सिंह फौज में भर्ती हुए थे और 29 मई 1984 को सियाचिन में शहीद हो गए।
हर्बोला के साथ सियाचिन की चोटी पर जा रही कंपनी में सिपाही हयात सिंह भी शामिल थे। उनकी वीरांगना बच्ची देवी ने बताया कि उनके घर पर पहुंचे दो टेलीग्राम ने उनकी जिंदगी को सूना कर दिया था। पहले टेलीग्राम में सैन्य अधिकारियों ने उनके पति समेत 20 जवानों के लापता होने की सूचना दी थी। करीब एक महीने बाद पहुंचे दूसरे टेलीग्राम को पढ़ने के बाद तो मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था। उसमें उनके पति के शहीद होने की खबर थी लेकिन पार्थिव शरीर मिलने की पुष्टि नहीं हुई थी।
हयात 24 साल की उम्र में ही हो गए शहीद
बच्ची देवी ने बताया कि जब सिपाही हयात सिंह शहीद हुए थे तब उनकी उम्र 24 साल थी और उनकी नौकरी को पांच साल छह महीने ही हुए थे। उस समय उनका बेटा राजेंद्र तीन साल का था। बेटी गर्भ में थी। पिता की शहादत के पांच माह बाद पुष्पा इस दुनिया में आई थी। बच्ची देवी ने बताया कि वह मूल रूप से रीठा साहिब की हैं। 16 साल से हल्द्वानी के भट्ट विहार स्थित कृष्णा कॉलोनी में रह रही हैं। वर्ष 1978 में शहीद हयात सिंह फौज में भर्ती हुए थे और 29 मई 1984 को सियाचिन में शहीद हो गए।