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क्या इस मंदिर में पवित्र काले पत्थर को पूजते थे मुसलमान?
टीम डिजिटल / अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Thu, 26 Nov 2015 04:18 PM IST
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देश की राजधानी दिल्ली अपने दामन में इतिहास की ऐसी विरासत को समेटे हुए है जिसे जाने बिना इस शहर और इसकी गंगा-जमुनी तहजीब को समझना मुश्किल है। इस खास पेशकश में हम आपको दिल्ली पर लगभग तीन सौ साल तक राज करने वाले मुगल शासकों और उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ तथ्य परक और रोचक किस्सों से रूबरु करा रहे हैं...तो आइए जानते हैं मुगल शासक जहांगीर हिंदुओं देवताओं के प्रति क्या सोच रखता था और उसने उनके प्रति कैसा व्यवहार किया।
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मुगल शासकों की धार्मिक मान्यताओं को लेकर कई किस्से आपने सुने होंगे। इतिहासकार भी इसे अपने-अपने तरिके और विभिन्न घटनाओं के जरिए परिभाषित करते रहे हैं। जहांगीर को लेकर भी ऐसे ही किस्से इतिहास के पन्नों में दर्ज है। माना जाता है कि जहांगीर ने हिन्दू धर्म में ईश्वर के अवतार सम्बंधी मान्यता को अस्वीकार कर दिया था। इसे लोग अमूमन जहांगीर की रुढ़िवादी नीति से जोड़कर देखते आए हैं। जहांगीर की धार्मिक मान्यताओं को लेकर एक व्याख्या इरफान हबीब ने भी प्रस्तुत की है।
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मूर्ति पूजा और अवतार को लेकर जहांगीर का दृष्टिकोण अकबर के धार्मिक विश्वासों से कोई अलग नहीं था क्योंकि अकबर ने भी अपने सुवचनों में अवतारों के सिद्धान्त की आलोचना की थी और अकबर मूर्ति पूजा को भी अज्ञान का परिणाम मानता था। इसके अलावा अवतारों के सिद्धान्तों को अस्वीकार करने के लिए जहॉगीर इस्लाम को नहीं बल्कि बुद्धि को आधार बनाता है।
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रुढ़िवाद का जहॉगीर की रियायत के संकेत के रूप में एक और घटना का हवाला दिया गया है। जो विष्णु के वराह अवतार को लेकर पुष्कर में घटित हुई थी। पुष्कर के चारों तरफ अनेकों नए और पुराने देवघर थे जहां जहॉगीर उस देवघर को देखने गया जिसे उसके एक राजपूत अमीर राणा शंकर ने एक लाख रुपए की लागत से बनवाया था। यह यात्रा स्वयं राणा शंकर के निमंत्रण पर की गई थी।
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जहॉगीर को मंदिर में वराह भगवान की मूर्ति अच्छी नहीं लगी और उसने वराह रूप में विष्णु के अवतार के विचार के खिलाफ कठोर भाषा का प्रयोग किया। उसने आदेश दिया मूर्ति को तोड़कर तालाब में फेंक दिया जाए।
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