किसी सिनेमाघऱ में सबसे लंबे समय तक चलने वाली हिंदी फिल्म बन चुकी 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' एक पूरी पीढ़ी के बीच मोहब्बत का इजहार, इसरार और इकरार के तरीके बदल देने वाली फिल्म रही है। इसी फिल्म से बेटी और पिता के बीच के रिश्तों का भी नया आयाम खुलता है और यही वह फिल्म है जिसने घर परिवार में युवाओं के प्यार मोहब्बत को नए नजरिये से देखने का अध्याय भी खोला। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में काजोल के किरदार सिमरन ने भारतीय सिनेमा में एक आजाद ख्याल युवती की नई छवि गढ़ी। ये युवती अपनी परंपराओं को तो मानती है लेकिन उसका नजरिया काफी आधुनिक रहा और इसी वजह से लोगों ने इस किरदार को काफी पसंद किया। काजोल कहती हैं, “सच कहूं तो पहले मुझे लगा था कि सिमरन थोड़ी बोरिंग है, लेकिन मैंने उसकी खूबियों को पहचान लिया। मुझे एहसास हुआ कि लगभग हम सभी के दिल के कोने में कहीं-न-कहीं एक सिमरन मौजूद है जिसे हम जानते हैं। हमेशा उसके मन में सही काम करने की चाहत छिपी होती है। बहुत से लोग हर काम को सही ढंग से पूरा नहीं कर पाते हैं, लेकिन उनके मन में ऐसा करने की इच्छा ज़रूर होती है। आप इसी बात को स्वीकार करना चाहते हैं, आप उस भावना को महसूस करना चाहते हैं जिसे आपके दिल ने माना है। आपको दिल से एहसास होता है कि आप दुनिया में कुछ अच्छा कर रहे हैं।”
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Bioscope S2: 26 साल बाद भी राज और सिमरन का जादू बरकरार, काजोल को इसलिए सिमरन लगी बोरिंग
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दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

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दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
- फोटो : अमर उजाला आर्काइव, मुंबई
आदित्य चोपड़ा की ऊंची उड़ान
फिल्म के निर्देशक आदित्य चोपड़ा के बारे में जिक्र करने पर वह कहती हैं, "आदि का अपने विषय पर भरोसा ही उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। उन्हें यह बात अच्छी तरह मालूम होती है कि वह क्या बनाने जा रहे हैं। जब तक वह अपनी कहानी से पूरी तरह मुतमईन नहीं होते हैं, वह कोई फिल्म हाथों में नहीं लेते हैं। यही बात उन्हें दूसरों से बेहतर बनाती है। इस भरोसे की झलक उनकी फिल्म के किरदारों में भी दिखाई देती है।” 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के रजत जयंती वर्ष पर पिछले साल लंदन के लीसेस्टर स्क्वॉयर पर फिल्म के दो मुख्य किरदारों राज और सिमरन की कांस्य प्रतिमाएं भी लगीं। काजोल बताती हैं कि सिमरन और राज की कहानी को वह एक संगीतमय गाथा के रूप में तो सोचती रहती थीं लेकिन किसी को नहीं पता था ये इतनी असरदार गाथा बन जाएगी।
फिल्म के निर्देशक आदित्य चोपड़ा के बारे में जिक्र करने पर वह कहती हैं, "आदि का अपने विषय पर भरोसा ही उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। उन्हें यह बात अच्छी तरह मालूम होती है कि वह क्या बनाने जा रहे हैं। जब तक वह अपनी कहानी से पूरी तरह मुतमईन नहीं होते हैं, वह कोई फिल्म हाथों में नहीं लेते हैं। यही बात उन्हें दूसरों से बेहतर बनाती है। इस भरोसे की झलक उनकी फिल्म के किरदारों में भी दिखाई देती है।” 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के रजत जयंती वर्ष पर पिछले साल लंदन के लीसेस्टर स्क्वॉयर पर फिल्म के दो मुख्य किरदारों राज और सिमरन की कांस्य प्रतिमाएं भी लगीं। काजोल बताती हैं कि सिमरन और राज की कहानी को वह एक संगीतमय गाथा के रूप में तो सोचती रहती थीं लेकिन किसी को नहीं पता था ये इतनी असरदार गाथा बन जाएगी।
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दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
- फोटो : अमर उजाला आर्काइव, मुंबई
दोस्ती ने डाली ब्लॉकबस्टर फिल्म की नींव
फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की रिलीज के 25 साल पूरे होने पर बीते साल शाहरुख ने कहा था, “राज और सिमरन के लिए ऑन-स्क्रीन जो चीज काम कर गई, वह थी बुनियादी तौर पर काजोल और मेरी ऑफ-स्क्रीन दोस्ती। यह दोस्ती इतनी सहज थी कि कैमरे के सामने ऐसे भी क्षण आए, जब लगा ही नहीं कि हम दोनों जरा भी एक्टिंग कर रहे हैं। हमने फिल्म का कोई भी दृश्य योजना बनाकर नहीं किया, हमने खुद को सिर्फ प्रवाह में बहने दिया। अगर हमें कोई चीज पसंद नहीं आती थी, तो हम बिना किसी औपचारिकता के बस एक-दूसरे पर जोर-जोर से बरस पड़ते थे।” वहीं इस बारे में काजोल कहती हैं, “मुझे शुरू से आखिर तक फिल्म की पटकथा पसंद थी। ऐसा कोई हिस्सा नहीं था, जिसके बारे में मुझे कुछ भी अटपटा लगा हो।“ यह जोड़ी आदित्य चोपड़ा को इस शानदार कहानी का श्रेय देती है, जिसने दुनिया भर के भारतीयों का दिल छू लिया था।
फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की रिलीज के 25 साल पूरे होने पर बीते साल शाहरुख ने कहा था, “राज और सिमरन के लिए ऑन-स्क्रीन जो चीज काम कर गई, वह थी बुनियादी तौर पर काजोल और मेरी ऑफ-स्क्रीन दोस्ती। यह दोस्ती इतनी सहज थी कि कैमरे के सामने ऐसे भी क्षण आए, जब लगा ही नहीं कि हम दोनों जरा भी एक्टिंग कर रहे हैं। हमने फिल्म का कोई भी दृश्य योजना बनाकर नहीं किया, हमने खुद को सिर्फ प्रवाह में बहने दिया। अगर हमें कोई चीज पसंद नहीं आती थी, तो हम बिना किसी औपचारिकता के बस एक-दूसरे पर जोर-जोर से बरस पड़ते थे।” वहीं इस बारे में काजोल कहती हैं, “मुझे शुरू से आखिर तक फिल्म की पटकथा पसंद थी। ऐसा कोई हिस्सा नहीं था, जिसके बारे में मुझे कुछ भी अटपटा लगा हो।“ यह जोड़ी आदित्य चोपड़ा को इस शानदार कहानी का श्रेय देती है, जिसने दुनिया भर के भारतीयों का दिल छू लिया था।

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
- फोटो : सोशल मीडिया
बदलती दुनिया के बदलते अहसासों का आइना
शाहरुख खान बताते हैं, “हम सब दोस्त थे और एक अच्छी कहानी का आनंद उठा रहे थे। आदि को इस मामले में पक्का पता था कि वह किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और इसके जरिए वह क्या कहना चाहते हैं। हम तो बस एक ऐसी कहानी पर अभिनय कर रहे थे जिसके सारे शब्द और अहसास पूरी तरह से उनके ही थे।“ काजोल के मुताबिक फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ को लिखते वक्त आदि यह दिखाना चाह रहे थे कि हर जगह परिवार ऐसे ही होते हैं जो फिल्म के मूल वाक्य को मानते हैं कि दुनिया आपके सामने जो भी पेश करे, उसे अपना लो लेकिन अपनी जड़ों को कभी मत भूलो। फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ की कामबायी का डीएनए शाहरुख उस दौर को मानते हैं, “यह फिल्म उस वक्त आई थी जब दर्शक डीडीएलजे जैसी कहानी तथा मेरी और काजोल जैसी जोड़ियों को अपनाने के लिए पहले से ज्यादा सहज हो रहे थे। ढेर सारे बाहरी अवयवों ने भी फिल्म को कामयाब बनाया। जैसे कि एक आधुनिक प्रेम अनुभूति और उस वक्त बाजार में आया उदारीकरण।“
शाहरुख खान बताते हैं, “हम सब दोस्त थे और एक अच्छी कहानी का आनंद उठा रहे थे। आदि को इस मामले में पक्का पता था कि वह किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और इसके जरिए वह क्या कहना चाहते हैं। हम तो बस एक ऐसी कहानी पर अभिनय कर रहे थे जिसके सारे शब्द और अहसास पूरी तरह से उनके ही थे।“ काजोल के मुताबिक फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ को लिखते वक्त आदि यह दिखाना चाह रहे थे कि हर जगह परिवार ऐसे ही होते हैं जो फिल्म के मूल वाक्य को मानते हैं कि दुनिया आपके सामने जो भी पेश करे, उसे अपना लो लेकिन अपनी जड़ों को कभी मत भूलो। फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ की कामबायी का डीएनए शाहरुख उस दौर को मानते हैं, “यह फिल्म उस वक्त आई थी जब दर्शक डीडीएलजे जैसी कहानी तथा मेरी और काजोल जैसी जोड़ियों को अपनाने के लिए पहले से ज्यादा सहज हो रहे थे। ढेर सारे बाहरी अवयवों ने भी फिल्म को कामयाब बनाया। जैसे कि एक आधुनिक प्रेम अनुभूति और उस वक्त बाजार में आया उदारीकरण।“
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दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे
- फोटो : अमर उजाला आर्काइव, मुंबई
बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्डतोड़ कमाई
गौरतलब है कि ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ ने 10 फिल्मफेयर पुरस्कार जीते और हिंदी सिनेमा का चेहरा बदल कर रख दिया था। यह फिल्म उस समय चार करोड़ रुपये में बनी थी और 1995 के दौरान इसने भारत में 89 करोड़ रुपये तथा ओवरसीज मार्केट से 13.50 करोड़ रुपये जुटाए थे। इस प्रकार दुनिया भर से कुल 102.50 करोड़ रुपये का कलेक्शन हुआ। इसे तब के सोने के भाव के हिसाब से आज की बिक्री में तब्दील करें तो ये कुल कलेक्शन 524 करोड़ रुपये तक जा पहुंचता है।