छोटे शहरों से लोग बड़े सपने संजोकर मायनगरी में दस्तक देते हैं। मगर, यहां की जमीं पर कदम रखते ही उनका सामना एक नई दुनिया से होता है। गला काट प्रतियोगिता वाली वह दुनिया, जहां संघर्ष के बूते ही जिंदगी बसर की जा सकती है। लड़कियों के लिए यहां और मुसीबतें हैं। ऐसी ही मुसीबतों से दो-चार हुईं एक्ट्रेस पिया बाजयेपी। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के इटावा की रहने वाली पिया के लिए मुंबई आना और यहां खुद को स्थापित करना काफी मुश्किल रहा। वह माता-पिता से झूठ बोलकर मुंबई आई थीं। यहां आने के बाद कैसा रहा उनका सफर, आइए जानते हैं...
Pia Bajpai: झूठ बोलकर मुंबई का रुख, कुत्ते के साथ रूम शेयर....दुख की घड़ी में रोमांटिक सीन, पिया ने झेले कष्ट
'लाल रंग', 'मिर्जा जूलियट' और 'लॉस्ट' जैसी फिल्मों में नजर आ चुकीं पिया ने हाल ही में एक मीडिया संस्थान को दिए इंटरव्यू में बताया कि वर्षों पहले जब उन्होंने अपना शहर छोड़ा तो उन्हें खुद पर इतना यकीन तो था कि वह कुछ बनकर ही लौटेंगी। हालांकि, इटावा के शीर्ष 10 लोगों में वह जगह बना पाएंगी, इसका विचार तक उन्हें नहीं था। पिया के मुताबिक एक कंप्यूटर कोर्स करने के बाद उन्होंने नोएडा में रिसेप्शन की नौकरी की। मगर, उस नौकरी में उनका मन नहीं लगा। पिया एक्टिंग की दुनिया में किस्मत चमकाना चाहती थीं और उन्होंने पिता से मुंबई जाने की जिद की। वे तैयार न हुए तो पिया ने अपने पिता से झूठ बोला कि एक टीवी शो में काम करने का ऑफर मिला है। घरवालों ने भी यकीन कर लिया और इस तरह मुंबई जाने का सफर शुरू हुआ।
पिया के मुताबिक मुंबई पहुंचने के बाद उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं थी। शुरुआत में वह दो दिन दादर के एक लॉज में ठहरीं। इसके बाद वह अंधेरी शिफ्ट हुईं। वहां उन्हें एक चॉल में एक पीजी में जगह तो मिली, लेकिन शर्त यह थी कि उन्हें कुत्ते के साथ रूम शेयर करना था। बातचीत के दौरान पिया ने कहा कि एक तो कमरा इतना छोटा था, ऊपर से मुझे अपना सामान ऊपर टांगकर रखना पड़ता था, क्योंकि वो कुत्ता मेरा सामान नोच लेता था। इस दौरान पिया ने एक मैगजीन प्रकाश में कोर्डिनेशन का काम किया। पिया के मुताबिक जिस दफ्तर में वह काम करती थीं, उसके मालिक ने उन्हें खाने-पीने की सुविधा तो मुहैया करा दी, लेकिन सिर पर छत अब तक नहीं थी। उन्होंने मालिक से दफ्तर में ही रहने के लिए पूछा तो जवाब मिला कि इसकी इजाजत नहीं है। इसका हल भी पिया ने निकाला और कहा कि शाम को काम के बाद मुझे अंदर बंद कर जाया करें। मालिक ने पिया की मजबूरी समझी और इस तरह उन्हें रहने का ठिकाना भी मिल गया। अब वह दफ्तर ही उनके लिए घर हो गया। संघर्ष करते हुए पिया को एक गुजराती टूथपेस्ट का विज्ञापन मिला। फिर धीरे-धीरे प्रिंट एड में काम मिलने लगा। इसके बाद उन्होंने एक बड़े ब्रांड के साबुन का एड मिला, जिसके लिए उन्हें अच्छी फीस मिली।
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विज्ञापन की दुनिया में खुद को स्थापित करने के बाद पिया ने दक्षिण इंडस्ट्री का रुख किया। वहां पिया ने करीब 17-18 फिल्में की। पिया ने बताया, 'मैं पैसे बहुत कमा रही थी, लेकिन ये अफसोस था कि मेरे अपने लोगों को मेरा काम नहीं दिख रहा है। अब मैं हिंदी सिनेमा के लिए काम करना चाहती थी। मैंने साउथ छोड़ा और वापस मुंबई आ गई।' पिया को हिंदी में ‘मुंबई दिल्ली मुंबई’ फिल्म मिली, लेकिन वो भी रिलीज नहीं हुई। इसके बाद उन्हें रणदीप हुड्डा के साथ 'लाल रंग' फिल्म में काम करने का मौका मिला। फिर 'मिर्जा जूलियट'। इसके बाद चार साल काम नहीं मिला और फिर कोविड आ गया, जो पिया की जिंदगी में नई मुसीबतें लेकर आया।
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कोविड महामारी के दौरान पिया ने अपने 27 साल के भाई को खो दिया। हैरानी की बात है कि दुख की इस घड़ी में पिया को एक रोमांटिक रोल करना था। पिया ने कहा, 'कोविड में जब मेरा भाई हमें छोड़कर गया उस समय उसका बेटा तीन साल और बेटी एक साल की थी। भाई की चिता को आग देने के बाद मैं सेट पर लौटी और 'लॉस्ट' फिल्म की शूटिंग में रोमांटिक एक्टिंग की। मेरे भीतर क्या चल रहा था ये मैं ही जानती थी। हमारी इंडस्ट्री ही ऐसी है। एक्टर्स को काम के बीच में अपना दुख जताने का हक नहीं है।' पिया का कहना है कि आज वह अपनी पसंद का काम कर रही हैं और खुश हैं। खुशी इस बात की भी है कि भाई के जाने के बाद माता-पिता की जिम्मेदारी संभाल पा रही हैं।
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