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75 Years of Independence: पहले ऑस्कर से विदेश में पहली शूटिंग तक, पढ़ें आजादी के बाद सिनेमा की उपलब्धियां
देशभर में इन दिनों आजादी के अमृत महोत्सव का जश्न देखने को मिल रहा है। 1947 में आजाद हुआ भारत इस साल अपनी आजादी का 75वां वर्ष मना रहा है। इस खास मौके पर देशभर में आम से लेकर खास हर कोई इसका जश्न मनाता दिख रहा है।
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भारतीय सिनेमा
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हिंदुस्तान... एक ऐसा नाम, जिसके सामने पूरी दुनिया सजदा करने के लिए तैयार रहती है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, क्योंकि हिंदुस्तान किसी भी काम में कभी पीछे नहीं रहता है। आज देश की आजादी को 75 साल पूरे हो गए हैं। यानी कि हम आजादी के अमृत महोत्सव से रूबरू हो रहे हैं। इन 75 साल के दौरान देश में बहुत कुछ बदला, लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी हुआ, जो पूरी दुनिया ने पहली बार देखा। कुछ ऐसा ही सिनेमा जगत यानी बॉलीवुड में भी हुआ। यहां तमाम ऐसी उपलब्धियां रहीं, जिन्हें हिंदुस्तान ने पहली बार हासिल किया। इस स्पेशल रिपोर्ट में हम जानते हैं कि भारतीय सिनेमा ने आजादी के बाद कौन-कौन से मुकाम हासिल किए...
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भानु अथैया
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पहला ऑस्कर
भारत की तरफ से ऑस्कर में आधिकारिक रूप से पहली बार 1958 में आई फिल्म 'मदर इंडिया' को भेजा गया था। हालांकि जीत के करीब पहुंच कर भी यह फिल्म ऑस्कर हासिल नहीं कर सकी। वहीं, देश को मिले पहले ऑस्कर की बात करें तो भारत को पहला ऑस्कर भानु अथैया ने दिलाया था। उन्हें 1983 में आई फिल्म 'गांधी' के लिए बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइनर श्रेणी में ऑस्कर दिया गया था। इतना ही नहीं इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार सहित पांच अन्य ऑस्कर भी जीते थे।
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फिल्म संगम
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विदेश में शूट होने वाली पहली फिल्म
देश भर में हर साल कई फिल्में बनती हैं। यह फिल्में हिंदी ही नहीं बल्कि अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी बनाई जाती हैं। बीते लंबे समय से भारतीय फिल्में विदेशों में भी शूट की जाने लगी हैं। भारतीय फिल्मों का अधिकांश हिस्सा विदेशी धरती पर शूट किया जाता है। वहीं, अगर पहली भारतीय फिल्म की बात करें जिसे विदेश में शूट किया गया था तो यह कीर्तिमान राज कपूर की फिल्म 'संगम' ने अपने नाम किया था। साल 1964 में आई राज कपूर की फिल्म संगम विदेश में शूट होने वाली पहली भारतीय फिल्म थी।
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सिनेमैटोग्राफी एक्ट
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नए सिनेमैटोग्राफी एक्ट का निर्माण
देश में अंग्रेजों के शासन के दौरान फिल्में लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का एक बेहतरीन जरिया बन गई थीं। ऐसे में ब्रिटिश सरकार ने इस प्रयास को रोकने के लिए 1918 में सिनेमैटोग्राफी एक्ट का निर्माण किया था। इस एक्ट के तहत सेंसर बोर्ड फिल्मों में से उन दृश्यों को हटा देता था, जिससे अंग्रेजों की छवि खराब होती। हालांकि, आजादी के बाद एक नई उपलब्धि हासिल करते हुए सिनेमैटोग्राफी एक्ट में बदलाव कर 1952 में नया एक्ट लाया गया। एक्ट में अभिव्यक्ति को ज्यादा महत्व दिया गया। आजादी के बाद सेंसर बोर्ड में हुआ बदलाव हिंदी सिनेमा की एक अहम उपलब्धि मानी जाती है।
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चेतन आनंद
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कान में पहला भारतीय जूरी मेंबर
भारतीय फिल्में दशकों से कान फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा रही हैं। हालांकि चेतन आनंद की फिल्म नीचा नगर ने 1946 में इस फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड भी जीता था। वहीं, इसमें पहले जूरी मेंबर की बात करें तो अवॉर्ड जीतने के 4 साल बाद यानी 1950 में चेतन आनंद को इस फेस्टिवल में अंतरराष्ट्रीय जूरी का सदस्य चुना गया था। वह इस जूरी के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय थे।
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