वो शिवरात्रि का दिन था। कश्मीर में हालात बहुत खराब थे। मेरा छोटा भाई बाजार गया था। आतंकी बिट्टा कराटे ने दूसरे आतंकियों के साथ मिलकर मेरे भाई पर तीन गोलियां चलाईं। वह जमीन पर गिर गया और तड़पता रहा। कोई भी उसकी मदद करने नहीं आया। लोग खिड़कियों से देखते रहे। आतंकी पास की दुकान पर लस्सी पीते रहे। जब उन्होंने देखा कि वो अभी भी जिंदा है, तो उसके पास गए और उसे लातों से मारा। फिर उस पर गोलियां चलाईं, जब तक उसने दम न तोड़ दिया। इसके बाद छोटे भाई के शव को पास के नाले में फेंक कर चले गए। यह आपबीती जम्मू के भगवती नगर में रह रहे 75 वर्षीय मक्खन लाल काजी ने बताईं।
1990 के समय मक्खन लाल काजी का परिवार श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में रहता था। कश्मीर की फिजा में तब सांप्रदायिकता की आग फैल चुकी थी। उनके छोटे भाई अशोक काजी (35) बागवानी विभाग में कार्यरत थे। वह हिंदू सभा के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता थे। मक्खन काजी बताते हैं कि शिवरात्रि के दिन 20 फरवरी 1990 को उनका भाई अशोक काजी किसी काम से बाजार गया था। आतंकियों ने हमला कर उसका कत्ल कर दिया। तब लोगों में खौफ का आलम यह था कि उनके घर पर अफसोस जताने तो दूर भाई के अंतिम संस्कार के लिए भी कोई नहीं आया।
1990 के समय मक्खन लाल काजी का परिवार श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में रहता था। कश्मीर की फिजा में तब सांप्रदायिकता की आग फैल चुकी थी। उनके छोटे भाई अशोक काजी (35) बागवानी विभाग में कार्यरत थे। वह हिंदू सभा के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता थे। मक्खन काजी बताते हैं कि शिवरात्रि के दिन 20 फरवरी 1990 को उनका भाई अशोक काजी किसी काम से बाजार गया था। आतंकियों ने हमला कर उसका कत्ल कर दिया। तब लोगों में खौफ का आलम यह था कि उनके घर पर अफसोस जताने तो दूर भाई के अंतिम संस्कार के लिए भी कोई नहीं आया।