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Inner Motivation: जब काम ही इनाम बन जाए, तब इंसान भीतर से होता है प्रेरित; न कि सिर्फ नतीजों से

असिस्टेंट प्रोफेसर, राइस यूनिवर्सिटी Published by: शाहीन परवीन Updated Tue, 16 Dec 2025 12:00 PM IST
सार

Work Satisfaction: काम से मिलने वाली खुशी इंसान की सबसे बड़ी ताकत होती है। जो व्यक्ति भीतर से प्रेरित होता है, वह केवल परिणाम पाने के लिए नहीं, बल्कि अपने काम में छिपे आनंद और संतोष के कारण मेहनत करता है। यही आंतरिक प्रेरणा उसे लगातार आगे बढ़ने की शक्ति देती है। 

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When Work Becomes the Reward, True Motivation Comes from Within
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : freepik

Self-Driven Success: जब छात्र अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते हैं, तो अक्सर उन्हें यह सलाह दी जाती है कि वे वही काम करें, जो उन्हें पसंद हो। इसका कारण यह माना जाता है कि जिस काम में रुचि होती है, वह थकावट नहीं देता और सफलता की संभावना बढ़ाता है। इसे ही हम आंतरिक प्रेरणा कहते हैं। इस प्रकार की प्रेरणा में व्यक्ति केवल परिणाम की उम्मीद में नहीं, बल्कि अपने काम से मिलने वाली खुशी, संतोष और सीखने के अनुभव के लिए काम करता है। यही कारण है कि ऐसे लोग अक्सर बेहतर और रचनात्मक प्रदर्शन करते हैं। 



हालांकि, समस्या तब उत्पन्न होती है जब 'काम से प्यार करना' खुद पर दबाव बन जाता है। यदि व्यक्ति हर समय अपने काम में खुशी या उत्साह महसूस न करे, तो वह खुद को असफल समझने लगता है और निराशा में फंस सकता है। इसलिए, काम को केवल खुशी पाने का साधन मानने के बजाय उसे सीखने और स्वयं को बेहतर बनाने की प्रक्रिया के रूप में देखना चाहिए, जिससे वह न सिर्फ संतोष देता है, बल्कि जीवन में आत्मविश्वास भी पैदा करता है।

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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : freepik

काम है जीवन का हिस्सा

किसी भी नौकरी में बोरियत, थकान और तनाव आना सामान्य है, लेकिन इन्हें असफलता मान लेने से व्यक्ति खुद को कमजोर समझने लगता है। अपराधबोध के कारण लोग कभी-कभी ऐसी नौकरी में टिके रहते हैं, जो उन्हें थका देती है और आगे चलकर बर्नआउट का कारण बनती है। 'ड्रीम जॉब' के चक्कर में स्थिरता और आय जैसी जरूरी बातों को नजरअंदाज करने से आर्थिक तनाव और असंतोष बढ़ता है। इसलिए काम को सिर्फ खुशी का स्रोत नहीं, बल्कि जीवन के संतुलन का हिस्सा मानना जरूरी है, ताकि काम लंबे समय तक टिकाऊ बना रहे।

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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : freepik

सीमाओं को स्वीकारें

अपराधबोध वह भावना है, जिसमें व्यक्ति बिना किसी वास्तविक गलती के भी खुद को दोषी मानने लगता है, जैसे काम से हर समय खुशी न मिलने पर खुद को कम मेहनती समझना। वहीं, अपर्याप्तता तब महसूस होती है, जब व्यक्ति दूसरों से तुलना करके खुद को पीछे और कम सक्षम मानने लगता है। ये दोनों भावनाएं मिलकर मानसिक थकान, तनाव और आत्मविश्वास की कमी पैदा करती हैं। इसलिए यह समझना जरूरी है कि हर समय खुश और उत्तम रहना संभव नहीं है। अपनी सीमाओं को स्वीकार करना और खुद के प्रति सहानुभूति रखना ही सही रास्ता है, जिससे व्यक्ति संतुलित, स्वस्थ और टिकाऊ रूप से अपने काम में लगा रह सके।

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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : freepik

प्रदर्शन का दबाव न लें

प्रदर्शन का दबाव वह स्थिति है, जिसमें व्यक्ति हर समय खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने की चिंता में फंसा रहता है। यह दबाव तब और बढ़ जाता है, जब काम को उसकी सीखने की प्रक्रिया के बजाय केवल परिणामों के आधार पर आंका जाने लगता है। ऐसे में छोटी-छोटी गलतियां भी असफलता का प्रतीक बन जाती हैं और मानसिक तनाव लगातार बढ़ता है।

इसलिए जरूरी है कि आप प्रदर्शन को केवल नतीजों तक सीमित न रखें। इसे प्रयास, लगातार सुधार और सीखने की प्रक्रिया से जोड़कर देखना चाहिए। जब आप इस तरह से सोचते हैं, तो काम केवल दबाव और चिंता का कारण नहीं बनता, बल्कि विकास, आत्मसंतोष और व्यक्तिगत सुधार का माध्यम बन जाता है।

-द कन्वर्सेशन

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