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Dopamine Detox: डोपामाइन डिटॉक्स क्या है? जानें कैसे लौटाएं जिंदगी की असली खुशी

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिवानी अवस्थी Updated Wed, 05 Nov 2025 01:12 PM IST
सार

आभासी खुशियों की होड़ में जिंदगी का असली आनंद पीछे छूटा जा रहा है। अब हमारी खुशियां भी आभासी होने लगी हैं और गम भी। खुद को अगर इससे अलग करके देखें तो जिंदगी बहुत सहज दिखेगी। फिर हम जिंदगी में असल खुशियों को आने का वक्त क्यों नहीं देते?

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डोपामाइन डिटॉक्स क्या है - फोटो : Freepik

अलका ‘सोनी’



शायद आपने गौर किया होगा कि अब आपका दिन पहले की तरह शुरू नहीं होता। सुबह अलार्म बंद करते ही अधमुंदी आंखों के साथ उंगलियां मोबाइल फोन के नोटिफिकेशन को चेक करने लगती हैं और अपने आप व्हाट्सएप तथा इंस्टाग्राम पर चली जाती हैं। बिस्तर पर ही सारी जानकारियों से अपडेट होकर ही फिर कामों की शुरुआत होती है। स्थिति यह है कि खाना खाते समय भी उंगलियां स्टोरीज और रील्स को स्क्रॉल करती रहती हैं और नहाना तो बिना गानों के हो ही नहीं पाता है। यहां तक कि सोने से पहले नेटफ्लिक्स या यूट्यूब देखना आपकी आदत में शुमार हो चुका है। इतना ही नहीं, जब भी आप सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट शेयर करती हैं तो बार-बार पोस्ट को खोलकर लोगों के लाइक्स और कमेंट्स देखती रहती हैं और अच्छे कमेंट्स देखकर खुश तो बुरे कमेंट्स देखकर दुखी हो जाती हैं। ये सब डोपामाइन की वजह से होता है। जब आपको सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया मिलती है, तब यही डोपामाइन आपके दिमाग में छोटे–छोटे विस्फोट करता है, जिनसे आपको क्षणिक खुशी का अहसास होता है।

आज दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां, जैसे- फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, नेटफ्लिक्स आदि आपके ‘अटेंशन’ के पीछे करोड़ों डॉलर खर्च कर रही हैं। आपकी इसी क्षणिक खुशी के लिए उनके एल्गोरिद्म इस तरह से तैयार किए गए हैं कि आप बार-बार लौटकर आएं और घंटों तक स्क्रीन पर अटकी रहें। इसका सीधा असर आपके दिमाग पर पड़ रहा है। आप लगातार हाई-डोपामाइन स्टिम्युलेशन में जी रही हैं, जहां छोटी-छोटी चीजों से मिलने वाला आनंद फीका पड़ चुका है। यही कारण है कि आज दुनिया के सामने ‘डोपामाइन डिटॉक्स’ जैसी नई चीज सामने आई है।

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डोपामाइन क्यों जरूरी - फोटो : AI

डोपामाइन क्यों जरूरी

डोपामाइन को ‘फील-गुड केमिकल’ कहा जाता है। यह एक न्यूरोट्रांसमीटर है, जो दिमाग की कोशिकाओं को संदेश भेजता है और आपको प्रेरणा, उत्साह, जिज्ञासा तथा इनाम पाने जैसा अनुभव कराता है। जब कोई बच्चा साइकिल चलाना सीखता है, कोई खिलाड़ी मैच जीतता है या कोई लेखक अपनी किताब पूरी करता है, तो आपका मस्तिष्क डोपामाइन छोड़ता है। इससे व्यक्ति को अपने कार्य के प्रति संतोष मिलता है और आगे भी मेहनत करने की प्रेरणा मिलती है। लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है, जब यह रसायन बिना किसी मेहनत के केवल बाहरी उत्तेजनाओं से बार-बार निकलने लगता है। यह आपको क्षणिक खुशी तो देता है, लेकिन धीरे-धीरे जीवन के बड़े लक्ष्यों और वास्तविक रिश्तों से दूरी भी पैदा कर सकता है।

मसलन, सोशल मीडिया पर लाइक मिलते ही उत्साहित होना, वीडियो गेम जीतने पर अत्यधिक रोमांच महसूस करना या जंक फूड खाने पर तुरंत संतोष का अनुभव होना। ऐसी आदतें धीरे-धीरे मस्तिष्क को त्वरित इनाम की लत लगा देती हैं। परिणामस्वरूप, लंबे और धैर्य की मांग करने वाले कार्य, जैसे- पढ़ाई, रचनात्मक प्रोजेक्ट्स या शारीरिक व्यायाम, आपको बोझिल लगने लगते हैं, क्योंकि इन कार्यों से आपको तुरंत खुशी नहीं मिलती और लंबे समय तक परिणाम की प्रतीक्षा करने की आदत आपमें शेष नहीं रहती है।

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दिमाग को थोड़ा ब्रेक चाहिए - फोटो : adobe stock

दिमाग को थोड़ा ब्रेक चाहिए

डिटॉक्स करने का सीधा-सा अर्थ ही है- टॉक्सिक चीजों से खुद को दूर रखना। जिस तरह आप अपने मन को शांत रखने के लिए टॉक्सिक दोस्तों या रिश्तेदारों से दूरी बनाती हैं, उसी तरह खुद को भी स्वस्थ रखने के लिए डोपामाइन डिटॉक्सीकरण जरूरी है। डोपामाइन डिटॉक्स की अवधारणा सबसे पहले अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित टेक हब ‘सिलिकॉन वैली’ से सामने आई। वहां के कई युवा इंजीनियर और स्टार्टअप फाउंडर्स इस समस्या से जूझ रहे थे। वे काम पर फोकस नहीं कर पा रहे थे, क्रिएटिविटी घट रही थी और सोशल मीडिया की लत कामकाज पर भारी पड़ रही थी। फिर कुछ न्यूरोसाइंटिस्ट्स और मनोवैज्ञानिकों ने इसका समाधान सुझाया, जो  था अपने दिमाग को कुछ समय के लिए हाई-स्टिम्युलेशन से ब्रेक देना। इसका उद्देश्य था- दिमाग को लगातार हो रहे ओवर-स्टिम्युलेशन से राहत देना, तुरंत मिलने वाले सुख (इंस्टेंट ग्रैटीफिकेशन) की आदत को कम करना और लोगों को सामान्य तथा वास्तविक गतिविधियों में आनंद लौटाना।

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फोकस की क्षमता रह गई आधी - फोटो : Adobe stock

फोकस की क्षमता रह गई आधी

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट बताती है कि लगातार नोटिफिकेशन देखने की वजह से लोगों की अटेंशन स्पैन (किसी एक काम पर ध्यान केंद्रित रखने का समय) दो-तीन दशक पहले की तुलना में आधा हो चुका है। वहीं, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मनोचिकित्सकों ने पाया कि जब लोग सोशल मीडिया और स्क्रीन टाइम सीमित करते हैं तो उनमें धैर्य और रचनात्मकता बढ़ती है। लगातार इंस्टेंट ग्रैटीफिकेशन का समाज और मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है।

लगातार हाई-डोपामाइन एक्टिविटीज में उलझी पीढ़ी में आप आसानी से इन परिवर्तनों को देख सकती हैं। आज तुरंत खुशी और सफलता प्राप्त करने की चाह रखने के कारण लोगों का धैर्य खो रहा है। यह सही है कि आज डिजिटल कार्य संस्कृति में ‘मल्टीटास्किंग’ बढ़ रही है, लेकिन इसी के साथ किसी काम को गहराई से करने की क्षमता भी घट रही है। लोग लंबी अवधि वाले लक्ष्य के लिए मेहनत नहीं कर पा रहे। उनमें ‘झटपट करो और झटपट परिणाम पाओ’ की संस्कृति बढ़ रही है, जो कि आने वाले समय में बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकती है।

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शिक्षा पर सबसे अधिक प्रभाव - फोटो : Adobe stock

शिक्षा पर सबसे अधिक प्रभाव

यह सही है कि इंटरनेट जानकारियों का खजाना है, लेकिन आज सभी स्क्रीन पर आंखें जमाए बैठे रहते हैं, खासकर बच्चे। वे किताबों के बजाय स्क्रीन से सीख रहे हैं। कुछ भी जानना हो तो इंटरनेट। इंटरनेट पर यह निर्भरता उन्हें एक क्लिक पर सूचनाएं दे रही है, लेकिन इससे उनकी ध्यान देने की शक्ति और याददाश्त कमजोर हो रही है। साथ ही वे वास्तविक दुनिया से कट रहे हैं। पुस्तकों के प्रति उनका लगाव कम हो रहा है। आज की जिंदगी में तकनीक से बचना संभव नहीं है। मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया आपके काम और जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। समस्या इनसे नहीं, बल्कि इनके अत्यधिक इस्तेमाल से है। जब आप हर पल ‘इंस्टेंट डोपामाइन’ की तलाश में भागती हैं तो असली संतोष खो देती हैं। इसलिए यदि बड़े पैमाने पर लोग ‘डोपामाइन डिटॉक्स’ जैसी प्रैक्टिस अपनाएं तो समाज में धैर्य, अनुशासन और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।

डोपामाइन डिटॉक्स रूटीन

डोपामाइन डिटॉक्स को आप एक तरह की मानसिक फास्टिंग समझिए। जैसे शरीर को हल्का करने के लिए लोग डिटॉक्स डाइट लेते हैं, वैसे ही दिमाग को तरोताजा करने के लिए डोपामाइन डिटॉक्स जरूरी है। बहुत से लोग मान लेते हैं कि डोपामाइन डिटॉक्स का अर्थ है- पूरा दिन अकेले चुपचाप बैठे रहना, किसी से बात न करना और न ही कोई गतिविधि करना। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह बेहद संतुलित अभ्यास है, जो आपको धीरे-धीरे डिजिटल लत से बाहर लाने और जीवन में संतुलन स्थापित करने का रास्ता दिखाता है।

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