हम जिस प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं उसका असर शरीर और दिमाग दोनों पर पड़ता है। इसलिए यह बात ध्यान में रखना जरूरी है कि प्रकृति द्वारा दिए गए अनमोल संसाधनों का ध्यान रखना बहुत अवश्यक है। पिछले कुछ सालों में हमने जिस तेजी से प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किया है और तरक्की की दौड़ में अपनी जीवनशैली को जितना मशीनी बनाया है, उसका ही बुरा असर आज प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाओं में बढोतरी और ग्लोबल वॉर्मिंग के रूप में सामने आ रहा है। देश के कुछ शहरों में तो प्रदूषण का बढ़ता स्तर जानलेवा हो रहा है। यह स्वास्थ्य के लिहाज से बड़ी चेतावनी है। अगर अब भी हम सचेत नहीं हुए तो सबके लिए मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।
प्रदूषण शरीर के किसी एक ही हिस्से को प्रभावित नहीं करता, इसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है। चूंकि शरीर का हर अंग एक-दूसरे के साथ लिंक में काम करते हैं, ऐसे में एक पर पड़ने वाला प्रभाव दूसरे को भी मुश्किल में डाल देता है। रिसर्च बताती हैं कि प्रदूषित हवा हार्ट और किडनी को भी क्षतिग्रस्त कर सकती है। इसपर अगर आप किडनी सम्बन्धी किसी समस्या या डायबिटीज आदि के शिकार हैं तो यह तकलीफ और भी बढ़ सकती है।
जहरीली हवा का असर
अगर आपके शहर में प्रदूषण है तो आप उसकी चपेट में आने से बच नहीं सकते क्योंकि सांस तो आप उसी हवा में लेंगे। हां, घर के भीतर कुछ हद तक सुरक्षा मिल सकती है लेकिन पूरे समय घर में बन्द तो नहीं रहा जा सकता। बाहर निकलते ही हवा में मौजूद धुएं और धूल के साथ मिले हुए हानिकारक व प्रदूषण युक्त कण सांस के साथ शरीर में जा सकते हैं। इनमें से कुछ तो इतने जहरीले हो सकते हैं कि वे खतरनाक बीमारियां पैदा कर सकते हैं।
अगर आप ज्यादा समय तक निरन्तर इस प्रदूषण के सम्पर्क में रहते हैं तो दिल की बीमारियों, स्ट्रोक, कैंसर, अस्थमा, क्रॉनिक पल्मोनरी डिसीज आदि की आशंका बढ़ सकती है और इसका किडनी यानी गुर्दों पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। प्रदूषित हवा क्रॉनिक किडनी डिसीज का कारण भी बन सकती और इसकी वजह से किडनी फेलियर का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। चूंकि भारत में पिछले कुछ सालों में डायबिटीज भी एक महामारी की ही तेजी से बढ़ी है, ऐसे में किडनी को होने वाले नुकसान की कल्पना करना ही डरा देता है।
किडनी का कामकाज हो सकता है प्रभावित
प्रदूषित हवा के जहरीले कण किडनी के कामकाज को बाधित करने लगते हैं। ये माइक्रोस्कोपिक कण खून के बहाव के साथ पूरे शरीर मे पहुंच जाते हैं। इनमें धूल, धुएं, कालिख और कई तरह के तरल रसायनों की बूंदें होती हैं। किडनी का काम होता है ब्लड को फिल्टर करते रहना। जब ये कण ब्लड के साथ किडनी तक पहुंचते हैं तो वहां फिल्टर होने में मुश्किल खड़ी करने लगते हैं। जैसे किसी छन्नी में बारीक कण अटकने पर पानी या अन्य तरल उसके पार नहीं जा पाता ठीक वैसे ही। फिल्टर न हो पाने और ब्लड सर्कुलेशन ठीक से न होने से टिशूज में सूजन पैदा होने या इंफेक्शन होने का खतरा भी बढ़ जाता है। अगर आप पहले से ही किसी इंफेक्शन से जूझ रहे हैं तो समस्या गंभीर हो जाती है।
जानिए कैसे करें इससे बचाव
जाहिर है कि प्रदूषण की समस्या न एक दिन में पनपती है न ही एक दिन में पूरी तरह खत्म की जा सकती है। इसलिए आवश्यक यह है कि हम अपने स्तर पर भी कुछ सावधानियां रखें।
- वैसे तो कोरोना की वजह से यह आजकल आम सावधानी है लेकिन सामान्य स्थिति में भी मास्क या अन्य सुरक्षा साधनों का प्रयोग अवश्य करें।
- अपनी गाड़ी की सर्विसिंग और सफाई समय पर करवाएं। कहने को ये भले ही मामूली बात लगती हो लेकिन जब अधिकांश लोग ऐसा करते हैं तो प्रदूषण के स्तर को कम करने में बहुत मदद मिलती है।
- अगर आप बड़े शहर में रहते हैं तो सार्वजनिक वाहनों जैसे बस या ट्रेन या कार पूल जैसे साधन अधिक उपयोग में लाएं।
- घर से बाहर खासकर सड़क किनारे खड़े ठेलों या दुकानों से खरीदी गई चीजें जो खुली रखी रहती हैं, उन्हें खाने से बचें।
- रेग्युलर एक्सरसाइज बहुत जरूरी है। आउटडोर एक्सरसाइज या जॉगिंग के लिए सुबह 10 के बाद और शाम 6 के बाद का समय न चुनें। अगर घर के बाहर प्रदूषण का खतरा है तो घर के किसी हवादार कमरे को ही एक्सरसाइज के लिए चुनें।
- अपने भोजन का समय और मात्रा नियमित और संतुलित रखें। नियमित रूप से पानी पिएं। साथ ही अपनी डाइट में अधिक से अधिक ताजे फलों को शामिल करें। इनमें मौजूद फाइबर, विटामिन्स, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर को खास मदद पहुंचाऐंगे।
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