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कोरोना वायरसः संक्रमण के बाद ठीक होने में कितना वक्त लगता है?

बीबीसी हिंदी Published by: निलेश कुमार Updated Tue, 21 Apr 2020 10:04 AM IST
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Coronavirus How much time to be recover after Covid 19 infection
कुछ मरीजों को पूरी तरह से ठीक होने में लंबा वक्त लग सकता है - फोटो : PTI

कोविड-19 की महामारी भले ही साल 2019 के आखिर में शुरू हुई हो लेकन अब इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि कुछ मरीजों को पूरी तरह से ठीक होने में लंबा वक्त लग सकता है। संक्रमण के बाद ठीक होने में लगने वाला समय इस बात पर निर्भर करेगा कि सबसे पहले आप किस हद तक बीमार हुए थे। 



मुमकिन है कि कुछ लोग बीमारी से जल्द निजात पा लें और कुछ लोगों को इससे उबरने के लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़े। उम्र, लिंग और दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं, ये सभी बातें किसी व्यक्ति के कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार पड़ने के खतरे को बढ़ा देती हैं। इसके इलाज में आपके शरीर के साथ जितने प्रयोग किए जाएंगे और ये जितने ज्यादा दिनों तक चलेगा, आपके ठीक होने में उतना ज्यादा वक्त लगेगा।

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क्या होगा अगर मुझमें हल्के लक्षण हों?
कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले ज्यादातर लोगों में खांसी और बुखार जैसे प्रमुख लक्षण ही दिखाई देते हैं। लेकिन उन्हें बदन दर्द, थकान, गले में खराबी और सिर दर्द की शिकायत हो सकती है। शुरू में सूखी खांसी होती है लेकिन कुछ लोगों को आखिर में खांसी के साथ बलगम भी आने लगता है जिसमें कोरोना वायरस की वजह से मारे गए फेफड़े के 'डेड सेल्स' (मृत कोशिकाएं) होते हैं।

इन लक्षणों के इलाज के तौर पर आराम करने की सलाह दी जाती है, दर्द नाशक के रूप में पारासिटामोल और पर्याप्त मात्रा में पानी पीने के लिए कहा जाता है। हल्के लक्षण वाले लोगों के जल्दी ठीक होने की उम्मीद की जाती है। बुखार उतरने में हफ्ते भर से कम समय लगना चाहिए हालांकि खांसी सामान्य से ज्यादा वक्त ले सकती है। चीन से मिले आंकड़ों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विश्लेषण के मुताबिक संक्रमण के बाद किसी व्यक्ति को ठीक होने में औसतन दो हफ्ते का समय लगता है।

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क्या होगा अगर मुझमें गंभीर लक्षण हो?
ये बीमारी कुछ लोगों के बहुत गंभीर स्थिति पैदा कर सकती है। संक्रमण के सात से दस दिनों के भीतर ही इसका अंदाजा लग जाता है। स्वास्थ्य की स्थिति तेजी से बिगड़ सकती है। फेफड़े में जलन की शिकायत के साथ सांस लेना मुश्किल लगने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर की प्रतिरोध प्रणाली संक्रमण के खिलाफ लड़ने की कोशिश कर रहा होता है। दरअसल, इम्यून सिस्टम कोरोना वायरस के खिलाफ तगड़ी प्रतिक्रिया करता है और इसका कुछ नुकसान हमारे शरीर को भी होता है। 

कुछ लोगों को ऑक्सिजन थेरेपी के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है। ब्रितानी डॉक्टर सारा जार्विस कहती हैं, "सांसों की तकलीफ में सुधार आने में थोड़ा ज्यादा समय लग सकता है। शरीर जलन और बेचैनी से उबरने लगता है।" सारा बताती हैं कि ऐसे मरीजों को ठीक होने में दो से आठ हफ्तों का वक्त लग सकता है। हालांकि उनकी कमजोरी थोड़े ज्यादा समय तक बनी रह सकती है।

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क्या होगा अगर मुझमें इसके गंभीर लक्षण हों या मुझे आईसीयू जाने की जरूरत हो तो?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 20 लोगों में से किसी एक शख्स को ही आईसीयू जाने की जरूरत पड़ती है। इसमें वेंटिलेटर पर रखा जाना भी शामिल किया जा सकता है। अगर कोई शख्स आईसीयू में भर्ती हुआ है तो निश्चित तौर पर उसे बीमारी से उबरने में समय लगता है, बीमारी चाहे जो भी हो। आईसीयू के बाद उस शख्स को पहले जनरल वॉर्ड में शिफ्ट किया जाता है और उसके बाद ही कहीं जाकर उसे घर जाने की अनुमति मिलती है।

फैकल्टी ऑफ इंटेंसिव केयर मेडिसिन के डीन डॉ. एलिसन पिटार्ड का कहना है कि क्रिटिकल केयर के बाद किसी भी शख्स को नॉर्मल लाइफ में लौटने में 12 से 18 महीने लग सकते हैं। अस्पताल के बिस्तर पर लंबे समय तक पड़े रहने से मांसपेशियों को बड़े पैमाने पर नुकसान होता है। रोगी कमजोर हो जाता है और ऐसे में मांसपेशियों में दोबारा ताकत आने में समय लगता है।

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फिजियोथेरेपी - फोटो : File

कुछ मामलों में तो लोगों को दोबारा से नॉर्मल तरीके से चलना-फिरना करने के लिए फिजियोथेरेपी तक लेनी पड़ जाती है। आईसीयू में रहने के दौरान शरीर कई तरह के इलाज और माध्यमों से गुजरता है और ऐसे में कई बार साइकोलॉजिकल परेशानी की भी आशंका हो जाती है। कार्डिफ एंड वेले यूनिवर्सिटी हेल्थ बोर्ड के क्रिटिकल केयर फिजियोथेरेपिस्ट पॉल ट्वोज कहते हैं, "इस बीमारी के साथ वायरल थकान निश्चित रूप से एक बहुत बड़ा कारक है।"

चीन और इटली से कई ऐसी रिपोर्ट्स आई हैं जिनमें कहा गया है कि मरीजों में पूरे शरीर में थकान, सांस लेने में तकलीफ, लगातार खांसी और सांस का उतरना-चढ़ना लक्षण दिखे। साथ ही नींद भी। कई बार रोगियों को ठीक होने में बहुत समय लगा...महीने भी। लेकिन यह बात सभी पर लागू हो ऐसा नहीं है। कुछ लोग आईसीयू में कम वक्त तक रहते हैं जबकि कइयों को लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखना होता है।

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