मां का दूध किसी भी नवजात के लिए प्रकृति का पहला और संपूर्ण आहार होता है। जन्म के तुरंत बाद मिलने वाला गाढ़ा पीला दूध बच्चे के लिए अमृत समान माना जाता है। यह न केवल पोषण देता है, बल्कि बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में भी मदद करता है। डॉक्टर कहते हैं, सभी बच्चों को पहले 6 महीने तक केवल स्तनपान ही कराया जाना चाहिए, इसी से उन्हें शरीर के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं। ये बच्चों को होने वाली कई प्रकार की बीमारियों से बचाए रखने में भी मददगार है।
Health Risk: प्रकृति का सबसे शुद्ध आहार भी हुआ दूषित, माइक्रोप्लास्टिक के बाद अब मां के दूध में मिला यूरेनियम
- अमर उजाला में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार के छह जिलों में माताओं के दूध में यूरेनियम की अधिकता मिली है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसे सेहत के लिए गंभीर मान रहे हैं।
क्या कहती है रिपोर्ट?
एम्स दिल्ली सहित अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में शामिल सभी 40 सैंपल में यूरेनियम पाया गया है। एम्स दिल्ली के वरिष्ठ डॉ. अशोक शर्मा ने कहा, 70% शिशुओं में जोखिम का संकेत जरूर मिला है, लेकिन स्वास्थ्य पर इसका वास्तविक प्रभाव कम होने की संभावना है। माताओं को स्तनपान बंद करने की कोई जरूरत नहीं है।
अक्तूबर, 2021 से जुलाई, 2024 के बीच किए गए इस शोध में 17 से 35 वर्ष आयु की 40 माताओं से लिए गए नमूनों का विश्लेषण किया गया। दूध में यूरेनियम की मात्रा 0-5.25 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाई गई। सभी नमूनों में यू-238 की उपस्थिति यह संकेत देती है कि क्षेत्र की भूजल प्रणाली में भारी धातुओं की मौजूदगी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि संभवत: बिहार में पीने के पानी में यूरेनियम की अधिकता के कारण ये संकट उत्पन्न हो गया है। गौरतलब है कि रिपोर्ट्स के अनुसार पेयजल में यूरेनियम को लेकर डब्ल्यूएचओ का मानक 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर जबकि बिहार में 1.7% भूजल में इससे अधिक का स्तर देखा गया है।
यूरेनियम हो सकता है सेहत के लिए खतरनाक
मेडिकल रिपोर्ट्स से पता चलता है कि यूरेनियम के अधिक संपर्क के कारण कई प्रकार से इंसानी सेहत को नुकसान हो सकता है।
- यूरेनियम को मुख्य रूप से किडनी के लिए खतरनाक माना जाता है। इसे भोजन या सांस के जरिए अंदर लेने से किडनी को नुकसान हो सकता है।
- अगर हवा में यूरेनियम की अधिकता है तो सांस के जरिए इसे अंदर लेने से फेफड़ों को नुकसान हो सकता है। इससे फाइब्रोसिस और एम्फाइजिमा जैसी सांस की बीमारियां हो सकती हैं।
- इसके अधिक संपर्क के कारण त्वचा और आंखों में जलन की समस्या बढ़ जाती है।
मां के दूध में माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती मात्रा
इससे पहले अक्तूबर 2022 में मेडिकल जर्नल पॉलिमर में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों की टीम ने पहली बार मां के दूध में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी को लेकर अलर्ट किया था। इटली में किए गए इस अध्ययन के लिए बच्चे के जन्म के एक सप्ताह बाद 34 स्वस्थ माताओं से स्तन के दूध के सैंपल लिए गए। उनमें से 75% में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पर्यावरण में जिस प्रकार से माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा बढ़ रही है, यह उस माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकती है। इस संबंध में खान-पान की कई चीजों को लेकर भी अध्ययन किया गया।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
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