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World Malaria Day: डॉक्टर की सलाह- मलेरिया से बचाव के लिए जरूरी है सही जानकारी, न करें ये छोटी-छोटी गलतियां

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Fri, 25 Apr 2025 07:36 PM IST
सार

भारत में मलेरिया का संक्रमण मानसून के मौसम में सबसे ज्यादा होता है, आमतौर पर जून से सितंबर तक। बारिश और स्थिर पानी के कारण मलेरिया के मच्छरों के लिए प्रजनन आसान हो जाता है, यही कारण है कि इन दिनों में संक्रमण के मामलों में तेजी से उछाल आता है। 

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मच्छरों के कारण मलेरिया होने का खतरा - फोटो : Freepik.com

भारत में हर साल मलेरिया के लाखों मामले सामने आते हैं जिससे मानसून के दिनों में (जून-सितंबर) स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव बढ़ जाता है। एनोफिलीज नामक मच्छरों के कारण होने वाली ये बीमारी कुछ स्थितियों में जानलेवा भी हो सकती है, जिसको लेकर सभी लोगों को निरंतर सावधानी बरतते रहने की सलाह दी जाती है।



भारतीय आबादी में भी मलेरिया एक बड़ा खतरा रहा है, जिसके कारण हर साल अस्पतालों में लोगों को भारी भीड़ देखी जाती रही है। मलेरिया के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने और इस बीमारी को नियंत्रित करने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए हर साल 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है।

डॉक्टर कहते हैं, मलेरिया से बचाव के लिए दो चीजें सबसे जरूरी हैं- सही जानकारी और इसके अनुसार बचाव के उपाय करते रहना। आइए समझते हैं कि आप मलेरिया के खतरों से कैसे सुरक्षित रह सकते हैं?


(ये भी पढ़िए- इन देशों ने मलेरिया का पूरी तरह से कर दिया है खात्मा, जानिए भारत में कैसी है स्थिति)

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मलेरिया का खतरा - फोटो : Freepik.com

मलेरिया के मामलों में आई कमी

अमर उजाला से बातचीत में दिल्ली स्थित एक अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन के डॉक्टर रविंद्र वाजपेयी कहते हैं, सरकार के अथक प्रयासों के चलते पिछले कुछ वर्षों में मलेरिया के मामले और इसकी मृत्युदर में काफी कमी आई है। 

भारत में मलेरिया का संक्रमण मानसून के मौसम में सबसे ज्यादा होता है, आमतौर पर जून से सितंबर तक। बारिश और स्थिर पानी के कारण मलेरिया के मच्छरों के लिए प्रजनन आसान हो जाता है, यही कारण है कि इन दिनों में संक्रमण के मामलों में तेजी से उछाल आता है। 

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मलेरिया से बचाव के लिए क्या करें? - फोटो : Freepik.com

मलेरिया के बारे में जानिए

डॉक्टर कहते हैं, वैसे तो मलेरिया का संक्रमण पूरे साल हो सकता है, लेकिन मानसून और इसके बाद के कुछ महीनों में मामले सबसे ज्यादा रिपोर्ट किए जाते रहे हैं। संक्रमित मच्छरों में प्लाज्मोडियम परजीवी होते हैं। जब यह मच्छर काटता है तो परजीवी खून में मिल जाते हैं और लिवर में पहुंचकर पनपने लगते हैं। मलेरिया के लक्षण संक्रमित मच्छर के काटने के 10-15 दिन बाद दिखाई देते हैं। 

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, मलेरिया की स्थिति में सभी लोगों को कुछ गलतियों से बचना चाहिए। संक्रमण की समय पर पहचान कर ली जाए तो इसके गंभीर रूप लेने के खतरों को कम किया जा सकता है।

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मलेरिया के कारण होने वाली समस्याएं - फोटो : Freepik.com

किन लक्षणों से की जा सकती है इसकी पहचान

मलेरिया होने पर सबसे पहले ठंड लगती है और कंपकंपी के साथ बुखार आता है। इसके बाद पसीना आकर बुखार उतर जाता है। इसके अन्य लक्षणों में तेज सिर दर्द, हृदय गति का तेज चलना, छाती में दर्द, मतली, उल्टी और दस्त हैं। मरीज को मांसपेशियों में दर्द और अत्यधिक थकान हो सकती है।

मलेरिया अगर बढ़ जाए और परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने लगें तो इससे एनीमिया भी हो सकता है। गंभीर मामलों में कुछ लोगों को त्वचा और आंखों के पीला पड़ने (पीलिया) का खतरा हो सकता है।

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ठंड के साथ बुखार आए तो हो जाएं सावधान - फोटो : Freepik.com

मलेरिया के दौरान ये गलतियां न करें

मलेरिया एक घातक बीमारी है, जिसका समय पर उपचार प्राप्त करना जरूरी है। घर पर या खुद से ही इसका इलाज न करें। इसके इलाज में हर मरीज के लिए एक सी दवा नहीं होती है इसलिए डॉक्टर की राय जरूरी है।

मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने के अलावा मलेरिया संक्रमित मां से अजन्मे बच्चे, संक्रमित का खून चढ़ाने और संक्रमित व्यक्ति को लगाई गई सुई का दोबारा इस्तेमाल करने से फैल सकता है। छोटे बच्चों, शिशुओं, वृद्धों, गैर- मलेरिया क्षेत्रों से आने वाले यात्रियों और गर्भवती महिलाओं को इसका खतरा अधिक रहता है। इसलिए इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें। 

यदि मलेरिया बुखार में शरीर का तापमान बढ़ या घट रहा है तो डॉक्टर की सलाह पर रक्त जांच कराएं। तापमान बढ़ने और पसीना आने पर ठंडा टॉवल लपेट लें। थोड़े-थोड़े अंतराल पर माथे पर ठंडी पट्टियां रखते रहे। 



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नोट: 
यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

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