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Bargaining: मोल-भाव में पुरुषों से बेहतर होती हैं महिलाएं, जानिए कैसे आती है ये कुशलता
लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवानी अवस्थी
Updated Sun, 13 Oct 2024 04:50 PM IST
सार
महिलाएं हमेशा से बड़ी कुशलता से घरेलू खर्चों को प्रबंधित करती आई हैं। वे सीमित बजट में सबसे अच्छी और किफायती वस्तुएं खरीदती हैं और इसी प्रक्रिया में मोल-भाव करना उनकी कुशलता का हिस्सा बन जाता है।
आप जब बाजार जाती होंगी तो मोल-भाव भी जरूर करती होंगी और सही दाम में अपनी पसंदीदा चीज खरीदकर खुश भी होती होंगी। मनोवैज्ञानिक इस मोल-भाव करने को जिंदगी में एक ‘विशेष कला’ मानते हैं, जिसमें न केवल अच्छे संवाद कौशल की जरूरत होती है, बल्कि समझदारी, धैर्य और आत्मविश्वास भी जरूरी है।
“मैं हमेशा आपकी ही दुकान से कपड़े खरीदती हूं और आप इतना दाम बोल रहे हो!”
“नहीं मैडम जी, 500 रुपये से एक पैसा भी कम नहीं होगा।”
“अरे! क्या बात कर रहे हो भैया! पिछली दुकान से मिश्रा आंटी ने तो यह साड़ी 300 रुपये में खरीदी हैं।”
“मैडम जी, उस साड़ी की क्वालिटी अच्छी नहीं होगी। चलो, 490 में ले जाओ मैडम जी।”
“नहीं-नहीं, 350 रुपये से एक पैसा ज्यादा नहीं दूंगी। देना हो तो बोलो?”
“अच्छा चलो, न आपकी, न मेरी। 450 रुपये में ले जाओ।”
“रहने दो, नहीं चाहिए”, यह कहते हुए अनामिका आगे बढ़ गई। तभी दुकानदार ने पीछे से आवाज लगाई, “अरे बात तो सुनो मैडम जी, नाराज क्यों होती हो? आप मेरी पुरानी ग्राहक हो। 400 रुपये में ले जाओ, पर किसी को बताना नहीं कि यह साड़ी आपने कितने रुपये में खरीदी है।”
“ठीक है भैया!” इस तरह अनामिका ने सौदा पक्का कर लिया।
वैसे तो बाजार का हमेशा से ऐसा ही हाल रहा है, फिर चाहे वह इंदौर का राजवाड़ा बाजार हो, वाराणसी का गोदौलिया मार्केट या दिल्ली का चांदनी चौक। मोल-भाव कर ग्राहक मन ही मन यह सोचकर खुश हो जाते हैं कि उन्हें 500 की चीज 400 रुपये में मिल गई और दुकानदार यह सोचकर खुश है कि मुनाफा कम ही सही, पर बिक्री तो हुई। भारतीय समाज में खरीदारी करते हुए मोल-भाव करना मानो एक कला मानी जाती है। यह प्रक्रिया हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई है। मोल-भाव खरीदारी की एक ऐसी कला है, जिसमें व्यक्ति अपनी कुशलता, धैर्य और चतुराई से किसी वस्तु का दाम कम कराता है। दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर लोगों का मानना है कि मोल-भाव करने में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक कुशल होती हैं।
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बाजार में राखी खरीदती महिलाएं
- फोटो : अमर उजाला
महिलाओं की कुशलता
भारतीय समाज में घर-परिवार की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही होती है। यही वजह है कि खरीदारी में महिलाओं की भूमिका अधिक होती है, फिर चाहे वह दैनिक घरेलू सामान हो, बच्चों के लिए किताबें-कपड़े हों या फिर त्योहारों की खरीदारी, महिलाओं का योगदान और निर्णय महत्वपूर्ण है। यह मोल-भाव करने का कौशल केवल बाजार से नहीं जुड़ा है, बल्कि महिलाओं की घरेलू जिम्मेदारियों से भी जुड़ा हुआ है।
महिलाएं हमेशा से बड़ी कुशलता से घरेलू खर्चों को प्रबंधित करती आई हैं। वे सीमित बजट में सबसे अच्छी और किफायती वस्तुएं खरीदती हैं और इसी प्रक्रिया में मोल-भाव करना उनकी कुशलता का हिस्सा बन जाता है। आंकड़े बताते हैं कि भारतीय परिवारों में महिलाओं की खरीदारी में हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से भी अधिक है। ऐसे में देखा जाए तो मोल-भाव केवल पैसे बचाने का तरीका नहीं है, बल्कि यह निर्णय लेने की क्षमता और आर्थिक समझदारी का भी प्रतीक है।
बचत से मिलती संतुष्टि
अक्सर पुरुष महिलाओं से प्रश्न करते हैं कि “ऐसे बीच बाजार तुम्हें मोल-भाव करके मिलता क्या है?” जिसका विशेषज्ञ उत्तर देते हैं, “आत्मसंतुष्टि।” मोल-भाव में यकीन रखने वाले कभी एक दाम वाली दुकान से सामान खरीदना पसंद नहीं करते, क्योंकि ऐसी दुकानों पर वे मन-मुताबिक मोल-भाव नहीं कर पाते हैं और उन्हें खरीदारी करते समय संतुष्टि नहीं मिलती है। इन दुकानों पर ग्राहक को जाते हुए लगता है कि कहीं वह ठगा न जाए! वैसे भी यह धारणा पीढ़ियों से चली आ रही है कि पुरुष घर के बाहर का प्रबंधन संभालते हैं तो महिलाएं घर के अंदर का। इसलिए भारतीय समाज में महिलाओं को पारंपरिक रूप से परिवार का प्रबंधक माना जाता है।
बचपन से ही उन्हें घर-गृहस्थी की चीजों की सीख दी जाती है। कम से कम खर्च में घर को कैसे चलाना है, यह हुनर महिलाओं को अक्सर दादी-नानी और मां से विरासत में मिलता है। महिलाओं के पास घर के वित्तीय मामलों का जिम्मा होता है और परिवार का मुखिया उनसे अपेक्षा करता है कि वे बचत करें। वे अपनी छोटी-बड़ी जरूरतों को इसी धनराशि से पूरा करें। इसी जिम्मेदारी को सही तरीके और प्रभावी ढंग से निभाने के लिए महिलाएं मोल-भाव जैसी रणनीतियों का सहारा लेती हैं।
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सस्ती बाजार
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मोल-भाव का मनोविज्ञान
महिलाएं मोल-भाव को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती हैं और अपनी बातों की कला से दुकानदार से पैसे कम कराने का हुनर अच्छी तरह जानती हैं। मोल-भाव का सीधा संबंध महिलाओं के मनोविज्ञान और उनके व्यवहार पर निर्भर करता है। महिलाएं स्वभाव से शांत और शालीन होती हैं। उनका यही गुण वस्तु की परख करने और मूल्य निर्धारण करने में मदद करता है। उनके पास बाजार में उपलब्ध वस्तुओं की तुलना करने की कुशलता होती है। वे सबसे कम दाम में सबसे बेहतर चुनाव करने का हुनर जानती हैं, साथ ही बातचीत की कला में भी निपुण होती हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मोल-भाव का अर्थ केवल किसी वस्तु की कीमत कम कराना ही नहीं होता, बल्कि दुकानदार को अपने पक्ष में निर्णय लेने के लिए राजी करना भी होता है।
डिजिटल युग में नया रूप
ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते चलन के बावजूद अब भी लोग मोल-भाव के अवसर तलाशते रहते हैं। इसी वजह से डिजिटल युग में भी मोल-भाव की प्रथा खत्म नहीं हुई है, बल्कि इसने अब एक नया रूप ले लिया है। महिलाएं डिजिटल प्लेटफॉर्म पर छूट और ऑफर का लाभ उठाने में सबसे आगे होती हैं। ऑनलाइन एप से भी वे कोई भी चीज ऐसे ही नहीं खरीदतीं। वे पहले अलग-अलग वेबसाइट्स पर जाकर वस्तुओं की कीमत की जानकारी लेती हैं, क्वालिटी और रिव्यू देखती हैं, फिर जब पूरी तरह संतुष्ट हो जाती हैं, तभी वस्तु को खरीदने के लिए ऑर्डर करती हैं।
कहने का मतलब यह कि वे केवल ऑनलाइन उत्पादों की कीमतों की तुलना ही नहीं करतीं, बल्कि अलग-अलग वेबसाइट्स और एप्स का इस्तेमाल करके कम से कम दाम में अच्छी से अच्छी वस्तुओं की खरीदारी करती हैं। आंकड़े बताते हैं कि लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान छूट, कूपन कोड और प्रमोशनल ऑफर्स का इस्तेमाल करती हैं। आश्चर्य की बात है कि केवल शहरी महिलाएं ही नहीं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी अमूमन यह जानकारी होती है कि कब वस्तुएं किफायती कीमत पर उपलब्ध होंगी और कब नहीं, यानी कि पारंपरिक बाजार हो या ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म, महिलाओं की मोल-भाव करने की प्रवृत्ति बरकरार है।
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सस्ती बाजार
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आर्थिक महत्व भी कम नहीं
मोल-भाव व्यक्तिगत लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक आर्थिक महत्व भी है। महिलाएं मोल-भाव के माध्यम से परिवार के खर्च को कम करती हैं तो इसका सकारात्मक प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है। यह प्रथा परिवार के बजट को संतुलित रखने में तो मदद करती है, साथ ही बाजार में मांग और आपूर्ति के संतुलन को भी प्रभावित करती है।
महिलाएं मोल-भाव करके उत्पादों की कीमत कम कराती हैं, जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। दुकानदार वस्तुओं की कीमत में छूट देते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को किफायती दरों पर वस्तुएं मिलती हैं। इस प्रकार मोल-भाव का प्रभाव केवल व्यक्तिगत आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर समाज और बाजार पर भी पड़ता है। हालांकि महिलाएं यह सोचकर खुश होती है कि उन्होंने दुकानदार से रुपये कम करा लिए, लेकिन सच्चाई तो यह है कि दुकानदार कभी भी नुकसान उठाकर सामान नहीं बेचता।
हार्मोन का योगदान
जब हम सोचते हैं कि महिलाएं मोल-भाव में निपुण होती हैं तो अक्सर इसका श्रेय सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को दिया जाता है, लेकिन क्या इसका संबंध हार्मोन परिवर्तनों से भी हो सकता है? मनोविज्ञान के अनुसार, इस प्रश्न का उत्तर ‘हां’ हो सकता है। कई अध्ययनों में सामने आया है कि हार्मोनल बदलाव महिलाओं के व्यवहार, निर्णय लेने की क्षमता और मोल-भाव करने की कला को प्रभावित करते हैं।
महिलाओं में मौजूद हार्मोन उनके शारीरिक और मानसिक कार्यों को काफी हद तक नियंत्रित करते हैं। एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और ऑक्सीटोसिन जैसे हार्मोन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। ये हार्मोन महिलाओं के मूड, भावनाओं और संवाद कौशल को प्रभावित करते हैं। मोल-भाव करने की कला भी इनके प्रभाव से अछूती नहीं है। एस्ट्रोजन महिलाओं के संवाद और सामाजिक कौशल को प्रभावित करता है। ऑक्सीटोसिन, जिसे ‘लव हार्मोन’ भी कहा जाता है, सामाजिक बंधनों और विश्वास के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह हार्मोन महिलाओं में बातचीत के दौरान सकारात्मक और मित्रवत् माहौल बनाने में मदद करता है। प्रोजेस्टेरोन का प्रभाव महिलाओं के धैर्य और आत्मसंयम पर पड़ता है। मोल-भाव में धैर्य और संयम एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। ऐसे में प्रोजेस्टेरोन महिलाओं को धैर्यपूर्वक अपनी बात रखने और दूसरे पक्ष की बात सुनने में मदद करता है। इसीलिए मनोविज्ञान में महिलाओं के मोल-भाव करने को कला के रूप में देखा जाता है।
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सस्ती बाजार
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जो अच्छी होममेकर होती हैं...
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. सुविधा शर्मा कहती हैं, महिलाओं के मोल-भाव के पीछे मनोवैज्ञानिक पक्ष यह है कि महिलाएं अनुकरण से सीखती हैं। वे बचपन से ही दादी-नानी को मोल-भाव करते देखती रहती हैं। ऐसे में उन्हें अंदाज हो जाता है कि वस्तु का सही मूल्य क्या है और वे मोल-भाव कर उन्हीं दामों पर वस्तुओं को खरीदने का प्रयास करती हैं।
इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि आज भी मध्यमवर्गीय परिवारों में महिलाओं को घर खर्च के लिए एक सीमित मात्रा में ही धनराशि दी जाती है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे उसी धनराशि को सही जगह निवेश करें। ऐसे में वे अपनी बौद्धिक क्षमता, बेहतर प्रबंधन और बड़े-बुजुर्गों से मिले ज्ञान के कारण मोल-भाव में दक्ष हो जाती हैं। महिलाएं अपनी सारी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती हैं और एक अच्छी होम मेकर के साथ कुशल प्रबंधक भी बन जाती हैं। इसीलिए वे मोल-भाव करने में प्रबल होती हैं। इसके अलावा कई बार महिलाएं इसलिए भी मोल-भाव करती हैं कि कोई उन्हें यह न बोल दे कि ‘तुम ठगी गईं’, क्योंकि इसे वे अपनी काबिलियत पर सवालिया निशान समझती हैं।
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