Swami Vivekananda Birth Anniversary 2025 : भारत के महान आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती हर साल 12 जनवरी को मनाई जाती है। इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जीवन प्रेरणा का अद्भुत स्रोत है, जो युवाओं को सफलता के पथ पर आगे बढ़ने की सीख देता है। उनके विचार और भाषण आज भी मार्गदर्शक के रूप में हमारे सामने हैं। सांसारिक मोह-माया को त्यागकर, उन्होंने ईश्वर और ज्ञान की खोज में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
Swami Vivekananda Jayanti 2025: स्वामी विवेकानंद से जुड़ी ये रोचक बातें, देती हैं प्रेरणा
जीवन से जुड़ी कई प्रेरणादायक कहानियां आज भी लोगों के लिए सफलता और आत्म-प्रेरणा का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
विवेकानंद के सन्यासी बनने की कहानी
स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में हुआ था और उनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। उनकी माता धार्मिक स्वभाव की थी और पूजा-पाठ में गहरी रुचि रखती थीं। नरेंद्र नाथ बचपन से ही अपनी माता के धार्मिक आचरण और नैतिकता से प्रभावित थे। यही कारण था कि मात्र 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने सांसारिक मोह-माया को त्याग कर संन्यास का मार्ग अपना लिया और ज्ञान की खोज में निकल पड़े। उनका जीवन युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। इसलिए स्वामी विवेकानंद की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।
विवेकानंद की जान बचाने वाले फकीर की कहानी
1890 में, स्वामी विवेकानंद हिमालय की यात्रा कर रहे थे। इस दौरान उनके साथ स्वामी अखंडानंद भी थे। एक दिन, काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न विवेकानंद को आत्मज्ञान की अनुभूति हुई। यात्रा जारी रखते हुए, जब वे अल्मोड़ा से करबला कब्रिस्तान के पास पहुंचे, तो थकान और भूख के कारण वे अचेत होकर गिर पड़े। एक फकीर ने उन्हें खीरा खिलाया, जिससे वे फिर से होश में आए। यह घटना उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण और प्रेरक कहानी बन गई।
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स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक और गर्व का क्षण था। अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने "अमेरिका के भाइयों और बहनों" कहकर की, जिसने पूरे सभागार को भावनाओं से भर दिया। उनके संबोधन के बाद सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, जो पूरे दो मिनट तक जारी रही।
स्वामी विवेकानंद के भाषण के मुख्य बिंदु
'अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों, मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को शरण में रखा है।' 'मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।'