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MP News: 14 साल बाद राम पथ से लौटे बनवासी महाराज, बड़ागांव में होगा भव्य स्वागत
न्यूज डेस्क, अमर उजाला,बड़ागांव
Published by: आशुतोष प्रताप सिंह
Updated Fri, 16 May 2025 03:56 PM IST
सार
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के बड़ागांव के एक युवक पर रामचरितमानस का इतना गहरा असर हुआ कि उसने 14 साल के वनवास का संकल्प ले लिया। 15 मई 2011 को उसने अपना घर और परिवार छोड़ दिया और भगवान राम के रास्ते पर चल पड़ा।
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बनवासी महाराज
- फोटो : अमर उजाला
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मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के बड़ागांव के एक युवक पर रामचरितमानस का इतना गहरा असर हुआ कि उसने 14 साल का वनवास लेने का फैसला कर लिया। 15 मई 2011 को उसने अपना घर परिवार छोड़ दिया और राम के पदचिन्हों पर चल पड़ा। अब 14 साल बाद वह युवक संत बनकर अपनी जन्मभूमि लौट आया है।
टीकमगढ़ जिले के बड़ागांव में रहने वाले नंदकिशोर और उनकी पत्नी यशोदा के घर रोज़ रामचरितमानस का पाठ होता था। उनके चार बेटियां थीं। जब उन्हें पांचवीं संतान के रूप में एक बेटा हुआ तो उसका नाम रखा गया तुलसीराम। जब तुलसीराम मां के गर्भ में थे, तभी से उन्हें रामचरितमानस सुनाई जाती थी। धीरे धीरे वे खुद भी रामचरितमानस पढ़ने लगे।
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कक्षा 5 में पढ़ते हुए तुलसीराम को रामायण से गहरा लगाव हो गया। हाईस्कूल तक पढ़ाई के बाद उनकी शादी कर दी गई और उन्हें दो बच्चे भी हुए। लेकिन उनका मन पारिवारिक जीवन में नहीं लग रहा था। वे लगातार रामचरितमानस का पाठ करते रहे और एक दिन उन्होंने अपने परिवार को बताया कि वे 14 साल के वनवास पर जाना चाहते हैं।
घर का इकलौता बेटा होने के बावजूद परिवार ने तुलसीराम के फैसले को समझा और 15 मई 2011 को उन्हें खुशी खुशी वनवास पर भेज दिया। वे पैदल अयोध्या पहुंचे, वहां सरयू नदी में स्नान किया और रामपथ गमन की शुरुआत की। इस 14 साल की यात्रा में वे लगभग 30,000 किलोमीटर पैदल चले। जंगलों और अलग अलग जगहों में रहते हुए, कई संतों से मुलाकात हुई। इन्हीं संतों ने उन्हें नया नाम दिया वनवासी महाराज।
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बनवासी महाराज
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राम पथ गमन की यात्रा के दौरान तुलसीराम अब बनवासी महाराज बन चुके थे। उन्होंने साधु का वेश धारण कर लिया था। अयोध्या से पैदल चलते हुए वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु तक पहुंच गए।
इस यात्रा में उन्होंने रामचरितमानस में बताए गए उन स्थानों पर भी कदम रखा, जहां आम आदमी के लिए पहुंचना बहुत मुश्किल होता है। बनवासी महाराज बताते हैं कि इस सफर में कई बार कठिनाइयां आईं, भूख, बारिश और जंगल की चुनौतियां थीं, लेकिन बहुत से लोगों से उन्हें प्यार और सम्मान भी मिला। वे कहते हैं कि पूरा 14 साल का वनवास भगवान राम की भक्ति और कृपा से पूरा हुआ और अब वे सकुशल अपने घर लौट आए हैं।
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तुलसीराम के पिता अपने बेटे की 14 साल की वनवास यात्रा को लेकर बहुत परेशान थे। उन्होंने अपने इकलौते बेटे को कई बार समझाया कि वह वापस घर लौट आए, लेकिन बेटा नहीं माना। आखिरकार, साल 2024 में तुलसीराम के पिता का निधन हो गया। बनवासी तुलसीराम को इसकी खबर भी दी गई, लेकिन उन्होंने अपना प्रण नहीं तोड़ा और वापस नहीं लौटे।
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तुलसीराम तमिलनाडु से पैदल यात्रा करते हुए 10 मई को अयोध्या पहुंचे। वहां उन्होंने सरयू नदी में स्नान किया। इसके बाद 14 मई को वे बुंदेलखंड की अयोध्या यानी ओरछा पहुंचे, जहां उन्होंने भगवान राम राजा के दर्शन किए। 15 मई की सुबह वे ओरछा से चलकर टीकमगढ़ पहुंचे। अब वे बड़ा गांव जाएंगे, जहां उनका भव्य स्वागत किया जाएगा।
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