Pradosh Vrat 2025: इस बार सावन से पहले शिव भक्तों को महादेव को प्रसन्न करने का एक और अवसर मिल रहा है। दरअसल, 11 जुलाई 2025 से सावन महीने की शुरुआत होगी। लेकिन 8 जुलाई 2025 को आषाढ़ माह का अंतिम प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। यह तिथि देवों के देव महादेव को समर्पित है। यदि प्रदोष पर शिव जी को केवल जल चढ़ाया जाए, तो कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती हैं। साथ ही तनाव, आर्थिक दिक्कतें और रोग से छुटकारा मिलता है। ऐसे में आइए इस दिन की पूजा विधि और शिव मंत्रों को विस्तार से जानते हैं।
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Pradosh Vrat 2025: आषाढ़ माह का अंतिम प्रदोष व्रत आज, ऐसे पाएं महादेव की विशेष कृपा
धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: मेघा कुमारी
Updated Tue, 08 Jul 2025 05:41 AM IST
सार
Pradosh Vrat 2025: 8 जुलाई 2025 को आषाढ़ माह का अंतिम प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। यह तिथि देवों के देव महादेव को समर्पित है। यदि प्रदोष पर शिव जी को केवल जल चढ़ाया जाए, तो कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती हैं।
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Pradosh Vrat 2025
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Pradosh Vrat 2025
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प्रदोष व्रत पूजा विधि
- प्रदोष व्रत के दिन पूजा हमेशा प्रदोष काल में की जाती हैं। इसलिए मुहूर्त के अनुसार पूजा स्थान पर एक चौकी रखें। इसके बाद चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उसपर भगवान शिव की मूर्ति रखें।
- इस दौरान शिवलिंग रखना न भूलें।
- अब महादेव के मंत्रों का जप करते हुए शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, घी और शक्कर से अभिषेक करें।
- प्रभु को फूल अर्पित करें। इसके बाद धतूरा, बेलपत्र और चंदन लगाएं। अब दीपक जलाकर सुख-समृद्धि की कामना करें।
- प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें। अंत में आरती करते हुए मिठाई का भोग लगाएं।
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Pradosh Vrat 2025
- फोटो : freepik
महामृत्युंजय मंत्र
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
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Pradosh Vrat 2025
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सुख और शांति प्राप्त करने का मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!
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Pradosh Vrat 2025
- फोटो : Amar Ujala
भगवान शिव की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
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