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Kawad Yatra 2025: क्या है कांवड़ यात्रा का इतिहास? जानें कैसे हुई शुरुआत और क्या है महत्व

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: ज्योति मेहरा Updated Thu, 03 Jul 2025 12:03 PM IST
सार

सावन के महीना में शिवभक्त केसरिया वस्त्र धारण कर कांवड़ यात्रा पर निकल जाते हैं। इस परंपरा को बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस धार्मिक परंपरा की शुरुआत कैसे हुई थी? इसका इतिहास क्या है? आइए जानते हैं इसके पीछे की प्रमुख मान्यताएं क्या हैं।
 

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Kawad Yatra 2025 know kawad yatra history and significance in hindi
कांवड़ यात्रा का इतिहास - फोटो : अमर उजाला
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Kawad Yatra 2025: सावन का महीना शुरू होते ही शिवभक्त केसरिया वस्त्र धारण कर कांवड़ यात्रा पर निकल जाते हैं। श्रद्धालु गंगाजल से भरी कांवड़ लेकर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए लम्बी यात्राएं तय करते हैं। यह परंपरा मुख्य रूप से उत्तर भारत में देखने को मिलती है। पर क्या आप जानते हैं कि इस धार्मिक परंपरा की शुरुआत कैसे हुई थी? इसका इतिहास क्या है? आइए जानते हैं इसके पीछे की प्रमुख मान्यताएं क्या हैं।

कांवड़ यात्रा का इतिहास
कांवड़ यात्रा को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा की थी। कहा जाता है कि वे उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पास स्थित पुरा महादेव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाए थे। आज भी लाखों श्रद्धालु इस मार्ग पर चलकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।
 

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श्रवण कुमार से जुड़ी मान्यता - फोटो : freepik
श्रवण कुमार से जुड़ी मान्यता
कुछ विद्वानों का मानना है कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की नींव रखी थी। कथा के अनुसार अपने अंधे माता-पिता की तीर्थ यात्रा की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने उन्हें कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लाया और गंगा स्नान कराया। लौटते समय वे साथ में गंगाजल भी ले गए, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
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भगवान राम और बाबाधाम की यात्रा - फोटो : freepik
भगवान राम और बाबाधाम की यात्रा
एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम ने भी कांवड़ यात्रा की थी। कहा जाता है कि उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। इसे भी कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।

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रावण और पुरा महादेव की कथा - फोटो : iStock
रावण और पुरा महादेव की कथा
पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के बाद जब भगवान शिव का कंठ नीला हो गया, तब रावण ने उनकी आराधना की। वह कांवड़ में जल भरकर 'पुरा महादेव' पहुंचा और शिवजी का जलाभिषेक किया। कहा जाता है कि इससे शिवजी विष के प्रभाव से मुक्त हुए, और यहीं से कांवड़ यात्रा की परंपरा प्रारंभ हुई।
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देवताओं ने की थी सबसे पहले जलाभिषेक की शुरुआत - फोटो : freepik
देवताओं ने की थी सबसे पहले जलाभिषेक की शुरुआत
एक और मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष पिया, तो देवताओं ने उनके ताप को शांत करने के लिए पवित्र नदियों का शीतल जल उन पर अर्पित किया। उसी समय से गंगाजल से शिव का अभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई, जो आज कांवड़ यात्रा के रूप में प्रचलित है।

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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