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Chanakya Niti: ऐसे लोगों से दूरी बनाना ही है समझदारी, वरना जीवन भर रहेगा पछतावा

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: श्वेता सिंह Updated Tue, 06 May 2025 10:26 AM IST
सार

Chanakya Niti Sutra: आचार्य चाणक्य ने हमें यह सिखाया है कि जीवन में किसी भी कठिनाई या संघर्ष का सामना हमें सही मार्गदर्शन और अच्छे लोगों के साथ करना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन को समृद्ध और खुशहाल बना सकें।

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Chanakya Niti Sutras These Types of People Can Ruin Your Life
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Chanakya Niti - फोटो : अमर उजाला
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Chanakya Niti For Life: आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास के महानतम विचारकों में से एक रहे हैं। उनकी नीतियां न केवल राजनीति और समाज में प्रासंगिक हैं, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी उनके विचारों को अपनाकर हम अपनी जिंदगी को सही दिशा में ले जा सकते हैं। चाणक्य ने जीवन के प्रत्येक पहलू को लेकर अपने विचार प्रस्तुत किए, जिसमें से कुछ ऐसी नीतियां हैं, जो हमें यह सिखाती हैं कि हमें किन लोगों से बचना चाहिए और क्यों।
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चाणक्य का मानना था कि जीवन में बहुत से लोग होते हैं, जिनका साथ हमारे लिए हानिकारक हो सकता है। विशेष रूप से दुष्ट, नकारात्मक और अहंकारी लोग हमारी मानसिक शांति को भंग कर सकते हैं। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में दुष्ट लोगों से बचने का महत्वपूर्ण सुझाव दिया है और इसके लिए उन्होंने सांप की तुलना का प्रयोग किया है। आइए जानते हैं चाणक्य नीति के कुछ प्रमुख श्लोकों के बारे में, जो यह स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार से हमें दुष्ट व्यक्तित्व से बचना चाहिए और किन व्यक्तियों से दूरी बनाए रखनी चाहिए। 
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Chanakya Niti - फोटो : adobe stock
दुष्ट व्यक्ति और सांप की तुलना
चाणक्य नीति में एक प्रसिद्ध श्लोक है जिसमें दुष्ट व्यक्ति और सांप की तुलना की गई है-
दुर्जनेषु च सर्पेषु वरं सर्पो न दुर्जनः।
सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे-पदे।।

अर्थात, दुष्ट व्यक्ति और सांप की तुलना की जाए तो सांप बेहतर है, क्योंकि सांप एक बार डसता है, जबकि दुष्ट व्यक्ति हर कदम पर धोखा देता है। चाणक्य का मानना था कि दुष्ट व्यक्ति को पहचानना बहुत जरूरी है क्योंकि वह हमें बार-बार नुकसान पहुंचाता है। वे केवल एक बार नहीं, बल्कि हर समय हमें धोखा देने की कोशिश करते हैं। इसके विपरीत, सांप अपनी रक्षा के लिए डसता है, इसलिए हमें सांप से ज्यादा डरने की आवश्यकता नहीं है। चाणक्य का यह संदेश है कि हमें दुष्ट लोगों से हर हाल में बचना चाहिए क्योंकि उनका साथ हमारे जीवन को नष्ट कर सकता है।
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Chanakya Niti - फोटो : freepik
दुष्ट राजा और शिष्य से बचना चाहिए
चाणक्य नीति में कहा गया है कि दुष्ट राजा, मित्र या शिष्य से हमें दूर रहना चाहिए, क्योंकि ये हमारे जीवन की सुख-शांति को भंग कर सकते हैं। एक दुष्ट राजा की तुलना में प्रजा कभी सुखी नहीं रह सकती। इसी तरह, एक दुष्ट मित्र या शिष्य से हमें बहुत कम लाभ मिलेगा।
कुराजराज्येन कुतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिवृत्तिः।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः कृशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः।।


इस श्लोक का अर्थ है कि दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा कभी सुखी नहीं रह सकती है। दुष्ट मित्र के साथ हम आनंद नहीं प्राप्त कर सकते, दुष्ट पत्नी के साथ घर में सुख नहीं हो सकता और दुष्ट शिष्य कभी यश नहीं दिला सकता। चाणक्य का मानना था कि यदि हम ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखें तो हम अपने जीवन को सुखमय और शांतिपूर्ण बना सकते हैं। जीवन में तरक्की और सफलता पाने के लिए हमें अच्छे और नेक लोगों का साथ चाहिए, ताकि हम उनका सही मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें।
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Chanakya Niti - फोटो : amar ujala
मूर्खों से दूर रहना ही समझदारी है
चाणक्य ने मूर्खों, निर्धन लोगों और वेश्याओं से भी दूरी बनाने की सलाह दी है, क्योंकि ये लोग हमेशा किसी न किसी प्रकार से हमारी प्रगति में रुकावट डाल सकते हैं। चाणक्य के अनुसार, मूर्खों और निर्धन लोगों का मानसिकता हमेशा ईर्ष्या और द्वेष से भरी होती है। वे किसी न किसी कारण से हमसे जलते रहते हैं और कभी हमें सही मार्ग पर चलने की अनुमति नहीं देते।
मूर्खाणां एण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधना।
वारांगना कुलीनानां सभगानां च दुर्भगा।।


अर्थात, मूर्ख व्यक्ति विद्वानों से, निर्धन व्यक्ति अमीरों से और वेश्याएं कुलीन महिलाओं से जलती हैं। चाणक्य का यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि हमें ऐसे व्यक्तियों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए, क्योंकि ये हमें नकारात्मकता और हानि का शिकार बना सकते हैं।
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Chanakya Niti For Life - फोटो : adobe stock
शांत व्यक्तित्व को बदनाम करने वालों से बचें
चाणक्य का यह भी कहना था कि हमें शांत, विद्वान और आचार्य व्यक्तियों की निंदा करने वालों से भी बचना चाहिए। ऐसे लोग सिर्फ अपनी नासमझी और ईर्ष्या के कारण दूसरों की बुराई करते हैं। चाणक्य का मानना था कि जो लोग वेदों, शास्त्रों, पांडित्य और सदाचार को बदनाम करते हैं, वे बेकार कष्ट करते हैं।

अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रमाचारमन्यथा।
अन्यथा वदतः शांतं लोकाः क्लिश्यन्ति चान्यथा।।


इस श्लोक का अर्थ है कि जो लोग शांत और सदाचारी व्यक्तियों की निंदा करते हैं, वे अपने जीवन में परेशान रहते हैं, क्योंकि उनके इस कृत्य से इन व्यक्तियों का महत्व कम नहीं होता। चाणक्य ने यह कहा है कि ऐसे नकारात्मक व्यक्तियों से हमेशा दूर रहना चाहिए, क्योंकि उनका व्यवहार हमारे जीवन में कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं डालता।



डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। 
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